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संपत्ति

क्या करोगे इतनी संपत्ति कमाकर?

एक चेतावनी, एक आह्वान जब देश पुकारे, तो मौन अपराध बन जाता है

हर कोई जीवनभर संपत्ति कमाने की दौड़ में लगा रहता है, लेकिन क्या कभी सोचा है — आखिर इतनी संपत्ति का करेंगे क्या? यही सवाल हमें असली सुख और शांति के अर्थ पर सोचने को मजबूर करता है।

1. इतिहास की सच्चाई: समृद्धि से परायापन तक

भारत की भूमि हमेशा से ही सोने की चिड़िया रही है —
संपन्नता, संस्कृति और ज्ञान का प्रतीक। लेकिन हर बार, जब इस भूमि के पुत्र आपस में बँटे, लालच, जाति या अहंकार में डूबे — तब कोई न कोई बाहरी ताकत आई और उसने इस गौरव को लूटा।

  • काबुल, जहाँ कभी सिक्ख व्यापारी व्यापार के मालिक थे, आज वहाँ तालिबान का शासन है।
  • सिंध, जो सिंधियों की पहचान था, अब पाकिस्तान के कट्टरवाद के नीचे दबा पड़ा है।
  • कश्मीर, जहाँ एक समय में शांति, शिक्षा और सभ्यता का प्रकाश था, अब विस्थापन और हिंसा का प्रतीक बन चुका है।
  • ढाका, जहाँ हिंदू बंगाली उद्योगपतियों ने जूट उद्योग को विश्व में प्रसिद्ध किया, अब वहाँ उनकी उपस्थिति नाम मात्र की रह गई है।

🔹 संदेश:
जब समाज बिखर जाता है, तो उसकी संपत्ति, संस्कृति और अस्तित्व पर कोई और कब्जा कर लेता है।

2. विरासतें मिटती हैं जब एकता टूटती है

  • हमारे पूर्वजों ने हमें एक गौरवशाली धरोहर सौंपी थी —
    ननकाना साहिब, लवकुश का लाहौर, चाणक्य का तक्षशिला, ढाकेश्वरी मंदिर
    सब कभी भारत की आत्मा थे। लेकिन आज ये सब हमारी सीमाओं से बाहर हैं, क्योंकि हम एक समय पर एकजुट नहीं रह सके।
  • पंजाब, पाँच नदियों की भूमि, अब दो नदियों तक सीमित है।
  • बस्तर, जहाँ के जंगलों ने संपन्नता दी, वहाँ अब वामपंथी आतंक का साया है।
  • पूर्वी भारत, जहाँ सभ्यता जन्मी, वहाँ आज विभाजन और उपेक्षा की भावना है।

🔹 संदेश:
संस्कृति तभी जीवित रहती है जब उसके रक्षक एकजुट हों। जब समाज क्षेत्रवाद, जातिवाद या निजी स्वार्थ में उलझ जाता है, तब उसकी जड़ें सड़ जाती हैं और अंततः वह मिट जाता है।

3. वर्तमान समाज की सबसे बड़ी विडंबना

  • आज का भारत भौतिक रूप से आगे बढ़ रहा है, लेकिन आत्मिक रूप से बिखर रहा है। हर दिशा में विभाजन की दीवारें खड़ी हैं — धर्म के नाम पर, भाषा के नाम पर, राजनीति के नाम पर।
  • कोई असम को अपना मानता है, कोई सूरत के हीरों को, कोई आंध्रा की खदानों को।
  • कोई हिंदू अपनी जाति में गर्व खोजता है, धर्म में नहीं।
  • आधा समाज इस बात से बेखबर है कि देश के अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है
  • बाकी आधे में, कई लोग अपने ही समाज के खिलाफ खड़े हैं —
    कभी “सेक्युलरिज़्म” की आड़ में, कभी “विचारधारा” के नाम पर।

और सबसे खतरनाक यह है कि

  • जो राष्ट्र, धर्म और संस्कृति के पक्ष में बोलते हैं, उन्हें कट्टर, चरमपंथी या राजनीतिक एजेंट कहकर चुप कराया जा रहा है।

🔹 संदेश:
बाहरी खतरा नहीं, अंदर की निष्क्रियता और विभाजन ही हमारा सबसे बड़ा शत्रु है।

4. सदियों की पीड़ा: गद्दारों ने ही भारत को हराया

  • भारत की सबसे बड़ी त्रासदी यह रही कि उसे हराने वाले बाहर से नहीं आए,
    बल्कि भीतर के गद्दारों ने उसकी नींव खोदी।
  • राजा दाहिर के खिलाफ अरबी आक्रमणों में कुछ स्थानीयों ने ही दरवाज़े खोले।
  • राजपूतों के समय में, कुछ दरबारियों ने लालच में दुश्मनों से हाथ मिलाया।
  • 1857 की क्रांति वीरों के बल पर शुरू हुई, लेकिन कुछ गद्दारों ने अंग्रेजों को सूचना देकर उसे कुचलवा दिया।

और आज भी, ऐसे ही गद्दार हैं — जो भारत की एकता को तोड़ने के लिए विदेशी ताकतों, NGO और लुटेरे मानसिकतावालों के साथ खड़े हैं।

🔹 संदेश:
देश सदियों से गद्दारों के कारण पीड़ित है, और हर बार देशभक्तों ने उसे बचाया है।
अब फिर वही समय आ गया है कि राष्ट्रभक्त संगठित हों और भारत को टूटने से बचाएँ।

5. वर्तमान खतरा इस बार दुश्मन ज़्यादा और संगठित है

  • आज का संघर्ष सिर्फ राजनीतिक नहीं, सभ्यतागत युद्ध है।
  • जो ताकतें भारत को तोड़ना चाहती हैं, वे इस बार विचारों, मीडिया, फंडिंग और भ्रम से हमला कर रही हैं।
  • सोशल मीडिया, शिक्षा, सिनेमा — हर जगह विकृत विचारधारा बोई जा रही है।
  • जो भारत को “हिंदू राष्ट्र” कहने से डरते हैं, वही विदेशी शक्तियों के हितों की रक्षा में लगे हैं।
  • इस बार गद्दार बहुत हैं, और पहले से कहीं ज़्यादा संगठित।

🔹 संदेश:
अगर राष्ट्रभक्त बिखरे रहे, तो यह बारहवीं शताब्दी की पुनरावृत्ति होगी।
अगर एकजुट हुए, तो भारत फिर विश्वगुरु बनेगा।

6. अब समय है जागने का कर्मयोग का नया युग

  • भारत केवल भूगोल नहीं है — यह संस्कृति और चेतना का प्रतीक है।
    यह राष्ट्र तब तक जीवित रहेगा जब तक उसके नागरिक धर्म, संस्कृति और एकता के लिए खड़े रहेंगे।
  • हर नागरिक को अब अपनी भूमिका समझनी होगी।
  • व्यापारी, शिक्षक, विद्यार्थी, किसान, या संत — सबको एकजुट होकर राष्ट्ररक्षा में योगदान देना होगा।
  • युवाओं को केवल करियर नहीं, बल्कि कर्तव्य भी समझना होगा।

समाज को संगठित करना, संस्कृति को पुनर्जीवित करना, और सत्य के लिए आवाज उठाना — यही आज का धर्म है।

🔹 संदेश:
जो आज जागेगा, वही आने वाले भारत का निर्माता बनेगा।
यह केवल धर्म की रक्षा नहीं, सभ्यता और अस्तित्व की रक्षा का समय है।

7. अस्तित्व की अंतिम पुकार

भारत की आत्मा को चोट तब लगती है जब उसके लोग मौन हो जाते हैं।
आज भी वही समय है — जब हर भारतीय को तय करना होगा कि वह इतिहास के किस पक्ष में खड़ा है।

  • यह धर्म की नहीं, अस्तित्व की लड़ाई है।
  • यह राजनीति की नहीं, संस्कृति और आत्मसम्मान की पुकार है।
  • अगर आज हम जागे नहीं, तो आने वाली पीढ़ियाँ हमें माफ़ नहीं करेंगी।

🔹 अंतिम संदेश:

इतिहास बार-बार चेतावनी देता है —

  • हर बार जब भारत बिखरा, उसने सब कुछ खोया।
  • हर बार जब वह एकजुट हुआ, उसने विश्व को दिशा दी।
  • अब निर्णय हमारा है —

क्या हम फिर विभाजित रहेंगे, या इस बार संगठित होकर भारत को पुनः विश्वगुरु बनाएँगे।

🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮

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