गोधरा ट्रेन जलाने की घटना (2002) के बाद की स्थिति: गुजरात में बदलाव
2002 से पहले, गुजरात में साल में दो से तीन बार सांप्रदायिक दंगे होते थे, जिससे यह भारत के सबसे अधिक दंगा-प्रभावित राज्यों में से एक बन गया था। लेकिन गोधरा ट्रेन जलाने की घटना, जिसमें 59 हिंदू तीर्थयात्रियों, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, को एक मुस्लिम भीड़ द्वारा जिंदा जला दिया गया, ने एक निर्णायक मोड़ ला दिया। इसके बाद जो प्रतिशोध हुआ, उसने दंगाइयों को ऐसा सबक सिखाया कि आज तक गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा नहीं हुई।
- गोधरा के बाद की प्रतिक्रिया इतनी मजबूत थी कि 2002 के बाद से गुजरात में कोई बड़ा सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ।
- संदेश स्पष्ट था: यदि आप हिंसा और आतंक में शामिल होंगे, तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।
- गुजरात आज एक उदाहरण है कि सख्त प्रशासनिक कार्रवाई कैसे कानून और व्यवस्था बनाए रख सकती है।
यह घटना इस बात का प्रमाण है कि जब सरकार मजबूत निर्णय लेती है, तो अपराधी दोबारा हिंसा करने की हिम्मत नहीं करते।
1984 के सिख विरोधी दंगे: खालिस्तानी आतंकवाद का अंत
ऐसी ही एक ऐतिहासिक घटना 1984 के सिख विरोधी दंगे थे, जो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या के बाद भड़के थे।
- 1980 के दशक में, खालिस्तानी आतंकवादी भारत को तोड़ने और पंजाब को अलग देश बनाने की कोशिश कर रहे थे।
- ऑपरेशन ब्लू स्टार के तहत भारतीय सेना ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में छिपे आतंकवादियों को मार गिराया, जिससे खालिस्तान समर्थक और आक्रामक हो गए।
- जब इंदिरा गांधी की हत्या हुई, देशभर में दंगे भड़क गए, और हजारों सिख मारे गए।
- हालांकि ये हिंसा दुखद थी, लेकिन इस घटना के बाद खालिस्तानी आतंकवाद में भारी गिरावट आई।
इस उदाहरण से पता चलता है कि कई बार सख्त कार्रवाई से हिंसा फैलाने वाले तत्वों को अपने एजेंडे पर दोबारा सोचने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
वर्तमान खतरा: इस्लामिक जिहाद और बढ़ती कट्टरता
आज के हालात में, इस्लामिक जिहादी समूह और उनके समर्थक एक बार फिर से भारत की सहनशीलता की परीक्षा ले रहे हैं।
- इस्लामिक आतंकवादी संगठनों की गतिविधियां तेजी से बढ़ रही हैं, जिनमें बम धमाके, लक्षित हत्याएं और सरकार व न्यायपालिका को धमकाने जैसी घटनाएं शामिल हैं।
- अब उन्होंने वक्फ बोर्ड कानूनों में संशोधन को लेकर सरकार और न्यायपालिका को खुलेआम धमकी देना शुरू कर दिया है।
- मुस्लिम नेता यह चेतावनी दे रहे हैं कि अगर वक्फ बोर्ड के विशेषाधिकार खत्म किए गए, तो वे सड़कों पर उतरकर देशभर में दंगे करेंगे।
यह स्थिति 2002 के गुजरात से पहले की स्थिति जैसी ही है, जब इस्लामी कट्टरपंथी मानते थे कि वे दंगे कर सकते हैं और उन्हें कोई रोक नहीं सकता।
- अब समय आ गया है कि सरकार और न्यायपालिका इन खतरों को गंभीरता से लें और मजबूत कदम उठाएं।
- यदि सरकार झुकी, तो इससे कट्टरपंथी ताकतों को और बढ़ावा मिलेगा।
भारत को सख्त और निडर रुख अपनाने की जरूरत
भारत की सुरक्षा और स्थिरता इस बात पर निर्भर करती है कि सरकार और जनता आतंकवाद और दंगों के खिलाफ कितनी दृढ़ता से खड़ी होती है।
- इतिहास गवाह है कि जब सख्त कार्रवाई की जाती है, तो दीर्घकालिक शांति स्थापित होती है।
- कमजोरी दिखाने से ही आतंकवाद और दंगों को बढ़ावा मिलता है।
जैसे गुजरात और पंजाब में कट्टरपंथियों को नियंत्रित किया गया था, वैसे ही आज की चुनौतियों का सामना भी कड़े फैसलों से ही किया जा सकता है।
भारत के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए इतिहास से सीखना होगा
- तुष्टीकरण (Appeasement) की नीति कभी काम नहीं आई और न ही कभी काम आएगी।
- आतंकवाद, दंगे, और अलगाववाद वहीं फलते–फूलते हैं, जहां सरकार कमजोर होती है।
- जो सरकार कठोर निर्णय लेने की हिम्मत रखती है, वही लंबे समय तक शांति और स्थिरता बनाए रख सकती है।
आज भारत एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जहां सरकार और जनता को एकजुट होकर जिहादी ताकतों का सामना करना होगा।
अगर इतिहास से कोई सबक मिलता है, तो वह यह है कि सिर्फ मजबूत नेतृत्व ही राष्ट्र की अखंडता को सुरक्षित रख सकता है।
जय भारत! जय हिन्द!!
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