आज के युग में धर्म, संस्कृति और अस्तित्व की रक्षा के लिए केवल विचारों की नहीं, बल्कि संगठित प्रयासों और पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता है। सनातन धर्म और इसकी सांस्कृतिक विरासत पर बढ़ते खतरों को देखते हुए, यह अनिवार्य हो गया है कि हम एकजुट हों और अपनी सामूहिक रक्षा के लिए एक मजबूत आर्थिक और सामाजिक आधार स्थापित करें।
1. वैश्विक ईको सिस्टम और उसके प्रभाव
मुस्लिम और ईसाई समुदायों की रणनीतियां
- मुस्लिम और ईसाई समुदायों ने विश्व स्तर पर अपने धर्म के प्रचार के लिए एक सशक्त अंतर्राष्ट्रीय ईको सिस्टम तैयार किया है।
- जब किसी भी मुस्लिम पर कहीं हमला होता है, तो पूरे विश्व के मुस्लिम एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन करते हैं, जिससे वह मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बन जाता है।
परिणाम:
- उनके समुदाय पर अत्याचार नहीं होता।
- वे इस प्रोपेगैंडा के सहारे दूसरों को समाप्त करने में सफल हो जाते हैं।
ईसाई मिशनरी की भूमिका:
- वे धर्मांतरण के माध्यम से कमजोर वर्गों और सैक्यूलर मानसिकता वाले लोगों को अपने धर्म में शामिल कर लेते हैं।
2. सनातनियों की उदासीनता
आर्थिक शक्ति का अभाव
- सनातन धर्मावलंबी सेवा, सहायता, धार्मिक आयोजनों पर लाखों-करोड़ों खर्च करते हैं।
- लेकिन संगठित आर्थिक शक्ति का उपयोग नहीं कर पाते।
रवैया:
- सोचते हैं कि जैसे अभी हैं, वैसे ही रहेंगे।
- समझने में विफल रहते हैं कि जनसंख्या संतुलन बिगड़ते ही उनके खिलाफ हिंसा, जिहाद, और अत्याचार शुरू हो सकता है।
3. राजनैतिक और मीडिया का गठजोड़
- सभी प्रमुख राजनैतिक दल और मीडिया हाउस सनातन धर्म के खिलाफ एकजुट होकर काम कर रहे हैं।
- सनातन धर्मावलंबियों की छवि को धूमिल करना और उन्हें विभाजित करना इनके एजेंडे का हिस्सा है।
परिणाम:
- यदि आर्थिक और सामाजिक रूप से संगठित नहीं हुए, तो संस्कृति और अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
4. धन संग्रह क्यों जरूरी है?
धर्म और संस्कृति की रक्षा
- आर्थिक संसाधनों के बिना धर्म और संस्कृति की रक्षा असंभव है।
शिक्षा और जागरूकता
- सही जानकारी और शिक्षा के माध्यम से युवाओं और समाज को जागरूक करना।
मीडिया का जवाब
- सनातन धर्म के प्रति नकारात्मक प्रोपेगैंडा का जवाब देने के लिए अपना मीडिया प्लेटफॉर्म विकसित करना।
ग़रीब और कमजोर वर्ग की मदद
- कमजोर वर्ग को मदद देकर उन्हें अपनी जड़ों से जोड़ने का प्रयास करना।
5. हमारी प्राथमिकताएं क्या होनी चाहिए?
धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए संगठित होना
- धर्मस्थलों और संगठनों के लिए नियमित दान।
- धर्मांतरण रोकने के लिए शिक्षा और अभियान चलाना।
युवाओं को प्रेरित करना
- युवाओं को धर्म और संस्कृति के महत्व को समझाना।
- उन्हें सिखाना कि धर्म की रक्षा केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं है।
आर्थिक स्वतंत्रता का निर्माण
- धर्म और संस्कृति के प्रचार के लिए स्थायी कोष का निर्माण।
- छोटे-छोटे दान से बड़े प्रयासों में योगदान।
समाज में एकता लाना
- जाति, भाषा और क्षेत्र से ऊपर उठकर एकजुट होना।
- विभाजन की राजनीति का विरोध कर संगठित समाज की नींव रखना।
6. क्या होगा यदि हम संगठित नहीं हुए?
- जनसंख्या असंतुलन के कारण पहचान संकट में पड़ जाएगी।
- बढ़ते जिहाद और धर्मांतरण से सनातन धर्म का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा।
- आने वाली पीढ़ियां हमारी उदासीनता का परिणाम भुगतेंगी।
निष्कर्ष: संगठित प्रयास ही भविष्य की कुंजी
आज की पीढ़ी को यह समझना होगा कि संगठित होकर धन जुटाना और उसका सही उपयोग करना केवल हमारी संस्कृति की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व और भविष्य की सुरक्षा के लिए भी अनिवार्य है।
संदेश स्पष्ट है:
- एकजुट हों।
- संगठित हों।
- धर्म, संस्कृति और राष्ट्र की रक्षा के लिए आर्थिक और सामाजिक शक्ति का निर्माण करें।
वंदे मातरम! जय सनातन धर्म!
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