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राम नवमी

राम नवमी: भगवान राम के आदर्शों से राष्ट्र का पुनर्निर्माण

राम नवमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारत के मूल्यों, संस्कृति और नैतिक चेतना का जागरण दिवस है। आज जब भारत धार्मिक असंतुलन, चरित्रहीन राजनीति, सामाजिक विघटन, और तुष्टिकरण आधारित नीतियों से जूझ रहा है — श्रीराम का आदर्श जीवन हमें एक रास्ता दिखाता है।

1. कर्तव्य और नैतिकता व्यक्तिगत लाभ नहीं, राष्ट्रहित सर्वोपरि

तत्कालीन परिप्रेक्ष्य: जब राम को अयोध्या का राज्य मिलने ही वाला था, उन्होंने पिता की आज्ञा और वचन की रक्षा के लिए राज्य का त्याग कर दिया।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य: आज के नेता सत्ता के लिए तुष्टिकरण और धर्मनिरपेक्षता की आड़ में राष्ट्र और समाज के मूलभूत हितों को भूल बैठे हैं।

संदेश: हर नेता, हर नागरिक को भगवान राम की तरह कर्तव्यनिष्ठ, निस्वार्थ और राष्ट्रवादी बनना होगा।

2. त्याग और संयम लोक कल्याण के लिए निजी सुख का त्याग

तत्कालीन परिप्रेक्ष्य: श्रीराम ने 14 वर्षों का वनवास बिना किसी शिकायत के स्वीकार किया।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य: आज जब राजनीति में लोग प्रिविलेज और पावर के लिए संघर्ष कर रहे हैं, और जनता निजी सुखों में लिप्त हो रही है — त्याग और संयम के मूल्य भुला दिए गए हैं।

संदेश: नेतृत्व हो या सामान्य जीवन, समाज की भलाई के लिए व्यक्तिगत इच्छाओं का त्याग जरूरी है।

3. सामाजिक समरसता जातिवाद और वोट बैंक की राजनीति से ऊपर उठकर

तत्कालीन परिप्रेक्ष्य: श्रीराम ने शबरी, निषादराज, वानर सेना जैसे समाज के वंचित वर्गों को अपनाया और आदर दिया।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य: आज जातिवादी राजनीति, मुस्लिम तुष्टिकरण, और हिंदू समाज में बंटवारे ने सामाजिक समरसता को तोड़ दिया है।

संदेश: जातिधर्म से ऊपर उठकर भारतीय समाज को एकजुट करने का समय आ गया है — यही श्रीराम का मूल संदेश है।

4. रामराज्य सुशासन, धर्म और पारदर्शिता का प्रतीक

तत्कालीन परिप्रेक्ष्य: रामराज्य वह काल था जहां प्रजा सुखी, न्यायपूर्ण शासन, और धर्म का वर्चस्व था।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य:

  • वक्फ बोर्ड जैसे संस्थानों द्वारा लैंड जिहाद
  • मंदिरों की संपत्ति पर सरकारी कब्जा।
  • हिन्दुओं की धार्मिक स्वतंत्रता पर लगातार हमले।

संदेश: भारत को फिर से रामराज्य की ओर लौटना होगा — जहां एक राष्ट्र, एक कानून हो, और धर्म के आधार पर कोई विशेषाधिकार न हो।

5. संवाद और मर्यादा आतंक और कट्टरपंथ के विरुद्ध उदात्त दृष्टि

तत्कालीन परिप्रेक्ष्य: श्रीराम ने युद्ध से पहले रावण को संवाद और आत्मसमर्पण का अवसर दिया।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य:

  • कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों द्वारा जिहाद, आतंकवाद और जनसंख्या विस्फोट को हथियार बनाया गया है।
  • गरीब मुस्लिम देशों से आने वाले प्रवासी कई देशों में सांस्कृतिक असंतुलन और उथल-पुथल फैला रहे हैं।

संदेश: जबकि कुछ मुस्लिम देश उदारवादी हैं, ज़्यादातर गरीब मुस्लिम राष्ट्रों से उग्रवाद फैल रहा है। समय आ गया है कि भारत राम के मार्ग पर चलते हुए संवाद और शक्ति दोनों का संतुलन बनाए।

6. परिवार और समाज के बीच संतुलन राष्ट्र प्रथम, स्वार्थ बाद में

तत्कालीन परिप्रेक्ष्य: राम ने निजी सुख (सीता का वियोग) भी छोड़ दिया जब समाज की भावना सामने आई।

वर्तमान परिप्रेक्ष्य:

  • राजनीतिक दलों और कुछ समूहों द्वारा राष्ट्र से ऊपर परिवार, वंश और समुदाय को रखा जा रहा है।
  • राष्ट्र की अस्मिता को झूठे सेकुलरिज़्मके नाम पर कुचला जा रहा है।

संदेश: राष्ट्र सर्वोपरि — यही राम का मार्ग है।

राम नवमी: एक धार्मिक उत्सव नहीं, राष्ट्रीय पुनर्जागरण का शंखनाद

श्रीराम आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने त्रेता युग में थे। भारत को धार्मिक आधार पर हो रहे विभाजन, वक्फ बोर्ड के माध्यम से जमीन हथियाने, जिहादी सोच और जनसंख्या युद्ध से लड़ने के लिए फिर से राम को अपनाना होगा।

आज का आह्वान

  • श्रीराम को फिर से भारत के केंद्र में लाएं नीति, शासन और जीवन मूल्यों में।
  • हिंदू समाज एकजुट हो मंदिरों, जमीन और संस्कृति की रक्षा के लिए।
  • राम नवमी को केवल उत्सव नहीं, एक राष्ट्र जागरण दिवस बनाएं।

जय श्रीराम! वंदे मातरम्!! भारत माता की जय!!!

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