राष्ट्रीय सुरक्षा
I. धर्म पवित्र है, उसका दुरुपयोग नहीं
- भारत ने सदैव मंदिरों, मस्जिदों, गिरजाघरों, गुरुद्वारों, मठों, आश्रमों और धार्मिक शिक्षण स्थलों को सर्वोच्च सम्मान दिया है।
- किन्तु हाल के वर्षों में कुछ गैर–पंजीकृत या अनियंत्रित धार्मिक परिसरों में अवैध शरण, कट्टरपंथी गतिविधियों, हथियार छिपाने और संदिग्ध शिक्षण के उदाहरण सामने आए हैं, जिसने राज्य के हस्तक्षेप को राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में अनिवार्य बना दिया है।
- समस्या समुदाय की नहीं
- समस्या समुदाय में छिपे अति–सूक्ष्म अपराधी तत्वों की है
- परिणामस्वरूप व्यापक जांच और सत्यापन आवश्यक हो जाता है
- यह परिस्थिति दुखद अवश्य है, परंतु वास्तविक भी।
II. जब कुछ लोग पूरे समुदाय पर छाया डालते हैं
1. अल्पसंख्यक उग्रवादी तत्वों का भारी असर
- चाहे कट्टरवादी संख्या में बहुत कम हों, लेकिन उनकी गतिविधियाँ:
- पूरे समुदाय की छवि पर धब्बा छोड़ती हैं
- सुरक्षा एजेंसियों को सतर्क करती हैं
- धार्मिक परिसरों की कड़ी जांच को अनिवार्य बनाती हैं
- सीमा व प्रवासन निगरानी को तीव्र करती हैं
2. धार्मिक आवरण का दुरुपयोग
कुछ उग्रवादी वर्ग धार्मिक स्थलों का दुरुपयोग करते हैं:
- कानून के प्रवेश में संकोच का लाभ उठाकर
- समाज में मिले सम्मान को ढाल बनाकर
- शरण एवं गतिविधियों को “धार्मिक संरक्षण” का रूप देकर
इसके कारण पवित्र स्थल बन जाते हैं:
- सुरक्षित छिपाव स्थान
- संचार उपकरणों व हथियारों के ठिकाने
- पहचान छिपाने और नेटवर्क बनाने के केन्द्र
III. व्यापक जांच क्यों आवश्यक हो जाती है
यदि कुछ ही स्थान गलत उपयोग में पकड़े जाते हैं, तब भी:
- हथियार और व्यक्ति स्थानांतरित हो सकते हैं
- अवैध प्रवासी दुसरे धार्मिक परिसरों में शरण ले सकते हैं
- कट्टरपंथी शिक्षकों का भ्रमण कई संस्थानों तक हो सकता है
- फंडिंग व विचारधारा नेटवर्क एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं
इसलिए:
- निर्दोष संस्थानों की जांच “भेदभाव” नहीं, बल्कि रोकथाम आधारित सुरक्षा प्रक्रिया है।
IV. “भेदभाव” का गलत नैरेटिव क्यों नहीं अपनाना चाहिए
जांच या सत्यापन के समय यह आवाजें उठती हैं:
- “हमारी आस्था को निशाना बनाया जा रहा है”
- “क्यों हमारे परिसरों की जांच?”
- “हमारे समुदाय पर नजर क्यों?”
परंतु वास्तविक उत्तर स्पष्ट है:
- निगरानी पहचान पर नहीं, जोखिम के पैटर्न पर केंद्रित होती है।
जहां दुरुपयोग की घटनाएँ घटित होती हैं, वहीं प्रशासनिक कार्यवाही और निगरानी स्वाभाविक रूप से बढ़ती है। यह पक्षपात नहीं, सुरक्षा मानचित्रण है।
V. जिम्मेदार निगरानी कैसी हो
A. कानूनी, समान, गैर–भड़काऊ
- सभी धर्मस्थलों का समान कानून के तहत पंजीकरण
- परंतु जाँच वहीं अधिक जहाँ वास्तविक दुरुपयोग संकेत मिलें
B. पारदर्शिता उपाय
- सभी धार्मिक शिक्षण केंद्रों का अनिवार्य पंजीकरण
- विदेशी शिक्षक, आगंतुक विद्वान, बाहरी फंड की जांच
- भूमि स्वामित्व व मान्यता की वैधता
C. वित्त एवं पाठ्यक्रम निरीक्षण
- विदेशी व NGO आधारित फंडिंग का नियमित ऑडिट
- कट्टरपंथी, हिंसा-प्रेरक, असंवैधानिक सामग्री पर प्रतिबंध
- संविधान, राष्ट्रधर्म और नागरिक कर्तव्यों की समावेशी शिक्षा
D. डिजिटल कट्टरता की निगरानी
- ऑनलाइन धार्मिक समूहों में उग्र विचारों का प्रसार
- एन्क्रिप्टेड चैनलों में भर्ती प्रयास
- बंद नेटवर्किंग ऐप्स में धर्म आधारित उकसावे
VI. समुदाय की भूमिका: स्वदायित्व और आत्म–सुरक्षा
समाज और धर्म नेतृत्व को चाहिए:
- उग्रवादियों से सार्वजनिक दूरी
- अवैध शरण या रहस्यमय समूह गतिविधि की रिपोर्टिंग
- संदिग्ध फंड या विदेशी प्रभाव की जांच में सहयोग
- पाठ्यक्रम का आधुनिकीकरण
- सरकारी जांच को सम्मानपूर्वक स्वीकार करना
सिद्धांत:
- आंतरिक शुद्धि से बाहरी संदेह कम होता है।
VII. सामान्य संस्थाओं की जांच का दर्द: परंतु राष्ट्रीय सुरक्षा की जरुरत
कट्टरपंथी जब धार्मिक ढाल का उपयोग करते हैं, तो:
- मासूम संस्थाएँ भी सत्यापन के घेरे में आती हैं
- धार्मिक शिक्षकों से पूछताछ होती है
- छात्रों के पहचान दस्तावेज मांगे जाते हैं
- नियमित प्रशासनिक निरीक्षण होते हैं
यह उत्पीड़न नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा प्रक्रिया है।
कठोर सत्य:
- यदि दुरुपयोग जारी रहता है, तो सामुदायिक स्तर पर जांच अनिवार्यता बन जाती है, न कि भेदभाव।
VIII. राष्ट्रीय सुरक्षा, भावनाओं से ऊपर
- भारत आध्यात्मिक भी है और संप्रभु राष्ट्र भी। राष्ट्रीय सुरक्षा भावनाओं से ऊपर है।
- पूजा अधिकार है, परन्तु पूजा-स्थल को अवैध गतिविधि का कवच बनाना अधिकार नहीं
- धर्म पवित्र है, परंतु धर्मस्थलों का दुरुपयोग अस्वीकार्य है
उग्रवादी जो धार्मिक पहचान को ढाल बनाते हैं, वे न केवल कानून तोड़ते हैं, बल्कि धर्म को सबसे अधिक क्षति पहुँचाते हैं।
IX. राष्ट्र प्रथम, धर्म की गरिमा शाश्वत
भारत सभी आस्थाओं का सम्मान करता है
पर भारत अवैध शरण, हथियारों के भंडारण और घुसपैठ का समर्थन नहीं करेगा
कानून तटस्थ रहेगा, परंतु राष्ट्र की रक्षा में दृढ़ रहेगा
अंतिम सिद्धांत:
- जांच धर्म पर नहीं, धर्म के दुरुपयोग पर केन्द्रित होनी चाहिए ।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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