राजनीति, पाखंड और सोशल मीडिया का ज़हर
आज की दुनिया में राजनीति, पाखंड और सोशल मीडिया ने मिलकर एक ऐसा ज़हर घोल दिया है जो समाज को अंदर से तोड़ रहा है। यह लेख उन छिपे दुश्मनों पर सशक्त प्रहार है जो भ्रम, नफ़रत और दिखावे के सहारे सच्चाई को दबाने की कोशिश करते हैं।
1. डिजिटल युद्ध का नया मैदान
- आज का भारत सोशल मीडिया युग में जी रहा है — जहाँ एक क्लिक से प्रेम भी फैलता है और ज़हर भी।
 - जब भी कोई हिंदू महिला या बीजेपी समर्थक युवती सोशल मीडिया पर सक्रिय होती है, अचानक गालियों और भद्दे कमेंट्स की बौछार शुरू हो जाती है।
 - सतह पर यह सब “हिंदू नामों” वाले अकाउंट से होता दिखता है, लेकिन गहराई से जांच करने पर पता चलता है कि इनमें से अधिकांश नकली (फेक) अकाउंट होते हैं
 - जो इस्लामी कट्टरपंथियों, कांग्रेस समर्थकों या विपक्षी ठगबंधन की आईटी टीमों द्वारा चलाए जाते हैं।
 
2. दोहरा मापदंड: महिला नेतृत्व और समाज की मानसिकता
- जब मीसा भारती राजनीति में हैं तो सबकी “बहन”, डिंपल यादव “भाभी”, इंदिरा गांधी “आयरन लेडी”, ममता बनर्जी “माँ”, प्रियंका गांधी “आंधी” और सोनिया गांधी “चरित्र की मिसाल” कहलाती हैं।
 - लेकिन जब एक युवा बेटी, जैसे मैथिली ठाकुर, बीजेपी से जुड़ती है, तो वही समाज उसके चरित्र पर कीचड़ उछालने लगता है।
 - सोशल मीडिया पर उसके ख़िलाफ़ हजारों गंदे, भद्दे और अपमानजनक कमेंट आते हैं
 - और दुखद यह है कि उनमें से अधिकांश नाम हिंदू लगते हैं — गुप्ता, शर्मा, यादव, ठाकुर, सिन्हा, मीणा, कुशवाहा इत्यादि।
 
यह प्रवृत्ति इस बात का संकेत है कि समाज में अंदर ही अंदर कितनी गहरी आत्मघाती मानसिकता और वैचारिक सड़ांध घर कर गई है।
3. सोशल मीडिया पर छिपे दुश्मन: फेक अकाउंट और साज़िशें
- गहराई से देखने पर साफ़ होता है कि ये “हिंदू नामों” वाले अकाउंट अधिकतर फर्जी होते हैं — जो मुस्लिम उग्रवादी नेटवर्क, कांग्रेस के आईटी प्रकोष्ठ, या विपक्षी ठगबंधन के समर्थकों द्वारा चलाए जाते हैं।
 - इनका लक्ष्य स्पष्ट है — हिंदू समाज के भीतर नफ़रत, जातिवाद और भ्रम फैलाकर एकता को तोड़ना।
 - बीते कुछ वर्षों में हजारों ऐसे फेक अकाउंट पकड़े गए हैं जो हिंदू धर्म, देवी-देवताओं, ग्रंथों, संस्कृति और बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ भड़काऊ पोस्ट करते हैं।
 - ये “डिजिटल जिहाद” के माध्यम से मानसिक युद्ध छेड़े हुए हैं — ताकि हिंदू समाज आपस में लड़ता रहे और राष्ट्र की चेतना कमजोर पड़े।
 
4. सामाजिक, सरकारी और न्यायिक निष्क्रियता
- इस विषैले अभियान का असर देश की एकता, समाज की सोच और युवाओं की मानसिकता पर पड़ रहा है।
 - फिर भी सरकार, न्यायपालिका और सोशल मीडिया कंपनियाँ निर्णायक कार्रवाई से बचती रही हैं।
 - कुछ अकाउंट बंद करना या पोस्ट हटाना केवल “औपचारिक” कदम हैं, जबकि जड़ में बैठे षड्यंत्रकारी नेटवर्क को तोड़ने के लिए सख्त नीति की जरूरत है।
 - कानून में ऐसे मामलों के लिए अलग प्रावधान बनने चाहिए ताकि फर्जी पहचान से नफ़रत फैलाने वालों को तुरंत सज़ा दी जा सके।
 
5. साज़िश की रणनीति: समाज को बाँटने की चाल
- विपक्षी ठगबंधन, कांग्रेस समर्थक और इस्लामी नेटवर्क लगातार हिंदू धर्म, संस्कृति और मोदी सरकार के ख़िलाफ़ झूठ, भ्रम और गालियों की मुहिम चला रहे हैं।
 - इन पोस्टों का उद्देश्य स्पष्ट है — समाज को जाति, क्षेत्र और वर्ग के आधार पर तोड़ना ताकि राजनीतिक लाभ उठाया जा सके।
 - वे जानते हैं कि एकजुट हिंदू समाज भारत की ताकत है, इसलिए उसे विभाजित करना उनका सबसे बड़ा लक्ष्य है।
 - सोशल मीडिया का ज़हर अब गाँव-गाँव, मोहल्ले-मोहल्ले तक पहुँच चुका है — और यह नई पीढ़ी के विचारों को गंदे प्रचार से दूषित कर रहा है।
 
6. राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता पर असर
- यह डिजिटल हमला किसी सीमा पार आतंक से कम नहीं है।
 - फर्जी अकाउंटों से चल रहा “मनोवैज्ञानिक युद्ध” युवाओं के मस्तिष्क को प्रभावित कर रहा है, जिससे राष्ट्र, समाज और धर्म की सुरक्षा पर गहरा खतरा मंडरा रहा है।
 - सरकार जहाँ बाहरी दुश्मनों से सख्ती से निपट रही है, वहीं अब समय आ गया है कि आंतरिक डिजिटल दुश्मनों के खिलाफ़ भी “नो टॉलरेंस पॉलिसी” अपनाई जाए।
 - यह युद्ध बंदूक से नहीं, विचारों से लड़ा जा रहा है — इसलिए सूचना और सत्य के माध्यम से जवाब देना आवश्यक है।
 
7. समाधान और नागरिक जिम्मेदारी
- सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को कानूनी रूप से बाध्य किया जाना चाहिए कि वे हर अकाउंट की वास्तविक पहचान सत्यापित करें।
 - फेक अकाउंट, नफ़रत फैलाने वाले पोस्ट और देशविरोधी सामग्री तुरंत हटाई जाए और संबंधित लोगों पर दंडात्मक कार्रवाई हो।
 - नागरिकों को भी सतर्क रहना होगा — किसी भी अफवाह, गाली-गलौज या भड़काऊ पोस्ट को तुरंत रिपोर्ट करें और सत्य की आवाज़ को आगे बढ़ाएँ।
 - समाज को यह समझना होगा कि “लाइक” या “शेयर” भी एक हथियार है — उसे सोच-समझकर इस्तेमाल करें।
 - स्कूलों, कॉलेजों और सामाजिक संस्थाओं में डिजिटल साक्षरता और राष्ट्रनिष्ठा पर शिक्षा को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
 
8. एकता, राष्ट्रवाद और परिवर्तन का आह्वान
- आज की लड़ाई केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और मानसिक भी है।
 - अगर समाज अंदर से ही टूट गया, तो कोई दुश्मन बाहर से आकर कुछ नहीं कर पाएगा।
 - समय आ गया है कि नागरिक, सरकार, न्यायपालिका और सोशल मीडिया कंपनियाँ मिलकर एकजुट हों — राष्ट्र, संस्कृति और बेटियों की सुरक्षा के लिए कठोरतम कदम उठाएँ।
 - एकता और सम्मान ही भारत की सबसे बड़ी ताकत हैं।
 - इसीलिए ज़रूरी है कि हम साज़िशों को पहचानें, फेक अकाउंटों को बेनकाब करें, और समाज में सच्चाई की मशाल जलाएँ।
 - यदि अब भी देश ने कदम नहीं उठाया, तो यह डिजिटल ज़हर आने वाली पीढ़ियों की चेतना को अंदर से खोखला कर देगा।
 
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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