हर राष्ट्रविरोधी फैसला सिर्फ एक नीति नहीं, बल्कि भारत की एकता, संस्कृति और संप्रभुता पर हमला है। अब सच्चाई सामने लानी होगी।
जब भारत की आँखें बंद कर दी गईं
1997 में ‘गुजराल डॉक्ट्रिन’ के नाम पर उठाया गया एक राष्ट्रविरोधी कदम भारत की सुरक्षा पर भारी पड़ गया। इस तथाकथित उदार नीति ने हमारी खुफिया एजेंसी RAW के हाथ बांध दिए और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में हमें कमजोर बना दिया। भारत ने न सिर्फ अपनी सुरक्षा एजेंसियों की आंखें बंद कीं, बल्कि राष्ट्रविरोधी ताकतों को खुला मैदान दे दिया। कारगिल युद्ध, कंधार हाईजैक और संसद हमला—इन त्रासदियों की जड़ में यही रणनीतिक भूल थी, जिसने भारत को गहरे जख्म दिए।
🧨 1. गुजराल डॉक्ट्रिन: जब भारत ने अपने ही सुरक्षाबलों के हाथ काट दिए
🔎 पृष्ठभूमि:
1997 में जब I.K. Gujral प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने एक “उदारवादी नीति” लागू की, जिसे नाम दिया गया गुजराल डॉक्ट्रिन। इस नीति का मकसद पड़ोसी देशों से बेहतर रिश्ते बनाना था। लेकिन असल में यह भारत की सुरक्षा के खिलाफ आत्मघाती फैसला साबित हुआ।
❌ खतरनाक निर्णय:
- भारत की सबसे शक्तिशाली खुफिया एजेंसी RAW को पाकिस्तान में जासूसी बंद करने का आदेश दिया गया।
- कई भारतीय एजेंटों को वापस बुला लिया गया, जिनकी जान पाकिस्तान में गंवानी पड़ी।
- भारत ने खुद ही खुलासा कर दिया कि उसके पास केमिकल हथियार हैं — जो एक रणनीतिक रहस्य होना चाहिए था।
परिणाम:
- पाकिस्तान को पूरी छूट मिल गई कि वह भारत के खिलाफ आतंकवादी संगठन तैयार करे।
- RAW अंधा बना दिया गया — नतीजा:
- कारगिल युद्ध (1999): भारत को 500 से ज्यादा जवान खोने पड़े।
- कंधार हाईजैक (1999): भारत को घुटने टेकने पड़े, और मसूद अज़हर जैसे आतंकवादी छोड़ने पड़े।
- संसद हमला (2001): आतंकवादियों ने लोकतंत्र की प्रतीक संसद पर हमला किया।
👉 इन सबके पीछे एक ही दोष था: भारत ने खुद ही अपनी आँखें बंद कर ली थीं।
🕵️ 2. मनमोहन युग: जब ISI भारत में घुस बैठा
पृष्ठभूमि:
- 2004 से 2014 तक डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार ने “अमन और शांति” के नाम पर पाकिस्तान को रेड कारपेट वेलकम देना शुरू किया।“Aman Ki Asha” — एक छुपा हुआ षड्यंत्र:
- इस पहल के तहत पाकिस्तानी कलाकार, पत्रकार, साहित्यकार, शायर, गायक भारत बुलाए गए।
- लेकिन हकीकत ये थी कि इनमें से कई लोग थे ISI के एजेंट, जो भारत में आतंकी नेटवर्क और स्लीपर सेल को मजबूत कर रहे थे।
खुफिया एजेंसियों को पंगु बना दिया गया:
- IB और RAW को आदेश मिला कि वे इन पाकिस्तानी मेहमानों पर नज़र न रखें।
- सुरक्षा एजेंसियों को राजनीतिक निर्देशों के आगे झुकने पर मजबूर कर दिया गया।
⚔️ सेना को भी कठघरे में खड़ा किया गया:
- कश्मीर में जवानों पर FIR दर्ज की गईं।
- AFSPA (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट) हटाने की बात उठी।
- सेना के मनोबल को बार-बार कुचला गया।
परिणाम:
- मुंबई 26/11 हमला (2008): पाकिस्तान से आए 10 आतंकी खुलेआम 160 से ज्यादा लोगों की हत्या कर गए।
- समझौता एक्सप्रेस धमाका: पाकिस्तान को बचाने के लिए फर्जी “भगवा आतंकवाद” थ्योरी चलाई गई।
- भारत की अस्मिता को बार-बार कुचला गया।
👉 इस दौर में भारत की सुरक्षा सिर्फ कागजों पर बची रह गई थी।
3. मोदी युग: जब भारत ने आँखें फिर से खोलीं
परिवर्तन की शुरुआत:
2014 में जब नरेंद्र मोदी सत्ता में आए, तो उन्होंने भारत की सुरक्षा व्यवस्था में एक क्रांतिकारी बदलाव लाया।
✅ लिए गए निर्णायक फैसले:
- RAW को फिर से पाकिस्तान में सक्रिय किया गया।
- सर्जिकल स्ट्राइक (2016) और बालाकोट एयरस्ट्राइक (2019) जैसे ऐतिहासिक कदम उठाए गए।
- स्लीपर सेल्स पर करारा प्रहार किया गया।
- J&K में आतंकियों और पत्थरबाजों के खिलाफ ज़ीरो टॉलरेंस नीति लागू की गई।
आत्मसम्मान की वापसी:
- सेना को खुली छूट दी गई।
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बेनकाब किया गया।
- देश की सुरक्षा नीति में स्पष्टता और दृढ़ता आई।
👉 भारत ने पहली बार कहा — “अब हम सिर्फ सहेंगे नहीं, बल्कि जवाब देंगे।”
जागो भारतवासियों, ये सिर्फ इतिहास नहीं — चेतावनी है
❗ अगर हम फिर से कमजोर और राष्ट्रविरोधी ताकतों को सत्ता सौंपते हैं:
- तो हमारी खुफिया एजेंसियां फिर से अंधी हो जाएंगी।
- ISI फिर से भारत में घुस बैठेगा।
- और सेना फिर से कठघरे में खड़ी हो जाएगी।
“राष्ट्रविरोध का सबसे खतरनाक रूप होता है — जब अपने ही देशवासी, सत्ता में बैठकर, राष्ट्र की नींव खोखली कर देते हैं।“
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| जय भारत, वन्देमातरम |
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