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मनरेगा

मनरेगा सिर्फ एक परत है — नीचे दबा है पूरा भ्रष्टाचार तंत्र

मनरेगा सिर्फ एक परत है

  • 27 लाख ‘घोस्ट वर्कर्स’ का सामने आना कोई अचानक हुई घटना नहीं है।
  • यह उस व्यवस्थित, संस्थागत और सुनियोजित भ्रष्टाचार मॉडल का एक उदाहरण है, जो वर्षों तक अलग-अलग योजनाओं, विभागों और राज्यों में चुपचाप फलता-फूलता रहा।
  • सच यह है कि काँग्रेस के राज मैं आप जहाँ भी खुदाई शुरू करेंगे,
    वहाँ आपको कंकाल मिलेंगे
  • और वे कंकाल यूँ ही नहीं, बल्कि पूरे सतर्कता के साथ दबाए गए हैं।

SECTION 1 — यह एक स्कैम नहीं, कई करप्शन मॉड्यूल्सका नेटवर्क है

मनरेगा का मामला यह साबित करता है कि:

  • भ्रष्टाचार अब एक-दो घोटालों तक सीमित नहीं रहा
  • यह मॉड्यूलआधारित सिस्टम में बदल चुका था
  • हर योजना में अलग नाम, लेकिन काम करने का तरीका वही

जैसे:

  • कागज़ी लाभार्थी
  • फर्जी उपस्थिति
  • बिचौलियों की लंबी श्रृंखला
  • और ऊपर से राजनीतिक संरक्षण

मनरेगा उनमें से सिर्फ एक मॉड्यूल था।

SECTION 2 — जहाँ भी छेड़ो, वही बदबू क्यों आती है?

क्योंकि हर जगह वही डिज़ाइन इस्तेमाल हुआ:

  • पहचान के बिना नाम
  • सत्यापन के बिना भुगतान
  • ऑडिट के बिना खर्च
  • और जवाबदेही के बिना सत्ता

चाहे वह:

  • रोज़गार योजना हो
  • सब्सिडी वितरण
  • छात्रवृत्ति
  • आवास योजना
  • स्वास्थ्य बीमा

हर जगह नाम बदला, लेकिन लूट का ढांचा वही रहा

SECTION 3 — यह भ्रष्टाचार नहीं, एक कैशफ्लो मशीनथी

  • इस इकोसिस्टम की सबसे खतरनाक बात यह थी कि:
  • यह एक बार का घोटाला नहीं था
  • यह निरंतर पैसा पैदा करने वाली मशीन थी
  • हर महीने, हर साल पैसा बहता रहता था

इसीलिए:

  • तकनीक का विरोध हुआ
  • डिजिटल सुधारों को गरीब-विरोधी बताया गया
  • अदालतों में मामले डाले गए
  • और भ्रम फैलाया गया
  • क्योंकि तकनीक = पहचान = लूट का अंत

SECTION 4 — अब पूरा इकोसिस्टम बेचैन क्यों है?

क्योंकि आज:

  • आसान पैसा खत्म हो चुका है
  • फर्जी नाम कट चुके हैं
  • बिचौलियों की भूमिका सिमट रही है
  • और कागज़ी खेल बंद हो रहा है

जो लोग वर्षों तक:

  • बिना काम किए विलासिता में जीते रहे
  • जनता के पैसे को अपना अधिकार समझते रहे
  • राजनीतिक छत्रछाया में सुरक्षित रहे

वे आज नहीं जानते कि:

  • अपनी महँगी जीवनशैली कैसे चलाएँ
  • पुराने नेटवर्क को कैसे बचाएँ
  • और बिना घोटाले के राजनीति कैसे करें

इसीलिए आज पूरा भ्रष्टाचारइकोसिस्टम एकजुट होकर सत्ता के खिलाफ खड़ा है
चाहे इसके लिए देश की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता ही क्यों न दांव पर लगानी पड़े।

SECTION 5 — यह सत्ता की नहीं, सिस्टम की लड़ाई है

आज की लड़ाई इस सवाल की है:

  • क्या देश कागज़ी लूट पर चलेगा?
  • या पारदर्शी, जवाबदेह व्यवस्था पर?

यह टकराव है:

  • अंधेरे बनाम रोशनी
  • बिचौलिया बनाम नागरिक
  • कागज़ बनाम पहचान

और यही कारण है कि सुधारों का विरोध इतना उग्र है।

SECTION 6 — अगर भारत को समृद्ध और महाशक्ति बनाना है

तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि:

  • भ्रष्टाचार तंत्र सबसे बड़ा विकास-विरोधी तत्व है
  • यह तंत्र तभी टूटता है जब उसे राजनीतिक संरक्षण न मिले
  • आधे-अधूरे समर्थन से सुधार संभव नहीं

देश को अगर:

  • आर्थिक रूप से मज़बूत
  • प्रशासनिक रूप से स्वच्छ
  • और वैश्विक स्तर पर प्रभावशाली बनाना है,


तो राष्ट्रहित, पारदर्शिता और ईमानदारी पर आधारित शासन को पूर्ण समर्थन देना अनिवार्य है।

SECTION 7 — निष्कर्ष: मनरेगा ने बस परदा हटाया है

  • 27 लाख घोस्ट वर्कर्स कोई अंत नहीं हैं।
  • वे सिर्फ संकेत हैं कि सफाई शुरू हो चुकी है
  • इसलिए डर बढ़ रहा है
  • और इसलिए शोर मच रहा है

क्योंकि जब:

  • व्यवस्था बदलती है
  • जवाबदेही आती है
  • और रोशनी पड़ती है
  • तो अंधेरे में पलने वाले सबसे पहले घबराते हैं।
  • यह प्रक्रिया लंबी है। यह संघर्ष स्वाभाविक है।

लेकिन यही रास्ता किसी भी देश को स्थायी समृद्धि और वैश्विक शक्ति की ओर ले जाता है।

🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮

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