मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदू विघटन
भारत — यह पावन भूमि जो धर्म, करुणा और सहिष्णुता की जननी रही है — आज एक खतरनाक मोड़ पर खड़ी है। एक ओर है सनातन धर्म की हजारों वर्षों पुरानी सभ्यता, और दूसरी ओर है कट्टरता, आतंकवाद और राजनीतिक विश्वासघात की बढ़ती लहर — जिसे दशकों के मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदू समाज की विघटित मानसिकता ने हवा दी है।
ये घटनाएं कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित योजना का हिस्सा हैं। हिंदू समाज पर हो रहे हमले अब स्पष्ट, क्रूर और बार–बार हो रहे हैं, और फिर भी उसे “बहुसंख्यक विशेषाधिकार प्राप्त” कहकर चुप करवा दिया जाता है।
अब सवाल यह नहीं कि हिंदू संकट में है या नहीं, बल्कि यह है कि हम कब तक चुप रहेंगे?
1. तुष्टीकरण की राजनीति के भयानक परिणाम
पिछले 70 वर्षों से कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने अल्पसंख्यकों को वोट बैंक बनाकर हिंदुओं के अधिकारों को कुचलने का काम किया है।
कुछ मुख्य उदाहरण:
- वक्फ बोर्ड का नियंत्रण:
भारत में लगभग 7 लाख एकड़ ज़मीन वक्फ बोर्ड के नियंत्रण में है, जबकि हिंदू मंदिरों को सरकार नियंत्रित करती है। - तीन तलाक पर विरोध:
मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों को ताक पर रखकर विपक्षी दलों ने तीन तलाक कानून का विरोध किया। - हज सब्सिडी बनाम मंदिर कर:
वर्षों तक मुस्लिमों को हज के लिए सब्सिडी मिली, वहीं हिंदुओं को अपने ही मंदिरों में दर्शन के लिए टैक्स देना पड़ा।
2. हिंदुओं पर बार–बार हमले — यह कोई इत्तेफाक नहीं
पिछले कुछ दशकों में हिंदुओं पर भयावह हमले हुए हैं, जिन्हें या तो नजरअंदाज किया गया या उन्हें “हिंदू प्रतिरोध” के रूप में दिखाया गया।
कुछ गंभीर घटनाएं:
- गोधरा ट्रेन कांड (2002):
अयोध्या से लौट रहे 70 रामभक्तों को सुनियोजित मुस्लिम भीड़ ने ट्रेन में जिंदा जला दिया। परंतु दुनिया ने सिर्फ गुजरात दंगों की बात की—गोधरा को दबा दिया गया। - शीला दीक्षित की बेटी का मामला:
एक कांग्रेस नेता की बेटी को लव जिहाद और जबरन धर्मांतरण का शिकार होना पड़ा, लेकिन न कोई सेक्युलर खड़ा हुआ, न कोई महिला संगठन।
लव जिहाद के मामले:
- दिल्ली में एक हिंदू युवती, डॉक्टर, की मुस्लिम युवक द्वारा हत्या।
- एक मुस्लिम युवक ने सोशल मीडिया के जरिए 350 से अधिक हिंदू लड़कियों को जाल में फंसाया।
- एक पंडित की बेटी को प्रेमजाल में फंसाकर बर्बरतापूर्वक धर्मांतरण कराया गया।
- 1993 मुंबई बम धमाके:
बाबरी ढांचे के विरोध में आईएसआई–प्रेरित दाऊद गैंग ने 1200 लोगों को मार डाला।
फिर भी आज दाऊद पर फिल्में बनती हैं, और उसका समुदाय “पीड़ित” कहलाता है।
बालासोर रेल दुर्घटना (2023):
288 हिंदुओं की जान गई, फिर भी मीडिया और सरकार ने जांच बंद कर दी, और इसे “तकनीकी भूल” कहकर रफा-दफा कर दिया।
3. हिंदू समाज का आंतरिक विघटन — हमारी सबसे बड़ी कमजोरी
जहां कट्टरपंथी एकजुट हैं, वहीं हिंदू समाज जाति, भाषा और क्षेत्र के नाम पर बंटा हुआ है।
- ब्राह्मण बनाम दलित की झूठी कहानियां चलाई जाती हैं।
- दक्षिण भारत में द्रविड़ आंदोलन सनातन धर्म को गालियां देता है।
- तथाकथित बुद्धिजीवी और मीडिया हिंदू प्रतीकों को ‘पिछड़ा’ बताकर मज़ाक उड़ाते हैं।
यह विभाजन हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है जिसे विपक्ष और जिहादी ताकतें सुनियोजित ढंग से भुना रही हैं।
4. न्यायपालिका और मीडिया की पक्षपातपूर्ण भूमिका
- हिंदू संतों को बिना ठोस सबूत जेल भेजा जाता है — जैसे आसाराम बापू और नित्यानंद — लेकिन जाकिर नाईक और मौलाना साद को संरक्षण मिलता है।
- हिंदू प्रदर्शन को “उन्माद” कहा जाता है, लेकिन अल्पसंख्यक हिंसा को “आक्रोश” या “पीड़ा” कहा जाता है।
- सेक्युलर मीडिया लगातार हिंदुओं के खिलाफ एजेंडा चलाता है, और असली अपराधियों को बचाता है।
5. असली खतरा: हिंदू समाज की चुप्पी और लापरवाही
जब पूरा तंत्र सनातन के खिलाफ खड़ा है, तब हिंदू समाज:
- त्योहारों और सोशल मीडिया में व्यस्त है,
- ‘सांप्रदायिक’ कहे जाने के डर से चुप है,
- छोटे-छोटे मतभेदों में उलझा हुआ है।
यह चुप्पी हमारे विनाश का कारण बन रही है।
अब नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी
ये सभी घटनाएं किसी “अचानक हुई गलती” का नतीजा नहीं हैं। ये एक सोची–समझी योजना के तहत सनातन को मिटाने का प्रयास हैं। अब भी अगर हिंदू नहीं जागा, तो आने वाली पीढ़ियों को गुलामी, भय और आत्मविस्मृति का जीवन मिलेगा।
अब समय है कि हम:
- तुष्टीकरण की राजनीति करने वालों को नकारें,
- जाति–पंथ–भाषा से ऊपर उठकर एकजुट हों,
- अपने बच्चों को धर्म, संस्कृति और इतिहास की शिक्षा दें,
- धर्मनिष्ठ नेताओं और संगठनों को समर्थन दें,
जैसे मोदी-योगी-डोभाल जिन्होंने हिन्दू हित में दृढ़ता दिखाई है, - और जरूरत पड़ने पर हर मोर्चे पर तैयार रहें — मानसिक, बौद्धिक, कानूनी और आत्मरक्षा में।
यह साफ़ दिखाई देता है कि मुस्लिम तुष्टीकरण और हिंदू विघटन सनातन सभ्यता की स्थिरता और आत्मबल के लिए गंभीर खतरे बन चुके हैं। एक तरफ़ जहां मुस्लिम तुष्टीकरण ने राजनीतिक संतुलन को प्रभावित किया है, वहीं दूसरी ओर हिंदू समाज की आंतरिक असंगठितता उसे भीतर से कमजोर कर रही है।
इसके साथ ही, यह भी जरूरी है कि हम इन दोनों संकटों को केवल विचार न मानें, बल्कि इन्हें अपनी सांस्कृतिक सुरक्षा से जोड़कर देखें।
अतः, यदि हमें सनातन सभ्यता की जड़ों को बचाना है, तो जागरूकता, एकता और स्पष्ट दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ना अब अनिवार्य हो गया है।
याद रखें:
“जो हिंदू आज धर्म की रक्षा नहीं करेगा, कल उसे कोई धर्म नहीं बचाएगा।”
यह राजनीति नहीं, सभ्यता और अस्तित्व की लड़ाई है।
हिंदू राष्ट्र कोई सपना नहीं, बल्कि आवश्यकता बन चुकी है।
आओ उठें, जागें, और एकजुट हो जाएं —
जब तक लक्ष्य पूरा न हो, तब तक रुकें नहीं!
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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