निर्णायक सात वर्ष – केवल राजनीति नहीं, सभ्यतागत संघर्ष
- आने वाले सात वर्ष — 2025 से 2032 — भारत के इतिहास के सबसे निर्णायक वर्ष होंगे। यह काल केवल चुनावी राजनीति या सत्ता परिवर्तन का नहीं, बल्कि भारत की आत्मा, सनातन चेतना और सभ्यतागत अस्तित्व के संघर्ष का समय है।
- आज भारत जिस दौर से गुजर रहा है, वह सूचनात्मक युद्ध (information warfare), मनोवैज्ञानिक युद्ध (psychological warfare) और भूराजनीतिक युद्ध (geopolitical warfare) का संगम है।
- इस युद्ध का उद्देश्य केवल भारत की सीमाओं पर कब्जा नहीं, बल्कि भारत के मन, समाज और संस्कारों को तोड़ना है।
👉 यह संघर्ष धर्म और अधर्म का है, सत्य और असत्य का है — और आने वाले सात वर्षों में यह तय होगा कि भारत “विश्वगुरु” बनेगा या “वसूलों का गुलाम” रहेगा।
नॉर्थ–ईस्ट और “सिलिगुड़ी कॉरिडोर” का महत्व
- सिलिगुड़ी कॉरिडोर, जिसे “चिकन नेक” भी कहा जाता है, मात्र 22–25 किलोमीटर चौड़ा है — लेकिन यही संकीर्ण भूमि भारत की मुख्य भूमि को पूरे नॉर्थ–ईस्ट से जोड़ती है।
- यदि इस पर नियंत्रण खो गया, तो अरुणाचल, असम, मेघालय, नागालैंड, मिज़ोरम, त्रिपुरा और मणिपुर — यह सातों राज्य भारत से कट जाएंगे।
- यह क्षेत्र दशकों से विदेशी मिशनरी नेटवर्क, जेहादी तत्त्वों और वामपंथी संगठनों का केंद्र बना हुआ है।
- शरजील इमाम का बयान — “असम और नॉर्थ–ईस्ट को काट देना चाहिए” — इसी गहरी साजिश की झलक था।
👉 नॉर्थ–ईस्ट की अस्थिरता का मतलब है भारत के पूर्वी द्वार का बंद होना — और यह किसी भी राष्ट्र के लिए रणनीतिक आत्महत्या होगी।
नॉर्थ–ईस्ट की बदलती डेमोग्राफी – गहरी साजिश का सबूत
- 1951 में नागालैंड में 80% पारंपरिक विश्वास वाले लोग थे — आज वहाँ 88% ईसाई हैं।
- मिज़ोरम में 1951 में 15% ईसाई थे — आज 87% से अधिक हैं।
मेघालय और नागालैंड में चर्चों का प्रभाव इतना बढ़ गया है कि पारंपरिक जनजातीय धर्म लगभग मिट चुके हैं। - त्रिपुरा में बांग्लादेशी प्रवासी 1951 में 8% थे — आज 30% से ऊपर हैं, जबकि मूल त्रिपुरी अब केवल 28% बचे हैं।
- असम में मुस्लिम जनसंख्या 1951 में 19% थी — 2011 तक यह 34% हो गई, और कई जिलों में हिंदू अब अल्पसंख्यक हैं।
👉 यह केवल जनसंख्या परिवर्तन नहीं, बल्कि एक सुनियोजित डेमोग्राफिक आक्रमण है, जो भारत को भीतर से कमजोर करने के लिए चलाया जा रहा है।
विदेशी ताक़तों की चालें – अमेरिका और चीन का खेल
अमेरिका अपने “कलर रेवोल्यूशन” मॉडल के ज़रिए देशों में अस्थिरता फैलाने में माहिर है।
- वह युवाओं को आंदोलन की ढाल बनाता है, सोशल मीडिया के जरिए “लोकतंत्र” के नाम पर विद्रोह भड़काता है — जैसे श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश में हुआ।
- दूसरी ओर, चीन “अखंड चीन” की सोच लेकर चल रहा है। वह अरुणाचल और लद्दाख पर दावा करता है और नॉर्थ–ईस्ट में असंतोष को बढ़ावा देता है।
- अमेरिका और चीन दोनों का साझा उद्देश्य है — भारत को कमजोर और विभाजित रखना।
- वे भारत को एक प्रतिस्पर्धी शक्ति के रूप में नहीं, बल्कि एक नियंत्रित उपभोक्ता बाज़ार के रूप में देखना चाहते हैं
- समाज की कमजोरियां – आंतरिक विभाजन का खतरा
- भारत की सबसे बड़ी कमजोरी है — उसका आंतरिक विभाजन।
नॉर्थ–ईस्ट के युवाओं को “चिंकी” और “चाइनीज़” कहकर उनका अपमान किया जाता है, जिससे उनमें अलगाव की भावना पैदा होती है। - दूसरी ओर, बिहार और उत्तर प्रदेश के युवाओं को अन्य राज्यों में “घुसपैठिया” या “अनपढ़” कहा जाता है — यह क्षेत्रीय भेदभाव उन्हें देश से दूर करता है।
- इन्हीं कमजोरियों को विदेशी ताक़तें अपने फायदे के लिए भुना रही हैं।
Reddit, Discord, Instagram और X जैसे प्लेटफार्मों पर ब्रेनवॉशिंग नैरेटिव चलाए जा रहे हैं।
👉 युवाओं को राष्ट्रवाद, धर्म और परिवार से काटकर “फ्रीडम” और “रेवोल्यूशन” के झूठे जाल में फंसाया जा रहा है।
सोशल मीडिया – नया युद्धक्षेत्र
- आज सोशल मीडिया केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि युद्ध का नया मैदान बन चुका है।
- Reddit और Discord जैसे मंचों पर “भारत के खिलाफ हेट ग्रुप्स” चल रहे हैं।
- Nepal और Bangladesh में हुए “Gen Z प्रोटेस्ट” भारत के लिए मॉडल बन चुके हैं।
- अब खुले मंचों पर सवाल उठ रहे हैं — “संसद कब जलेगी?”, “पीएम आवास पर हमला कब होगा?” — यह कोई सामान्य असंतोष नहीं, बल्कि योजनाबद्ध ब्रेनवॉशिंग है।
👉 भारत में “टूलकिट संस्कृति” और “फेक नैरेटिव मशीन” मिलकर युवाओं को हिंदू-विरोधी, राष्ट्र-विरोधी और नास्तिक बना रही हैं।
संभावित रणनीति – भारत को धीरे धीरे तोड़ो
भारत को नष्ट करने की रणनीति अचानक युद्ध नहीं, बल्कि “हजारों छोटे वार” करने की है।
- हर महीने, हर राज्य में किसी न किसी प्रकार की हिंसा, दंगा, या धार्मिक विवाद भड़काया जाएगा।
- हिंदू मंदिरों, संतों और राष्ट्रप्रतीकों पर हमला होगा।
- मीडिया और विदेशी NGO “मानवाधिकार” के नाम पर सरकार को बदनाम करेंगे।
👉 यह रणनीति पाकिस्तान की 1990s की नीति की ही अगली कड़ी है — धीरे–धीरे भीतर से भारत को तोड़ने की।
परिवार और समाज की जिम्मेदारी
- माता-पिता आज बच्चों के डिजिटल जीवन से अनजान हैं।
- कौन-से ऐप पर बच्चे समय बिता रहे हैं, कौन-से विचार उन्हें प्रभावित कर रहे हैं — यह सब एक “अदृश्य खतरा” बन चुका है।
- अगर यह लापरवाही जारी रही, तो घरों में ही “भारत-विरोधी मानसिकता” जन्म लेगी।
👉 परिवार ही राष्ट्र की पहली रक्षा पंक्ति है — यदि घर में संस्कार और जागरूकता नहीं, तो कोई सरकार सुरक्षा नहीं दे सकती।
सनातन समाधान – साधना, अनुशासन और आत्मरक्षा
AI और Deepfake के युग में सच और झूठ की रेखा धुंधली हो चुकी है।
इसलिए समाधान केवल तकनीक में नहीं, बल्कि आध्यात्मिकता में है।
🕉 साधना — आंतरिक शांति और सत्य की पहचान के लिए।
⚔ अनुशासन — विचार और कर्म में संतुलन लाने के लिए।
🛡 आत्मरक्षा — शरीर और समाज की सुरक्षा के लिए शस्त्र-विद्या का अभ्यास।
🙏 यही सनातन साधन हमें भ्रम से बचाकर सत्य के पथ पर रखेंगे।
धर्मयुद्ध और ऐतिहासिक चेतावनी
- यह धर्मयुद्ध सीमाओं पर नहीं, बल्कि समाज की चेतना के भीतर चल रहा है।
- गीता का संदेश यही है — “अधर्म का नाश और धर्म की स्थापना कर्म से ही संभव है।”
- यदि हिंदू समाज ने जागरूकता और तैयारी नहीं की, तो इतिहास दोहराएगा —
- नोआखली का कत्लेआम, डायरेक्ट एक्शन डे, कश्मीर का दर्द — फिर लौट आएंगे।
- रामायण और महाभारत हमें सिखाते हैं — जब धर्म की रक्षा नहीं होती, तो समाज पतन की ओर जाता है।
- हमें देश और धर्म की रक्षा के लिए अधर्म का नाश करना ही होगा।
- अंतिम संदेश – निर्णय हमारे हाथ में
- 2025 से 2032 का सात वर्ष का यह काल केवल समय नहीं, बल्कि भाग्य का लेख है।
- क्या हम भ्रम में रहकर इतिहास में मिट जाएंगे, या जाग्रत होकर स्वर्णिम भविष्य का निर्माण करेंगे?
👉 अब समय है कि एकजुट, अनुशासित और राष्ट्रवादी हिंदू समाज सामने आए।
👉 केवल वही समाज भारत को सुरक्षित, संप्रभु, प्रगतिशील और समृद्ध बना सकता है।
👉 विपक्षी “ठगबंधन” विदेशी शक्तियों और राष्ट्रविरोधी तत्वों के साथ मिलकर देश को अस्थिर करने पर तुला है — पर यदि हिंदू समाज संगठित हुआ, तो कोई ताकत भारत को नहीं झुका सकेगी।
🚩 यह निर्णय आज हमारे हाथ में है — क्या हम केवल एक नागरिक हैं, या सनातन भारत की चेतना के सच्चे उत्तराधिकारी। 🚩
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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