भारत के विपक्षी दल नागरिकों की कमजोरियों का फायदा उठाकर उन्हें गुमराह कर रहे हैं। वे धर्मनिरपेक्षता, महंगाई, बेरोजगारी, जाति और समुदाय जैसे संवेदनशील मुद्दों का इस्तेमाल कर अपनी राजनीति चमका रहे हैं। उनका अंतिम लक्ष्य सत्ता में वापस आना और मोदी सरकार के कार्यकाल में हुए बदलावों को पलट कर देश को पुराने भ्रष्ट और निष्क्रिय शासन की ओर ले जाना है।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर गुमराह करना
चुनिंदा धर्मनिरपेक्षता: विपक्ष खुद को धर्मनिरपेक्षता का रक्षक दिखाता है, लेकिन अक्सर यह केवल कुछ समुदायों के तुष्टीकरण तक सीमित रहता है।
हिंदूफोबिया फैलाना: हिंदू त्योहारों और परंपराओं को गलत तरीके से पेश कर बहुसंख्यक समुदाय को अलग-थलग करने की साजिश।
राष्ट्रीयता को बदनाम करना: राष्ट्रीयता को सांप्रदायिकता से जोड़कर इसके एकजुटकारी प्रभाव को कम किया जा रहा है।
महंगाई और बेरोजगारी का मुद्दा भुनाना
समस्याओं को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना: महंगाई और बेरोजगारी जैसी वैश्विक चुनौतियों को इस तरह प्रस्तुत किया जा रहा है मानो यह सिर्फ भारत की समस्याएं हैं।
वैश्विक संदर्भ की अनदेखी: COVID-19 और यूक्रेन युद्ध जैसे वैश्विक मुद्दों के प्रभाव को नजरअंदाज कर केवल घरेलू आलोचना करना।
उपलब्धियों को खारिज करना: स्किल इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसी योजनाओं के माध्यम से रोजगार सृजन को भी विपक्ष नजरअंदाज करता है।
जाति और समुदाय के नाम पर समाज को बांटना
जाति आधारित राजनीति: सामाजिक समरसता बढ़ाने के बजाय जातिगत विभाजन को गहराते हुए वोट बैंक की राजनीति।
पहचान की राजनीति को बढ़ावा देना: जातिगत आरक्षण का उपयोग वोट के लिए, न कि सशक्तिकरण के लिए।
समुदाय विशेष का तुष्टीकरण: अल्पसंख्यक समुदायों को वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल कर अन्य समूहों में असंतोष फैलाना।
मोदी सरकार के विकास एजेंडे को कमजोर करना
सुधारों का विरोध: जीएसटी, नोटबंदी और कृषि कानूनों जैसे सुधारों का विरोध सिर्फ वोट बैंक बचाने के लिए किया गया।
प्रगति में बाधा डालना: जनता के हित वाली नीतियों को ब्लॉक करना या बिना वैकल्पिक समाधान दिए उनकी आलोचना करना।
झूठे नैरेटिव गढ़ना: निराधार आरोप लगाकर सरकार की छवि धूमिल करने की कोशिश।
भ्रष्टाचार और वंशवादी राजनीति की वापसी
संस्थाओं पर सवाल उठाना: न्यायपालिका, चुनाव आयोग और सेना जैसे संस्थानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाकर जनता का विश्वास कमजोर करना।
वंशवादी राजनीति: कई विपक्षी दलों में परिवार-आधारित नेतृत्व को प्राथमिकता देना।
प्रगति को रोकना: जन धन योजना और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं से मिली शक्ति को कमजोर करने का प्रयास।
खुद को पीड़ित दिखाना
लोकतंत्र पर खतरे की बात करना: विपक्ष यह दावा करता है कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है, जबकि उनकी ही गतिविधियां—सत्रों का बहिष्कार, विरोध प्रदर्शन, और विभाजनकारी बयानबाजी—लोकतंत्र को कमजोर करती हैं।
राजनीतिक प्रतिशोध का रोना: भ्रष्टाचार या अपराधों के मामलों में फंसे नेता राजनीतिक प्रतिशोध का दावा कर जनता को भ्रमित करते हैं।
विपक्ष के सत्ता में लौटने के संभावित परिणाम
अगर विपक्ष सत्ता में वापस आता है, तो भारत को निम्नलिखित चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है:
नीतिगत पंगुता: निर्णय लेने में असमर्थता और ठहराव।
भ्रष्टाचार की वापसी: घोटालों और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग का बढ़ना।
तुष्टीकरण की राजनीति: राष्ट्रीय एकता की कीमत पर समुदाय विशेष के पक्ष में नीतियां बनना।
वैश्विक स्थिति कमजोर होना: अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की मजबूत छवि को नुकसान पहुंचना।
नागरिकों के लिए संदेश
सचेत रहें: भ्रामक नैरेटिव के शिकार न बनें; तथ्यों का विश्लेषण करें और उद्देश्यों पर सवाल उठाएं।
प्रदर्शन का आकलन करें: सरकारों को भावनात्मक बयानबाजी नहीं, बल्कि ठोस उपलब्धियों के आधार पर परखें।
राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दें: अल्पकालिक लाभों की बजाय दीर्घकालिक विकास को महत्व दें।
एकता को बढ़ावा दें: विभाजनकारी रणनीतियों का विरोध करें और ऐसी नीतियों का समर्थन करें जो भारत की सामाजिक संरचना और आर्थिक प्रगति को मजबूत करें।
मोदी सरकार के नेतृत्व में भारत ने जो प्रगति की है, वह अद्वितीय है। लेकिन इस प्रगति की निरंतरता देशवासियों की जागरूकता और विवेक पर निर्भर करती है। हमें राजनीतिक अवसरवाद को देश की एकता और विकास को बाधित करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
जय हिन्द! जय भारत!!
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