1. “हम तो डूबेंगे सनम लेकिन तुम्हें भी ले डूबेंगे” — राहुल की राजनीति का सटीक नारा
- यह प्रसिद्ध पंक्ति “हम तो डूबेंगे सनम लेकिन तुम्हें भी ले डूबेंगे” आज राहुल गांधी की राजनीति पर एकदम फिट बैठती है।
- हर चुनाव से पहले कांग्रेस या उसके “ठगबंधन” सहयोगी दलों में उथल-पुथल मचाना राहुल गांधी का पुराना शौक बन चुका है।
- ऐसा लगता है जैसे उसका लक्ष्य चुनाव जीतना नहीं, बल्कि अपने साथ सबको डुबाना है।
हाल ही में बिहार में जो कुछ हुआ, वह इसका ताजा उदाहरण है।
चुनाव से पहले का हंगामा:
- चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले राहुल गांधी ने बिहार में अपने ठगबंधन साथियों के साथ खूब तमाशा किया।
- सभाओं में मुद्दों की जगह गालियाँ बजीं और मंच से प्रधानमंत्री मोदी पर व्यक्तिगत हमले किए गए।
- नतीजा यह हुआ कि बिहार में कांग्रेस की रही-सही साख भी मिट्टी में मिल गई।
- राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस अब वहाँ 4–5 सीटें भी नहीं निकाल पाएगी।
भागने की पुरानी आदत:
- जैसे ही माहौल बिगड़ा, राहुल गांधी ने वही पुराना फार्मूला अपनाया — इज़्ज़त बचाकर विदेश रवाना।
- यह उनका पुराना तरीका है — जब जवाब देने का समय आता है, राहुल विदेश निकल जाते हैं। लगता है भारत तो वो टाइम पास करने के लिए ही आते हैं।
2. आस्था पर हमला — छठ पूजा को बताया ‘ड्रामा’
- विदेश से लौटते ही राहुल गांधी ने एक बार फिर वही किया जो वो अक्सर करते हैं — सनातन धर्म और हिंदू परंपराओं पर प्रहार।
- उन्होंने छठ पूजा जैसे पवित्र और श्रद्धा से जुड़े पर्व को “ड्रामा” कह दिया
- प्रधानमंत्री मोदी को “ड्रामा करने वाला” और “नाचने वाला” कहकर अपमानित किया।
इस बयान का असर:
- यह केवल मोदी पर हमला नहीं था, बल्कि करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर चोट थी।
- बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में छठ पूजा जन-जन की भावना से जुड़ी है, और राहुल के इस बयान ने कांग्रेस के प्रति लोगों के मन में गहरी नाराज़गी भर दी।
3. कांग्रेस का श्राप — जो भी पार्टी इसके साथ आई, डूब गई
- राहुल गांधी का इतिहास गवाह है कि जिस भी क्षेत्रीय दल ने कांग्रेस से हाथ मिलाया, उसका राजनीतिक अंत तय हो गया।
- ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस किसी राजनीतिक श्राप की तरह है — जिससे जो भी जुड़ता है, मिट जाता है।
समाजवादी पार्टी (SP):
- 2017 में यूपी में कांग्रेस के साथ गठबंधन SP के लिए विनाशकारी साबित हुआ। नतीजा — भाजपा की प्रचंड जीत और SP का अस्तित्व संकट।
राष्ट्रीय जनता दल (RJD):
- बिहार में हर बार कांग्रेस के साथ आने पर RJD कमजोर हुई। राहुल गांधी के विवादित बयानों ने इसकी साख और गिरा दी।
आम आदमी पार्टी (AAP):
- दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के साथ कभी दोस्ती, कभी दुश्मनी — इस अस्थिर रिश्ते ने AAP की साख भी खोखली की।
NCP और शिवसेना:
- महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ आने का नतीजा सबने देखा। शरद पवार की पार्टी दो टुकड़ों में बंटी, और उद्धव ठाकरे की शिवसेना अपनी पहचान खो बैठी।
अन्य क्षेत्रीय दल:
- कई छोटे दल जो कांग्रेस के सहारे उठना चाहते थे, कांग्रेस की गुटबाजी और अवसरवाद के चलते मिट्टी में मिल गए।
निष्कर्ष: कांग्रेस अब किसी के लिए सहयोगी नहीं, बल्कि विनाशक शक्ति बन चुकी है।
4. राहुल गांधी के “न्यूक्लियर और हाइड्रोजन बम”
- राहुल गांधी की राजनीति एक प्रयोगशाला बन चुकी है जहाँ वह बार-बार “राजनीतिक बम” फोड़ते हैं
- लेकिन हर बार धमाका कांग्रेस के अंदर ही होता है।
उनके “न्यूक्लियर बम”:
- ये हैं उनके विवादित बयान — कभी हिंदू धर्म का मज़ाक उड़ाना, कभी राष्ट्र प्रतीकों का अपमान करना।
- हर बयान कांग्रेस की साख को और नीचे गिराता है।
उनके “हाइड्रोजन बम”:
ये हैं उनके झूठे विनाशकारी वोट-चोरी के आरोप — जो हर बार कांग्रेस और उसके साथियों को खत्म कर देते हैं।
राहुल गांधी अनजाने में नहीं, बल्कि लगातार मेहनत करके कांग्रेस की ताबूत में अंतिम कीलें ठोक रहे हैं। आज वे कांग्रेस के सबसे बड़े दुश्मन बन चुके हैं।
5. ठगबंधन — नफ़रत से बना गठबंधन, विकास से नहीं
- आज जो विपक्षी गठबंधन खुद को “लोकतांत्रिक” बताता है, असल में वह ठगबंधन है
- एक ऐसा समूह जो सिर्फ मोदी और भाजपा के खिलाफ नफ़रत से एकजुट हुआ है, विकास की किसी साझा दृष्टि से नहीं।
इनका असली एजेंडा:
- ये लोग विकास कार्यों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में बेबुनियाद याचिकाएँ दायर करते हैं।
- इनका मकसद न्याय नहीं, बल्कि सुधार और प्रगति को रोकना है ताकि मोदी सरकार की छवि को नुकसान पहुँचाया जा सके।
न्यायपालिका की भूमिका:
- अब न्यायपालिका को भी यह समझना होगा कि हर याचिका का उद्देश्य सही है या राजनीतिक।
- किसी भी संस्थान को इन ठगबंधन दलों की बाधा से मुक्त होकर स्वतंत्र रूप से काम करने दिया जाना चाहिए।
6. कांग्रेस की गिरावट — आत्मविनाश की कहानी
- कांग्रेस का पतन अचानक नहीं हुआ।
- यह वर्षों की पाखंड, तुष्टिकरण और नेतृत्वहीनता का परिणाम है —
और राहुल गांधी ने इस गिरावट को और तेज कर दिया है। - आज कांग्रेस न विचारधारा पर खड़ी है, न नेतृत्व पर।
- राहुल की अपरिपक्वता, सनातन विरोधी बयानबाजी, और व्यक्तिगत हमलों ने पुराने समर्थकों को भी दूर कर दिया है।
- उनकी छवि एक “भटके हुए राजकुमार” की बन गई है, जो न देश समझता है न धर्म।
अब तो कांग्रेस के भीतर से भी आवाज़ें उठने लगी हैं —
- “राहुल गांधी कांग्रेस को चला नहीं रहे, उसे मिटा रहे हैं।” समझदार नेता अब काँग्रेस की डूबती नैया से पलायन कर रहे हैं।
7. भारत को चाहिए स्पष्टता, न कि राहुल का सर्कस
- जब राहुल गांधी और उनके सहयोगी भारत की प्रगति को रोकने की राजनीति कर रहे हैं
- तब भी देश निरंतर आगे बढ़ रहा है — दृढ़ संकल्प और स्पष्ट नेतृत्व के साथ।
- अब वक्त है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका और संस्थाएँ स्वतंत्र रूप से काम करें।
- राजनीति का केंद्र विकास और नीति हो, न कि गालियाँ और ड्रामेबाज़ी।
- भारत को एकजुट, सशक्त और सनातन मूल्यों से प्रेरित रहना होगा।
- राहुल गांधी अपनी “राजनीतिक बमबारी” जारी रख सकते हैं, लेकिन विस्फोट अब सिर्फ कांग्रेस को मिटाएगा, भारत को नहीं।
8. कांग्रेस के अंतिम अध्याय की शुरुआत
- राहुल गांधी की दिशाहीनता, हताशा और परंपराओं के प्रति अनादर ने उन्हें कांग्रेस का कब्र खोदने वालाबना दिया है।
- उनकी हर हरकत, हर बयान, हर गठबंधन कांग्रेस को और कमजोर कर रहा है।
- कभी यह पार्टी भारत की पहचान थी, आज यह भारत के लिए एक चेतावनी बन चुकी है
- “जब नेतृत्व आत्ममुग्ध और लक्ष्यहीन हो जाए, तब पतन अवश्यंभावी है।”
- राहुल गांधी मेहनत कर रहे हैं, लेकिन पार्टी को बचाने के लिए नहीं —
बल्कि उसके अंतिम संस्कार की तैयारी के लिए।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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