भारत की आत्मा सनातन धर्म है। जब-जब सनातन पर हमला हुआ, भारत कमजोर हुआ और जब-जब सनातन जागा, भारत फिर से विश्वगुरु बना।
आज भारत के सामने सबसे बड़ी बाधा बाहरी ताक़तें नहीं, बल्कि अंदरूनी कमजोरी – न्याय प्रणाली की ढिलाई और तुष्टिकरण है।
2. इतिहास से सबक – न्याय और राष्ट्रविरोध
- काशी और मथुरा: मुग़लों ने मंदिर ध्वस्त कर मस्जिदें खड़ी कीं। अगर उस समय सत्ता और न्याय प्रणाली ने राष्ट्रहित में निर्णय लिया होता, तो आज हमारी धरोहरें सुरक्षित होतीं।
- कश्मीर: पंडितों का नरसंहार और पलायन हुआ। अदालतें और व्यवस्था मौन रहीं।
- सोमनाथ मंदिर: बार-बार तोड़ा गया, पर कोई न्यायिक या शासकीय सुरक्षा नहीं मिली।
- पाकिस्तान और बांग्लादेश: वहाँ के हिंदुओं का अस्तित्व मिटा, क्योंकि न्याय और शासन इस्लामी कट्टरता के सामने झुक गया।
👉 सवाल है – क्या हम चाहते हैं कि यही इतिहास भारत में दोहराया जाए?
3. न्यायपालिका और दुर्भावनापूर्ण याचिकाएँ
आज न्यायपालिका के सामने असली चुनौती यह है कि –
राष्ट्रहितकारी योजनाओं जैसे CAA, NRC, काशी–मथुरा, राम मंदिर, सेंट्रल विस्टा को रोकने के लिए विदेशी फंड से चलने वाले NGO और नकली एक्टिविस्ट याचिकाएँ दाखिल करते हैं।
इन याचिकाओं के पीछे एजेंडा है:
- भारत की प्रगति रोकना।
- हिंदू समाज को दबाना।
- वोटबैंक राजनीति को बचाना।
- विदेशी ताक़तों के हितों को साधना।
👉 अगर अदालतें इन याचिकाओं को सुनती रहीं, तो न्याय नहीं, बल्कि राष्ट्रविरोधी ताक़तों को बढ़ावा मिलत है।
4. न्यायपालिका की असली भूमिका
न्यायालय का धर्म है राष्ट्र की सुरक्षा और विकास का सहयोग करना।
उन्हें यह समझना होगा कि –
- हर विकास योजना राष्ट्रहित में है।
- हर दुर्भावनापूर्ण याचिका राष्ट्रद्रोह की श्रेणी में आती है।
- न्याय केवल व्यक्तिगत अधिकारों का ही नहीं, बल्कि राष्ट्र और सनातन की रक्षा का माध्यम होना चाहिए।
👉 सनातन और भारत की रक्षा न्यायपालिका के धर्म का अनिवार्य हिस्सा है।
5. न्याय में गति लाने का उपाय
- अनावश्यक और दुर्भावनापूर्ण याचिकाओं को तुरंत खारिज करना।
- राष्ट्रविरोधी याचिकाएँ लाने वालों पर दंडात्मक कार्यवाही।
- Genuine मामलों को समयबद्ध सुनवाई।
- सरकार की विकास योजनाओं को तेज़ी से लागू करने में सहयोग।
6. भावनात्मक दृष्टिकोण
- अगर राम मंदिर पर फैसला साहस के साथ न हुआ होता, तो क्या कभी अयोध्या अपना गौरव लौटाता?
- अगर काशी और मथुरा पर याचिकाएँ लगातार खारिज होती रहीं, तो क्या हिंदू समाज अपने देवस्थलों को बचा पाएगा?
- अगर कश्मीर में न्याय समय पर हुआ होता, तो क्या लाखों हिंदू शरणार्थी बनते?
👉 न्यायपालिका को यह समझना होगा कि हर देरी, हर दुर्भावनापूर्ण याचिका, सनातन और भारत के अस्तित्व पर प्रहार है।
7. राष्ट्रीय आह्वान
- हमें ऐसी न्याय व्यवस्था चाहिए जो राष्ट्रहित और सनातन की रक्षा को सर्वोपरि माने।
- न्यायपालिका को चाहिए कि वह विकास योजनाओं का सहयोगी बने, अवरोधक नहीं।
- राष्ट्रभक्तों को चाहिए कि वे न्यायपालिका पर दबाव बनाएँ कि वह विदेशी एजेंडों और वोटबैंक राजनीति से प्रभावित न हो।
8. निष्कर्ष
भारत तभी विश्वगुरु बनेगा जब न्यायपालिका –
- राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखे,
- दुर्भावनापूर्ण याचिकाओं पर रोक लगाए,
- और सनातन की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभाए।
> अगर न्यायपालिका सोई रही, तो इतिहास दोहराया जाएगा।
> अगर न्यायपालिका जागी, तो भारत अमर रहेगा।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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