भारत में जब भी दंगाई भीड़ सरकारी या निजी संपत्ति को आग के हवाले करती है, तब कौन से मौलिक अधिकार लागू होते हैं? यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने 13 नवंबर 2024 को बुलडोजर कार्रवाई पर टिप्पणी करते हुए कहा था:
> “Bulldozer demolitions infringe the right to shelter, guaranteed under Articles 19 and 21. Depriving such innocent people of their right to life by removing shelter from their heads, in our considered view, would be wholly unconstitutional.”
जस्टिस गवई ने यह भी कहा था कि एक व्यक्ति जीवन में एक बार अपने परिवार के लिए घर बनाता है और उसे किसी अपराध के लिए तोड़ देना सही नहीं है। लेकिन मीलॉर्ड, क्या आपने यह भी सोचा कि वह अपराधी, जो दंगे, लूटपाट और आगजनी करता है, क्या कभी किसी के घर–परिवार के बारे में सोचता है? क्या बलात्कार, हत्या और आगजनी करते समय उसे संविधान के अनुच्छेद 19 और 21 की याद आती है?
होली पर भारत जल उठा, लेकिन संविधान चुप रहा
बीते दिनों होली के अवसर पर कई राज्यों में सरकारी और निजी संपत्तियों को आग लगा दिया गया। इंदौर समेत कई शहरों में भारत की विश्व कप जीत के विरोध में मस्जिदों से निकली भीड़ ने करोड़ों की संपत्ति फूंक दी। वे लोग, जो एक पैसा टैक्स नहीं देते, जिन्होंने जीवनभर कभी देश के विकास में योगदान नहीं दिया, वे सरकारी इमारतों, ट्रेनों, बसों, दुकानों और घरों को जलाकर राख कर देते हैं।
जस्टिस गवई, आप बताइए—
जब कोई अपना घर जीवनभर की कमाई से बनाता है, तो क्या उसे जलाना अपराध नहीं है? क्या सरकारी संपत्ति, जो जनता के टैक्स से बनी है, की रक्षा नहीं होनी चाहिए? क्या यह संपत्ति भी अनुच्छेद 19 और 21 के अंतर्गत नहीं आती?
बुलडोजर बनाम आगजनी: नियमों का भेदभाव क्यों?
जब दंगाइयों के अवैध निर्माण गिराने की बात आती है, तो आप कहते हैं—
- नियमों का पालन होना चाहिए।
- नोटिस देना चाहिए।
- बिना प्रक्रिया के तोड़फोड़ नहीं हो सकती।
लेकिन जब यही दंगाई सरकारी और निजी संपत्ति जलाकर राख कर देते हैं, तो कौन सा कानून लागू होता है?
- क्या वे किसी को नोटिस देकर आग लगाते हैं?
- क्या वे किसी से पूछकर लूटपाट करते हैं?
अगर बुलडोजर से कार्रवाई करना संविधान के खिलाफ है, तो क्या यह आगजनी संविधान–सम्मत है? क्या आग लगाने से पहले संविधान का अनुच्छेद 19 और 21 लागू नहीं होता?
सवाल जो आपको खुद से पूछने चाहिए:
- जब दंगाई सरकारी संपत्ति जलाते हैं, तब संविधान मौन क्यों हो जाता है?
- जब हिंदुओं की दुकानों और घरों को आग के हवाले किया जाता है, तो सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान क्यों नहीं लेता?
- जब निर्दोष नागरिकों की गाड़ियां और बाजार लूट लिए जाते हैं, तो कोई मानवाधिकार संगठन आगे क्यों नहीं आता?
- जब हिंदू त्योहारों पर हिंसा होती है, तब कोई बुद्धिजीवी निष्पक्षता क्यों नहीं दिखाता?
न्याय केवल किताबों से नहीं, जमीनी हकीकत से होना चाहिए
मीलॉर्ड, सबसे बड़ी समस्या यह है कि आगजनी करने वालों की हरकतें कभी आपकी संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचातीं। इसी कारण न्यायपालिका का नजरिया एकतरफा दिखता है। बुलडोजर कार्रवाई पर नियम बनाने वाले क्या कभी आगजनी और दंगों पर भी कोई सख्त कानून बनाएंगे?
देश के हर नागरिक को सुरक्षा चाहिए—न सिर्फ घर तोड़ने से, बल्कि घर जलाने वालों से भी। संविधान का सम्मान तभी होगा जब दंगाइयों और अपराधियों पर समान रूप से कार्रवाई होगी। अगर कोई संपत्ति जलाए, तो उसकी भरपाई उसी से कराई जानी चाहिए। बुलडोजर से डराने की जरूरत नहीं, बल्कि आगजनी करने वालों से डर खत्म करने की जरूरत है।
“न्याय सबके लिए समान होना चाहिए, न कि सिर्फ उन लोगों के लिए जो सबसे ज्यादा शोर मचाते हैं।”