प्रस्तावना: धर्म, आस्था और राजनीतिक दमन
- दिल्ली की सर्वोच्च न्यायालय में 71 वर्षीय वरिष्ठ वकील ने मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की ओर जूता फेंका।
- उनका नारा था, “हम सनातन का अपमान नहीं सहेंगे।” यह प्रतिक्रिया धर्म की चोट पर उपजी भावनात्मक अभिव्यक्ति थी, न कि जातिवाद या व्यक्तिगत द्वेष।
- बावजूद इसके, लेफ्ट मीडिया ने इसे केवल “दलित सीजेआई पर हमला” बताकर घटना का असली मुद्दा दबा दिया।
- यह घटना दर्शाती है कि कैसे वामपंथी और लेफ्ट मीडिया हर धार्मिक या सांस्कृतिक विरोध को जातिवाद या धर्म-विरोधी करार देते हैं।
1. हिंदुओं का मौन सहन और उसके परिणाम
- हिंदू समाज ने वर्षों से अपनी धार्मिक आस्थाओं, प्रथाओं और संस्कृति पर हो रहे हमलों को चुपचाप सहा है।
- यह सिकुड़ती सहनशीलता विरोधियों को अधिक आक्रामक और बेधड़क बना रही है
- लगातार मौन सहन से विरोधी यह समझने लगे हैं कि वे कमजोर हैं, इसलिए अपने हमले तेज़ कर रहे हैं।
- अब प्रश्न उठता है कि क्या सनातन समुदाय जागेगा और अपने धर्म, संस्कृति, और देश की दृष्टि से एकजुट होकर आक्रमणों का दृढ़ता से मुकाबला करेगा।
2. वामपंथी मानसिकता: विरोध को जातिवाद में बदलना
- वामपंथी विचारधारा की आदत है कि किसी भी विरोध या प्रतिक्रिया को जातिवाद, वर्ग संघर्ष या सामाजिक द्वेष के रूप में पेश किया जाए।
- हिंदू समाज के धार्मिक या सांस्कृतिक पक्षधर स्वर को तुरंत “ब्राह्मणवादी” या “जातिवादी” कहा जाता है ताकि उसे कमजोर किया जा सके।
- यह रणनीति हिंदू समाज के आस्था और एकता को तोड़ने का उपकरण है
3. वास्तविक घटना और भावनात्मक प्रतिक्रिया
- जूता फेंकने वाले वकील ने किसी जाति का नाम नहीं लिया था।
- उनका कथन था, “हम सनातन का अपमान नहीं सहेंगे।” यह पूरी तरह से धार्मिक भावनाओं और संवेदना पर आधारित था।
- यह घटना उस वक्त हुई जब जस्टिस गवई ने खजुराहो में विष्णु प्रतिमा पुनर्स्थापन मामले में कहा था, “अगर आप सच्चे भक्त हैं, तो जाकर भगवान से कहिए।”
- यह टिप्पणी कई आस्थावान हिंदुओं को असंवेदनशील और अपमानजनक लगी।
- हालांकि, वकील का कार्य कानूनन अनुचित था, पर इसका मूल कारण धार्मिक आस्था की चोट थी, न कि जातिवाद।
4. लेफ्ट का दोहरा मापदंड
- 2009 में जब जरनैल सिंह ने गृह मंत्री चिदंबरम पर जूता फेंका, तब लेफ्ट मीडिया ने उसका समर्थन किया और इसे साहसी विरोध बताया।
- 2008 में इराक़ के पत्रकार ने अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज बुश पर जूता फेंका, तब इसे विद्रोह का प्रतीक माना गया।
- लेकिन जब मामला सनातन धर्म से जुड़ा और आरोपी हिंदू निकला, तो वही मीडिया नैतिकता और तर्क की शिक्षा देने लगा।
- – यह दिखाता है कि उनका मकसद आस्था की रक्षा नहीं, बल्कि हिंदू समाज को विभाजित करना है।
5. राजनीति और हिंदू एकता का भय
- 2014 के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हिंदू समाज को जाति से ऊपर उठाकर एकीकृत पहचान मिली।
- इसके कारण विपक्ष और लेफ्ट की राजनीति डगमगा गई।
- प्रत्येक चुनाव में पुराने हथकंडे अपनाए जाते हैं, जैसे:
- “ब्राह्मणवादी हिंदुत्व” का प्रचार।
- “आरक्षण खत्म करने की साजिश” की बातें।
- “दलित सीजेआई पर हमला” की नवनिर्मित कहानियाँ।
- असल में, हिंदू समाज की एकता विपक्ष और लेफ्ट के लिए सबसे बड़ा खतरा है।
- इसलिए हर छोटी-सी धार्मिक घटना को जातिवाद या सांस्कृतिक षड्यंत्र में बदल दिया जाता है।
6. दोहरा मापदंड और मौन का पाखंड
- इस्लामी कट्टरपंथियों के “सर तन से जुदा” जैसे नारे लगाते रहना और वामपंथी खेमे का मौन रहना सामान्य बात हो चुकी है।
- नूपुर शर्मा विवाद के दौरान फैली हिंसा में सुप्रीम कोर्ट ने हिंसा को भड़काने वाला माना।
- कोई बड़ा सेक्युलर नेता या बुद्धिजीवी कट्टरपंथ की आलोचना नहीं करता।
- लेकिन जब हिंदू आस्था को चोट लगती है, तो मीडिया-लेफ्ट पूरी ताकत से सक्रिय हो जाता है।
- इससे स्पष्ट होता है कि वामपंथ की प्राथमिकता धर्म और कानून नहीं, बल्कि विभाजनकारी राजनीति है।
7. सनातन धर्म का सार: जाति नहीं, सभ्यता
- संत रविदास, कबीर, चोखामेला जैसे अनेक संत दलित समुदाय से आए, पर उन्होंने सनातन की साधना की।
- सनातन धर्म किसी जाति या वर्ग का नहीं, बल्कि भारत माता की संपूर्ण सभ्यता और संस्कृति का प्रतीक है।
- “सनातन का अपमान नहीं सहेंगे” कहना व्यक्तिगत या जातिगत भावना नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता की अभिव्यक्ति है।
8. सनातन समुदाय से अपील: अब जागो, एकजुट हो!
- हिंदू समुदाय ने धर्म, आस्था, और संस्कृति पर हो रहे हमलों को कई बार चुपचाप सहा है, जिससे विरोधी अधिक आक्रामक हुए है
- अब समय है कि सभी धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक नेता और सभी समर्थक सनातन समूह अपनी आरामदायक स्थितियों से बाहर निकलें।
- एकजुट होकर अपने धार्मिक विश्वासों, प्रथाओं और संस्कृति पर हो रहे हर हमले का ऐसे दृढ़ और संगठित विरोध करें कि हमलावर अगली बार यह सोच भी न सकें कि वे ऐसा दोहरा सकते हैं।
- हमें सनातन धर्म, देश, समाज और संस्कृति की रक्षा के लिए मिलकर ऐसा कदम उठाना होगा जो शत्रुओं को मजबूत विरोध के सामने झुकना मजबूर करे।
- क्या सनातन समुदाय जागेगा और अपनी सुरक्षा के लिए एक मजबूत, प्रभावी और सक्रिय एकता का सूत्रपात करेगा?
9. जागरूकता, सतर्कता और सक्रियता ही रक्षा
- सनातन धर्म की रक्षा हम सभी की साझा जिम्मेदारी है।
- चुप्पी और मौन सहना अब हमारे लिए नुकसानदेह साबित हो रहा है और इसे अब बंद करना होगा।
- हिंदू समाज को अपनी एकता और आस्था के लिए जागरूक होकर, समझदारी से और मजबूत होकर लड़ना होगा।
- धर्म की रक्षा ही संस्कृति, सभ्यता और देश की रक्षा है।
- अपनी संस्कृति, धर्म और आस्था का गर्व करें।
- विभाजन की राजनीति और गलतफहमियों से सावधान रहें।
- धार्मिक भावनाओं और मान्यताओं की रक्षा में दृढ़ और संगठित बनें।
- सभी धार्मिक, सामाजिक और आध्यात्मिक नेता मिलकर समाज को एकजुट करें और प्रत्येक हमले का सशक्त रूप से विरोध करें।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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