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पातंजलि का अष्टांग योग

🌼 पातंजलि का अष्टांग योग – सिर्फ स्वास्थ्य का साधन या आत्मविकास और ईश्वर प्राप्ति की सीढ़ियाँ 🌼 

आज योग को शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति और समग्र कल्याण की एक प्रणाली के रूप में वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है। लेकिन दुर्भाग्यवश आधुनिक दृष्टिकोण और व्यवसायीकरण ने योग को अच्छे स्वास्थ्य के लिए केवल कुछ शारीरिक आसनों (आसन), श्वास नियंत्रण (प्राणायाम) और ध्यान तक ही सीमित कर दिया है, जबकि पातंजलि का अष्टांग योग इससे कहीं अधिक गहराई और आत्मिक उद्देश्य प्रदान करता है।

  • सच्चाई यह है कि योग — विशेष रूप से महर्षि पतंजलि द्वारा प्रस्तुत योग सूत्रों में — एक गहन, अनुशासित आध्यात्मिक विज्ञान है, जिसका उद्देश्य मन को शुद्ध करना, इंद्रियों को नियंत्रित करना और अंततः मुक्ति (मोक्ष) की प्राप्ति करना है। 
  • पतंजलि का योग मात्र एक स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं, बल्कि ईश्वर-प्राप्ति का मार्ग है — जो मानव जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है। 
  • अष्टांग योग, महर्षि पातंजलि द्वारा प्रतिपादित योग पद्धति है, जो “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” – अर्थात् मन की चंचल वृत्तियों को रोकने – के माध्यम से आत्म-शुद्धि, मानसिक नियंत्रण और अंततः मोक्ष या ईश्वर प्राप्ति का मार्ग प्रदान करता है। यह आठ चरणों की एक क्रमिक सीढ़ी है, जिसमें हर चरण अगले चरण की तैयारी करता है। 

🔶 अष्टांग योग के आठ अंग (स्तर): 

1. यम (नियंत्रण/आचरण): 

ये पांच सामाजिक नियम हैं जो हमें अपने व्यवहार और समाज के प्रति जिम्मेदारी सिखाते हैं: 

  • अहिंसा (किसी भी प्रकार की हिंसा से बचाव) 
  • सत्य (सच्चाई का पालन) 
  • अस्तेय (चोरी न करना) 
  • ब्रह्मचर्य (इंद्रिय संयम) 
  • अपरिग्रह (अत्यधिक संग्रह से दूरी) 

👉 यम का अभ्यास मन और इच्छाओं को नियंत्रित करता है। 

2. नियम (आत्मिक अनुशासन): 

ये आत्मनियंत्रण से संबंधित पांच नियम हैं: 

  • शौच (बाह्य और आंतरिक शुद्धता) 
  • संतोष (संतुष्ट रहने की कला) 
  • तप (स्वअनुशासन) 
  • स्वाध्याय (धार्मिक ग्रंथों और आत्म-अध्ययन) 
  • ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर के प्रति समर्पण) 

👉 नियम मन को सकारात्मक, पवित्र और उद्देश्यपूर्ण बनाते हैं। 

❗आजकल अधिकांश योग शिक्षक और संस्थान इन दो प्रारंभिक अंगों पर कोई ध्यान नहीं देते। बिना मन और आत्मा की शुद्धि के, योग का कोई गहरा प्रभाव संभव नहीं। 

3. आसन (शारीरिक मुद्रा): 

  • यह वह स्थिति है जिसमें शरीर स्थिर और सहज होता है। उद्देश्य है — ध्यान और प्राणायाम के लिए लंबे समय तक बिना बाधा बैठे रहना। 
  • 👉 आधुनिक योग कक्षाओं में सिखाए जाने वाले आसन शरीर को लचीला और मजबूत बनाते हैं, परंतु वे केवल साधन हैं, साध्य नहीं। 

4. प्राणायाम (श्वास नियंत्रण): 

  • श्वास को नियंत्रित करने की विधि जिससे ऊर्जा (प्राण) का संचय और संतुलन होता है। 

👉 इससे मन शांत होता है, इंद्रियाँ नियंत्रित होती हैं और चेतना ऊर्ध्वगामी होती है। 

5. प्रत्याहार (इंद्रियों की वापसी): 

  • बाह्य विषयों से इंद्रियों को हटाकर अंदर की ओर मोड़ना। 

👉 इससे मन बाहरी विकर्षणों से हटकर अंदर की ओर केन्द्रित होता है। 

6. धारणा  (एकाग्रता): 

  • एक वस्तु पर मन को स्थिर करना – जैसे एक मंत्र, ईश्वर का स्वरूप या ध्यान का लक्ष्य। 

7. ध्यान (मेडिटेशन): 

  • जब धारणा   निरंतर, सहज और बिना रुकावट हो जाए – वह ध्यान बन जाता है। इसमें साधक का मन गहराई में उतरता है। 

8. समाधि (आत्मलय या ईश्वरप्राप्ति): 

  • ध्यान की चरम स्थिति जहाँ साधक, साधन और साध्य – तीनों का भेद मिट जाता है। यह मोक्ष की ओर अंतिम कदम है। 

🔔 विशेष संदेश: 

  • आजकल अधिकांश योग केंद्र योग के शुद्ध रूप को छोड़कर केवल आसनों, प्राणायाम और ध्यान पर फोकस करते हैं — और कभी-कभी ‘समाधि’ बेचते हैं! यह योग का व्यावसायीकरण है। बिना यम-नियम और मानसिक अनुशासन के, चित्तवृत्ति निरोध (mind control) संभव नहीं। 
  • यदि हम इन आठों अंगों को क्रमशः और पूर्ण समर्पण से अपनाते हैं, तो हमारा मन शुद्ध होगा, वासनाएं नियंत्रित होंगी और आत्मा ईश्वर की ओर अग्रसर होगी। 

🕉️ यह मानव जीवन ईश्वर को पाने के लिए है, और अष्टांग योग वह रास्ता है जो हमें जन्ममृत्यु के चक्र से मुक्ति देकर उस परम उद्देश्य तक पहुंचाता है। 

🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳

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