आज का हिन्दू समाज आधुनिकता की दौड़ में अपनी जड़ों से दूर होता जा रहा है। जिस सनातन सभ्यता ने उसे पहचान, मूल्य और जीवन का उद्देश्य दिया, वही अब उपेक्षा का शिकार है। यह लेख उस गहरी नींद से जगाने का प्रयास है, जिसमें हमारा समाज अपनी ही विरासत को भूलता जा रहा है।
नींद में डूबा हिन्दू समाज
1. एक महान सभ्यता की खामोश नींद
आज का हिन्दू समाज अपनी प्राचीन विरासत और अमर ज्ञान के बावजूद एक खतरनाक आराम और आत्ममुग्धता में जी रहा है।
लोग व्यस्त हैं —
- व्यापार बढ़ाने और पैसा कमाने में,
- आलीशान घर और प्रतिष्ठा बनाने में,
- परिवार और मनोरंजन में डूबे रहने में।
- लेकिन इसी चकाचौंध के बीच हमने भूल गए हैं —
समाज, धर्म और राष्ट्र की रक्षा का कर्तव्य।
जब हिंदू भौतिक सुखों में डूबे हैं, तब दूसरी ओर राष्ट्र–विरोधी, धर्मविरोधी और विदेशी हितों से जुड़े तत्व लगातार भारत की जड़ों को कमजोर करने में लगे हुए हैं।
इसका परिणाम:
समाज आध्यात्मिक रूप से खोखला हो गया है,
युवा पीढ़ी संस्कृति से कट गई है,
और सामूहिक आत्मरक्षा की ज्वाला ठंडी पड़ गई है।
2. समाज और धार्मिक नेतृत्व की विफलता
कभी हिंदू संगठन और धार्मिक संस्थान त्याग, सेवा और एकता के प्रतीक थे।
पर आज कई जगह स्थिति चिंताजनक है —
- सामाजिक संगठन अहंकार, गुटबाजी और निजी स्वार्थों में उलझे हैं।
- धार्मिक नेता अपने आश्रमों और मंदिरों को संपत्ति के साम्राज्य में व्यस्त हैं।
- समुदाय संगठन अपने अहंकार आपसी प्रतिस्पर्धा में एक-दूसरे को नीचा दिखा रहे हैं।
- जो समाज को दिशा दिखाने चाहिए थे, वे अपने अहंकार को पाल रहे हैं।
जो धर्म की रक्षा करने वाले थे, वे आराम और प्रतिष्ठा के घेरे में हैं। - परिणामस्वरूप समाज आज नेतृत्वविहीन, बिखरा और दिशाहीन हो चुका है।
- जब धर्म पर आघात होता है, जब मंदिरों पर हमले होते हैं, जब साधुओं और हिंदुओं की हत्या होती है
- तो इन नेताओं की चुप्पी सबसे बड़ी गद्दारी बन जाती है।
3. निर्भरता का भ्रम
- बहुत से हिंदू सोचते हैं —“देश और धर्म की रक्षा सरकार का काम है।”
यह सोच बहुत बड़ी भूल है। - सरकार उतनी ही मजबूत होती है, जितना मजबूत समाज उसके पीछे खड़ा होता है।
- कोई भी नेता, चाहे कितना ही महान क्यों न हो, सोए हुए समाज को नहीं बचा सकता।
- धर्म की रक्षा कानूनों से नहीं, कर्मों से होती है।
अगर समाज निष्क्रिय है —
- तो सबसे मजबूत सेना भी शांति नहीं ला सकती,
- सबसे अच्छे कानून भी संस्कृति की रक्षा नहीं कर सकते,
- और सबसे दूरदर्शी नेता भी अकेला कुछ नहीं कर सकता।
- सरकार सीमाओं की रक्षा करती है, पर सभ्यता की रक्षा समाज करता है।
इसलिए हर हिंदू को समझना होगा —
- राष्ट्रवादी और सनातन समर्थक सरकार का साथ देना कोई राजनीति नहीं, यह धर्म का कर्तव्य है।
- समाज को सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होना चाहिए — राजनीतिक, सांस्कृतिक और नैतिक स्तर पर।
- अगर समाज सोया रहेगा, तो सबसे श्रेष्ठ नेतृत्व भी असहाय रह जाएगा।
4. आने वाला खतरा — इतिहास की पुनरावृत्ति
- अगर यह निष्क्रियता जारी रही, तो परिणाम भयावह होंगे।
इतिहास पहले ही चेतावनी दे चुका है — - पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं का क्या हाल हुआ:
- जो कभी बहुसंख्यक थे, आज वे उत्पीड़ित अल्पसंख्यक बन गए हैं।
- मंदिर तोड़े गए, महिलाएँ अगवा हुईं, धर्मांतरण हुआ। भीषण नरसंहार हुआ।
- पूरा समाज भय और अपमान में जी रहा है।
- क्या हम चाहते हैं कि भारत भी वही गलती दोहराए?
अगर आज का राष्ट्रवादी और सनातन समर्थक नेतृत्व कमजोर पड़ा, तो सत्ता फिर उन्हीं हाथों में जाएगी जो:
- तुष्टिकरण के नाम पर आतंकियों को बढ़ावा देते हैं,
- वोट बैंक के लिए अवैध घुसपैठ करवाते हैं,
- और हिंदू धर्म का अपमान “सेक्युलरिज्म” के नाम पर करते हैं।
ऐसे भविष्य में भारत — “विश्वगुरु” बनने के बजाय,
- पाकिस्तान और बांग्लादेश की तरह टूटे, डरे और कमजोर देश में बदल जाएगा।
- और हिंदू अपने ही देश में शरणार्थी बन जाएंगे।
5. जागरण का मार्ग — मौन से प्रतिरोध तक
- अब समय है मौन तोड़ने का।
- अब समय है जागरण, एकता और संगठित कार्यवाही का।
हर सनातनी को चाहिए कि वह —
- अपने धर्म, परिवार, और परंपराओं से पुनः जुड़ जाए,
- युवाओं को सच्चा इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम की वास्तविकता सिखाए,
- राष्ट्रवादी सरकार को राजनीतिक और सामाजिक समर्थन दे,
- हिंदू संगठनों को एकजुट करे,
- मंदिरों और साधुओं को समाजिक उत्तरदायित्व के लिए प्रेरित करे,
- विदेशी प्रोपेगैंडा और झूठी खबरों का बौद्धिक प्रतिरोध करे।
भगवद गीता में श्रीकृष्ण ने कहा —
- “धर्मो रक्षति रक्षितः” — जो धर्म की रक्षा करता है, धर्म उसकी रक्षा करता है।
अगर अब हम नहीं जागे, तो न कानून, न सेना, न नेता — कोई भी हमें नहीं बचा पाएगा।
6. धर्म–संकल्प — हमारा पवित्र कर्तव्य
हर हिंदू परिवार को एक संकल्प लेना चाहिए:
- धर्म और भारत की रक्षा को अपना व्यक्तिगत दायित्व समझें,
- अपने आसपास के कम से कम दस परिवारों को जागरूक करें,
- राष्ट्रवादी और सनातन समर्थक शासन का साथ दें,
- समाज में एकता और आत्मबल की भावना जगाएँ,
- बच्चों को अपने धर्म, संस्कृति और वीरता की परंपरा से जोड़ें।
यह आह्वान किसी व्यक्ति या दल के लिए नहीं, बल्कि धर्म, संस्कृति और अस्तित्व के लिए है।
7. अंतिम विकल्प — उठो या मिटो
- भारत आज एक निर्णायक मोड़ पर है। अगले कुछ वर्ष तय करेंगे
- क्या हम आध्यात्मिक महाशक्ति बनेंगे या गुलामी का इतिहास दोहराएँगे।
- अब यह प्रश्न सरकार से नहीं, समाज से है
- क्या हम अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार हैं?
अगर समाज जागेगा और एकजुट होगा —
- भारत “विश्वगुरु” के रूप में उभरेगा,
- सनातन धर्म विश्व के लिए मार्गदर्शक बनेगा,
- और हमारे पूर्वजों के बलिदान सफल होंगे।
पर यदि हम सोए रहे
- तो स्वतंत्रता खो देंगे,
- धर्म का उपहास बनेगा,
- और आने वाली पीढ़ियाँ हमारे मौन को श्राप देंगी।
अब निर्णय हमारा है — धर्म के साथ उन्नति या धर्म से वंचित विनाश।
8. सभ्यता का आह्वान
अब समय है उठने का —
- दर्शक नहीं, रक्षक बनने का,
- बहस नहीं, कर्म करने का,
- विभाजन नहीं, एकता का।
- हर हिंदू हृदय में यह संकल्प जागे
- हर हिंदू हाथ समाज के लिए काम करे,
- हर हिंदू स्वर गूंजे
“भारत तब तक जियेगा, जब तक सनातन धर्म जियेगा!”
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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