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मुस्लिम्स की बहाली

क्या हम मुस्लिम्स की बहाली के लिए कठिन परिश्रम कर रहे हैं?

यह विषय मुस्लिम समाज की प्रगति, चुनौतियों और एकजुट होकर किए जा रहे प्रयासों पर केंद्रित है। सवाल यह है कि क्या हम सच में मुस्लिम्स की बहाली के लिए कठिन परिश्रम कर रहे हैं या केवल चर्चा तक सीमित हैं?

🏠 हिंदू सेठ और अब्दुल की कहानी – भविष्य की तस्वीर

  • एक दिन एक हिंदू सेठ ने अपने नौकर अब्दुल से पूछा –
    “मेरे पास सिर्फ़ दो बच्चे हैं और मैं दिन-रात उनके भविष्य की चिंता करता रहता हूँ। लेकिन तुम्हारे 12 बच्चे हैं और तुम बिलकुल निश्चिंत रहते हो। ऐसा क्यों?”
  • अब्दुल मुस्कुराते हुए बोला –
    “मालिक, 25 साल बाद मेरे 12 बेटे मिलकर आपकी इस दुकान पर कब्ज़ा कर लेंगे। आप तो हमारे लिए ही कमा रहे हैं। फिर मुझे चिंता क्यों करनी चाहिए?”

👉 यह कोई काल्पनिक बात नहीं, बल्कि कटु यथार्थ है। यह हमें चेतावनी देता है कि यदि हम आज नहीं चेते तो भविष्य में हमारी मेहनत का फल भी हमारे बच्चों को नहीं मिलेगा, बल्कि कोई और उस पर अधिकार कर लेगा।

🕌 इतिहास का सबक – मेहनत हमारी, कब्ज़ा उनका

  • सियालकोट, लाहौर, गुजरांवाला और कराची – ये शहर कभी हिंदू व्यापारियों, सेठों और मंदिरों से जगमगाते थे। वहाँ के हिंदू सेठों ने विशाल हवेलियाँ, दुकानें, धर्मशालाएँ और मंदिर बनवाए। लेकिन 1947 में विभाजन हुआ और उन हिंदुओं को रातों-रात सब छोड़कर भागना पड़ा।
  • कश्मीर – कश्मीरी पंडितों ने वहाँ शिक्षा, व्यापार और संस्कृति की नींव रखी। आलीशान घर, सुंदर बाग़-बगीचे, व्यापारिक प्रतिष्ठान बनाए। लेकिन धीरे-धीरे वहाँ का माहौल बदलता गया। 1990 में आतंकवाद के चलते लाखों कश्मीरी हिंदुओं को सब कुछ छोड़कर पलायन करना पड़ा। आज उनके घरों, दुकानों और मंदिरों पर किसका कब्ज़ा है, यह सबको पता है।

👉 इतिहास हमें साफ़ बताता है – मेहनत हम करते हैं, पर कब्ज़ा वे करते हैं।

⚡ वर्तमान की तस्वीर – औवेसी के विधायक और वोट बैंक

  • आजादी के 75 साल बाद भी वही खेल जारी है।
  • बिहार में औवेसी की पार्टी के पाँच विधायक एकतरफा जीत गए।

❓ क्या उन्होंने कोई बड़ी विकास योजना पेश की?
❓ क्या उन्होंने रोज़गार, शिक्षा या बुनियादी ढाँचे का कोई वादा किया?

नहीं। फिर भी वे जीते। क्यों?

  • क्योंकि चुनाव अब विकास और राष्ट्रवाद पर नहीं, बल्कि जनसंख्या और मजहबी वोट बैंक पर लड़े जा रहे हैं।

👉 जहाँ उनकी जनसंख्या ज़्यादा है, वहाँ विकास नहीं, बल्कि मजहबी पहचान चुनाव का आधार बन जाती है।

🔥 कांग्रेस और विपक्ष की गंदी राजनीति

पिछले 70 सालों का इतिहास गवाह है – कांग्रेस और विपक्षी दलों की राजनीति का आधार हमेशा रहा है:

  • मुस्लिम तुष्टिकरण
  • हिंदू दमन और उपेक्षा

उन्होंने कभी भी हिंदुओं की सुरक्षा, संस्कृति या आर्थिक हितों की रक्षा नहीं की।
बल्कि बार-बार जिहादी ताक़तों, आतंकियों और घुसपैठियों को सहारा दिया।

👉 यही कारण है कि आज़ाद भारत में भी हिंदू कई बार अपने ही देश में बेघर, शरणार्थी और असुरक्षित महसूस करता है।

🚨 खतरा वास्तविक है – अगर अब भी सोए रहे तो…

  • कल वही होगा जो लाहौर और कराची में हुआ – हमारी मेहनत, हमारी संपत्ति और हमारी ज़मीन पर कब्ज़ा कोई और करेगा।
  • हमारी आने वाली पीढ़ियाँ मजबूर होंगी पलायन करने को।
  • हमारी संस्कृति, परंपरा और सनातन धर्म को मिटाकर यहाँ इस्लामीकरण थोपा जाएगा।

यह कोई कल्पना नहीं, बल्कि इतिहास से मिले कठोर सबक हैं।

✊ समाधान – सनातनी जागरण और एकता

भाइयों और बहनों, अब समय है कि हम सब जागें और एकजुट हों।

  • राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाएँ।
  • वोट बैंक की राजनीति को चुनौती दें।
  • अपनी संस्कृति, मंदिरों और परंपराओं की रक्षा करें।
  • अपनी जनसंख्या, समाज और परिवारिक मूल्यों को मजबूत करें।
  • और हर उस ताक़त का विरोध करें जो हिंदुओं को बदनाम करने और भारत को तोड़ने का षड्यंत्र रच रही है।

👉 याद रखो – अगर हमने अब भी आँखें बंद रखीं, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें कभी माफ़ नहीं करेंगी।

इतिहास दोहराने न दें

इतिहास ने हमें कई बार चेतावनी दी है। लाहौर, कराची, कश्मीर – हर जगह हिंदुओं ने मेहनत की, पर अंत में उनकी ज़मीन, दुकानें और मंदिर उनसे छीन लिए गए। आज वही साज़िश वोट बैंक राजनीति, जनसंख्या जिहाद और विपक्षी तुष्टिकरण के रूप में हमारे सामने खड़ी है। मुस्लिम्स की बहाली तभी संभव है जब हम एकजुट होकर सतर्क और मेहनती प्रयास करें।

👉 सवाल सिर्फ़ इतना है कि –

  • क्या हम वही गलती दोहराएँगे?
  • या समय रहते जागकर अपने बच्चों और अपनी सनातन संस्कृति को बचाएँगे?

मुस्लिम्स की बहाली केवल विचारों या चर्चाओं से नहीं बल्कि एकजुट प्रयास और लगातार कठिन परिश्रम से ही संभव है।

🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮

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