यह सवाल बहुतों के मन में गूंजता है —
“हमने पाकिस्तान को हमेशा के लिए खत्म क्यों नहीं कर दिया?”
यह भावना स्वाभाविक है — वर्षों की पीड़ा, आतंकवाद और निर्दोषों की मौतें हमें झकझोरती हैं।
लेकिन केवल भावना से नहीं, रणनीति, विवेक और दूरदर्शिता से चलना होगा — जैसा एक उभरती महाशक्ति को करना चाहिए।
“पाकिस्तान को खत्म करना” — इसका मतलब क्या है?
पहले ये स्पष्ट करें कि इसका तात्पर्य क्या है:
1. पूरा सैन्य हमला करके पाकिस्तान पर कब्जा करना?
क्या आप चाहते हैं कि हम द्वितीय विश्वयुद्ध की तरह टैंक, लड़ाकू विमान और सेना भेजकर पाकिस्तान को घेर लें और पूरा देश हड़प लें?
और उसके बाद?
क्या आप चाहते हैं कि भारत में 30 करोड़ ऐसे लोग जुड़ जाएं, जिनमें से बहुत से लोग भारत से घृणा करते हैं और आत्मघाती हमलों को धर्म समझते हैं?
क्या आप चाहते हैं कि हम जिहादी सोच वाले जनसमूह का शासन, शिक्षण और पुनर्वास का बोझ उठाएं?
ये जीत नहीं, बल्कि आत्मघात होगा।
2. न्यूक्लियर अटैक करके खत्म कर देना?
कुछ लोग कहते हैं — “बस बम गिरा दो”।
पर हम ऐसा नहीं करेंगे — क्योंकि हम पाकिस्तान नहीं हैं।
भारत एक सभ्यतागत राष्ट्र है, नैतिक मूल्यों और ज़िम्मेदारी से संचालित परमाणु शक्ति।
हम नागरिकों पर बम नहीं गिराते। हम नरसंहार में विश्वास नहीं करते। हम 30 करोड़ लोगों का संहार नहीं करेंगे — न धर्म के नाम पर, न बदले के नाम पर।
अगर कभी परमाणु हथियार का इस्तेमाल हुआ, तो केवल आत्मरक्षा में।
3. पाकिस्तान को 5 टुकड़ों में तोड़ना?
हां, यह एक दीर्घकालिक रणनीति हो सकती है —
पर पाकिस्तान कोई प्लास्टिक का खिलौना नहीं है जिसे जब चाहे जोड़-तोड़ लें।
- भले ही आर्थिक रूप से वह दिवालिया हो, लेकिन:
- उसकी फौज अब भी संगठित है,
- नौकरशाही चालू है,
- ISI जैसे एजेंसियाँ सक्रिय हैं,
- और चीन–तुर्की जैसे सहयोगी उसके पीछे हैं।
उसे तोड़ने के लिए हमें बलूच, सिंधी, पश्तून जैसे आंतरिक विद्रोहों को 10–15 वर्षों तक मजबूत करना होगा —
गुप्त ऑपरेशनों, कूटनीति और फंडिंग से।
क्या आप इतने सालों तक इंतजार और संयम के लिए तैयार हैं?
4. पाकिस्तान के सभी सैन्य ठिकानों पर हमला?
कुछ कहते हैं — हर एयरबेस, नौसैनिक अड्डा, मुख्यालय सब उड़ा दो।
फिल्मों में अच्छा लगता है।
वास्तविकता में पाकिस्तान न्यूक्लियर मिसाइलें छोड़ देगा — दिल्ली और मुंबई सबसे पहले निशाने पर होंगी।
क्या हम युद्ध जीतेंगे? हां।
क्या हम उन्हें मिटा देंगे? बिल्कुल।
पर क्या आप 2 भारतीय महानगरों और 2 करोड़ भारतीयों की बलि देने को तैयार हैं? एक ज़िम्मेदार भारत सरकार कभी यह जोखिम नहीं उठाएगी — जब तक अनिवार्य न हो।
तो फिर भारत ने क्या किया? — ऑपरेशन सिंदूर
भारत ने जो किया, वो था बुद्धिमत्ता और शक्ति का उत्कृष्ट उदाहरण:
- 200 जिहादियों को जहन्नुम भेजा।
- 9 आतंकी शिविरों को पाकिस्तान के भीतर तबाह किया।
- उनके प्रमुख एयरबेस को हिला दिया, एयर डिफेंस का मज़ाक बना दिया।
- पाकिस्तान को झुकने पर मजबूर किया — उन्होंने ही संघर्ष विराम की भीख मांगी।
- सिंधु जल संधि को रद्दी की टोकरी में डाल दिया।
- आतंकी घटना होते ही पाकिस्तान पर हमला करने का नैतिक और रणनीतिक अधिकार अर्जित कर लिया।
यह क्षेत्र पर कब्ज़ा नहीं, संदेश देने का युद्ध था — और हमने वो संदेश पूरी दुनिया को दिया।
कूटनीतिक रूप से — भारत अकेला नहीं है
पहले, जैसे ही हम जवाबी कार्रवाई करते, पश्चिमी देश हमें संयम बरतने की सलाह देते थे।
इस बार?
कोई कुछ नहीं बोला।
उन्होंने हमें 72 घंटे की चुप सहमति दी — मतलब “जाओ, जो करना है करो।“
पाकिस्तान अलग–थलग पड़ा।
भारत को वैश्विक मान्यता मिली।
यही नई कूटनीति है — मौन समर्थन, निर्णायक कार्रवाई।
भारत का असली युद्ध — भविष्य निर्माण का युद्ध है
हमारा असली युद्ध पाकिस्तान से नहीं, गरीबी, बेरोजगारी, तकनीकी पिछड़ेपन से है।
हमारा लक्ष्य है:
- आर्थिक महाशक्ति बनना
- तकनीकी आत्मनिर्भरता
- 80 करोड़ युवाओं को अवसर देना
- भारत को विश्वगुरु बनाना
पाकिस्तान के पास कुछ नहीं है।
वो हमें रोक नहीं सकता, और हमें कुछ दे नहीं सकता।
वो पहले ही समाप्त हो चुका है — बस हमें दिखता नहीं।
यह भारत की जीत है
- हमने पाकिस्तान को खत्म नहीं किया — क्योंकि हमें जरूरत नहीं थी।
- हमने उसकी कमर तोड़ दी — बिना नैतिक रेखा पार किए।
- हमने दुनिया को दिखा दिया कि भारत अब पुराना सहनशील भारत नहीं, बल्कि न्याय के लिए क्रूर बन सकने वाला भारत है।
हमने युद्ध नहीं लड़ा — हमने संदेश दिया:
“एक भारतीय की जान के बदले, सौ आतंकियों की मौत होगी।”
यही है नई भारतीय युद्धनीति — चुपचाप, घातक और नैतिक।
यही है नया भारत।
जय भारत। वंदे मातरम्।
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