न्यायपालिका और चुनाव आयोग से अपील
आज हम एक ऐसे मोड़ पर खड़े हैं जहाँ लोकतंत्र और जिम्मेदार शासन के मूल सिद्धांत खतरे में हैं। वोट के लिए मुफ्त उपहारों का वादा गंभीर सवाल खड़े करता है:
क्या यह खुला रिश्वतखोरी नहीं है?
क्या यह चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता को बाधित नहीं करता?
क्या ऐसे प्रलोभनों के बीच चुनाव निष्पक्ष हो सकते हैं?
“मुफ्तखोरी” की हकीकत
मुफ्त लैपटॉप, साइकिल, स्कूटर, बिजली, पानी, कर्ज माफी और सस्ते अनाज का वादा केवल अल्पकालिक लालच है। ये करदाताओं की कड़ी मेहनत की कमाई की कीमत पर आते हैं, जो मध्यम वर्ग पर भारी बोझ डालते हैं और योग्यता और उत्पादकता को हतोत्साहित करते हैं।
मुख्य सवाल:
- क्या चुनाव विकास के लिए हैं या मुफ्त चीजें बांटने के लिए?
- क्या सार्वजनिक धन के उपयोग पर कोई जवाबदेही है?
- क्या करदाता इस बोझ को उठाने के लिए मजबूर रहेंगे?
समाज पर प्रभाव:
ऐसी प्रथाएँ:
1.आत्मनिर्भरता खत्म करती हैं और निर्भरता को बढ़ावा देती हैं।
2.उन संसाधनों को खत्म करती हैं जिन्हें दीर्घकालिक विकास के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
3.वोट बैंक बनाए रखने के लिए गरीबी को स्थायी रूप से बनाए रखती हैं।
क्या बदलने की जरूरत है?
हम निम्नलिखित कदमों का सुझाव देते हैं:
- मुफ्तखोरी के खिलाफ कानून:
राजनीतिक दलों को प्रलोभन देने से रोकने के लिए सख्त कानून बनाए जाएं।
- विकास पर ध्यान दें:
करदाताओं का पैसा निम्नलिखित के लिए इस्तेमाल हो:
बुनियादी ढांचे का निर्माण (सड़कें, पुल, रेल मार्ग)।
रोजगार सृजन।
शिक्षा, स्वास्थ्य और सार्वजनिक सेवाओं में सुधार।
- आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दें:
मुफ्त चीजें बांटने की बजाय कौशल विकास, उद्यमिता और नौकरी सृजन की परिस्थितियाँ बनाएं।
- जनता के प्रति जवाबदेही:
नेताओं को खर्चों का औचित्य साबित करने और नागरिकों के लिए दीर्घकालिक लाभ दिखाने के लिए बाध्य किया जाए।
- निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करें:
चुनाव आयोग को वादों की सख्ती से निगरानी करनी चाहिए और निष्पक्षता सुनिश्चित करनी चाहिए।
बुद्धिमानों की बातें:
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि सरकार को केवल न्याय, शिक्षा और स्वास्थ्य के लिए ही काम करना चाहिए। इसके अलावा, लोगों को जो चाहिए, उन्हें कड़ी मेहनत से अर्जित करना चाहिए।
कार्यवाई के लिए आह्वान:
आइए हम एक निष्पक्ष और प्रगतिशील प्रणाली की मांग करने के लिए एकजुट हों, जो प्रयास और जिम्मेदारी को बढ़ावा दे, निर्भरता को नहीं। इस संदेश को व्यापक रूप से साझा करें ताकि यह चुनाव आयोग, न्यायपालिका और नीति निर्माताओं तक पहुंचे।
यदि राजनीतिक नेता वास्तव में देना चाहते हैं, तो इसे अपनी निजी संपत्ति से दें, न कि करदाताओं के पैसे से। आइए, एक ऐसा देश बनाएं, जहाँ हर नागरिक सम्मान और मेहनत से अपना योगदान दे और प्रगति करे।
बेहतर भारत के लिए एक साथ:
इस संदेश को सोशल मीडिया पर साझा करें।
इसे दोस्तों और परिवार के साथ चर्चा करें।
नेताओं से अल्पकालिक लाभ के बजाय दीर्घकालिक विकास को प्राथमिकता देने का आग्रह करें।
जय हिंद – जय भारत!
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