एंटी-इंडिया इकोसिस्टम और वैश्विक दबाव
- स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है कि भारत के उभार को चुपचाप स्वीकार नहीं किया जा रहा, बल्कि खुलकर सवालों के घेरे में लिया जा रहा है।
- पश्चिमी राजधानियों से लेकर वैश्विक मीडिया तक, विदेशी थिंक-टैंकों से लेकर भारत की विपक्षी राजनीति तक—हर जगह एक स्पष्ट बेचैनी दिखाई देती है।
- यह बेचैनी कोई संयोग नहीं है।
- यह उस क्षण की प्रतिक्रिया है जब पुराने सत्ता-संतुलन टूट रहे हैं और नई वास्तविकताएँ जन्म ले रही हैं।
1. सबसे बड़ा झटका: भारत ने “अनुमति माँगना” बंद कर दिया है
दशकों तक भारत एक ऐसा देश रहा जो:
- पश्चिम से स्वीकृति (Approval) चाहता था
- घरेलू नीतियाँ विदेशी राय देखकर बनाता था
- असमान व्यापार और रक्षा समझौतों पर हस्ताक्षर करता था
- पश्चिमी ढाँचों में खुद को ढालकर चलने को मजबूर था
वह भारत पूर्वानुमेय (Predictable) था, प्रबंधनीय (Manageable) था, और इसलिए वैश्विक शक्तियों के लिए सुविधाजनक था।
- मोदी के ‘न्यू इंडिया’ ने यही आदत तोड़ दी
- भारत अब याचक नहीं, समान भागीदार बनकर बातचीत करता है
- अनुचित व्यापार समझौतों से पीछे हट जाता है
- दबाव में झुकने के बजाय विकल्प तलाशता है
- विदेश नीति को विचारधारा नहीं, राष्ट्रीय हित के आधार पर चलाता है
जिस दिन कोई राष्ट्र अनुमति माँगना बंद करता है, उसी दिन उस पर नियंत्रण कठिन हो जाता है। यही आज की वैश्विक बेचैनी की जड़ है।
2. वैश्विक महाशक्तियाँ क्यों असहज हैं
- आज भारत केवल एक बड़ा बाज़ार नहीं रह गया है। वह एक सिस्टम-शेपिंग पावर बनता जा रहा है।
वे तथ्य जो वैश्विक सत्ता-केंद्रों को परेशान कर रहे हैं:
- भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है
- दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था है
- एक विश्वसनीय सैन्य शक्ति बन चुका है
- और अब रक्षा उपकरणों का निर्यातक भी है
इसका सीधा असर पड़ता है:
- पश्चिमी रक्षा उद्योगों पर
- वैश्विक सप्लाई-चेन के एकाधिकार पर
- उन वित्तीय प्रणालियों पर जो भारत की निर्भरता पर टिकी थीं दशकों से बनी रणनीतिक पकड़ पर
आत्मनिर्भर भारत हथियार आयात घटाता है, आर्थिक दबाव कम करता है, और रणनीतिक ब्लैकमेलिंग की क्षमता को कमजोर करता है।
- पश्चिमी सुरक्षा नैरेटिव का एकाधिकार
- एकध्रुवीय विश्व व्यवस्था
भारत पश्चिम-विरोधी नहीं है, वह भारत-पक्षधर है। और यही स्वतंत्रता वैश्विक संतुलन बदल रही है।
5. एंटी-इंडिया वैश्विक इकोसिस्टम क्यों घबराया हुआ है
हर उभरती शक्ति के खिलाफ एक इकोसिस्टम सक्रिय होता है जो:
- नैरेटिव नियंत्रित करना चाहता है
- वैधता पर सवाल उठाता है
- नकारात्मक घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाता है
- उपलब्धियों को कमतर करता है
भारत के मामले में इसमें शामिल हैं:
- वैश्विक मीडिया के कुछ हिस्से
- विदेशी फंडिंग पर निर्भर NGO
- पुराने शक्ति-केंद्रों से जुड़े थिंक-टैंक
- वे वैचारिक समूह जो सभ्यतागत आत्मविश्वास से असहज हैं
- क्यों?
क्योंकि मोदी का भारत:
- सभ्यतागत आत्मगौरव पुनः स्थापित करता है
- बाहरी नैतिक प्रमाणपत्रों को अस्वीकार करता है
- सांस्कृतिक आत्मसम्मान को बढ़ावा देता है
- पश्चिमी बौद्धिक प्रभुत्व को चुनौती देता है
आत्मविश्वासी सभ्यता को दबाना आसान नहीं होता।
6. भारतीय विपक्ष सबसे ज़्यादा बेचैन क्यों है
- भारतीय विपक्ष की बेचैनी अस्तित्वगत (Existential) है, सिर्फ चुनावी नहीं।
दशकों तक विपक्षी राजनीति टिकी रही:
- धीमी विकास दर पर
- आयात-निर्भर अर्थव्यवस्था पर
- विदेशी सलाहकारों पर
- लाइसेंस-राज और ठेकों पर नियंत्रण पर
इससे संभव हुआ:
- कमीशन-आधारित राजनीति
- बिचौलियों का वर्चस्व
विदेशी सौदों में छुपा भ्रष्टाचार
मोदी का न्यू इंडिया इस ढाँचे को तोड़ रहा है
- डिजिटल शासन से लीकेज घटा
- DBT ने राजनीतिक बिचौलियों को हटाया
- घरेलू निर्माण ने आयात-आधारित लूट खत्म की
- तेज़ इंफ्रास्ट्रक्चर विकास ने असफलताओं को उजागर किया
- तेज़, आत्मनिर्भर भारत पुरानी राजनीति को अप्रासंगिक बना रहा है।
इसीलिए:
- विकास को “अपर्याप्त” कहा जाता है
- आत्मविश्वास को “अहंकार” बताया जातदृढ़ता को “खतरनाक” कहा जाता है
डर नीतियों से नहीं, प्रासंगिकता खोने से है।
7. “भारत अभी छोटा है” क्यों बार-बार दोहराया जाता है
यह वाक्य कई उद्देश्यों की पूर्ति करता है:
- वैश्विक पदानुक्रम को मानसिक रूप से बनाए रखना
- घरेलू आत्मविश्वास को कमजोर करना
- पुराने बौद्धिक ढाँचों की रक्षा करना
- भारत को बराबरी की शक्ति मानने में देरी करना
यह आर्थिक आकलन नहीं है। यह एक नैरेटिव हथियार है।
8. वह सच्चाई जिसे स्वीकार करना कठिन है
आज का भारत:
- बिना अनुमति के बढ़ रहा है
- बिना डर के सुधार कर रहा हैबिना झुके व्यापार कर रहा है
- वैश्विक मंचों पर आत्मविश्वास से बोल रहा है
यह असहज करता है:
- उन वैश्विक व्यवस्थाओं को जो वर्चस्व की आदी हैं
- उन घरेलू ताकतों को जो निर्भरता पर पली हैं
- उन बौद्धिक वर्गों को जो पुराने विश्व-क्रम में अटके हैं
बेचैनी का असली कारण
- वैश्विक महाशक्तियाँ बेचैन हैं क्योंकि: भारत अब जूनियर पार्टनर नहीं रहा
- एंटी-इंडिया इकोसिस्टम बेचैन है क्योंकि: नैरेटिव पर पकड़ ढीली पड़ रही है
भारतीय विपक्ष बेचैन है क्योंकि:
- न्यू इंडिया में उनकी राजनीति के लिए जगह नहीं बची
सच सरल है
- भारत अनुमति लेकर नहीं बढ़ रहा, भारत दृढ़ संकल्प से बढ़ रहा है।
- भारत मान्यता नहीं माँग रहा। भारत अपना भविष्य स्वयं तय कर रहा है।
और यही कारण है कि मोदी का न्यू इंडिया इतने शक्तिशाली लोगों को असहज कर रहा है।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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