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आरएसएस के 100 वर्ष

आरएसएस के 100 वर्ष : एक यात्रा, उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ

1. आरएसएस की स्थापना और उद्देश्य

  • राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना 1925 में डॉ. हेडगेवार ने की थी।
  • उद्देश्य था भारत को मज़बूत बनाना, हिंदू समाज में एकता लाना और सनातन धर्म तथा राष्ट्रभक्ति की भावना को जन-जन तक पहुँचाना।
  • आरएसएस ने सांस्कृतिक पुनर्जागरणअनुशासन, और राष्ट्र-निष्ठा पर ज़ोर दिया।

2. आरएसएस की ऐतिहासिक उपलब्धियाँ

  • लाखों स्वयंसेवकों के माध्यम से देशभक्ति और संगठनकी भावना को फैलाया।
  • देश के हर कोने में सामाजिक सेवा और शिक्षा का विस्तार किया।
  • प्राकृतिक आपदाओं और संकटों में राहत कार्यों द्वारा आम जनता के बीच विश्वास और सम्मान अर्जित किया।
  • हिंदू समाज में जाति-पाति तोड़ने, आत्मबल जगाने और गौरव पुनर्स्थापित करने का काम किया।

3. 2014 से पहले की चुनौतियाँ

  • स्वतंत्रता के बाद लंबे समय तक वामपंथी और कांग्रेस-प्रभावित सरकारें सत्ता में रहीं।
  • सरकारों की नीतियाँ अक्सर आरएसएस और हिंदुत्वके खिलाफ रही।
  • शिक्षा, मीडिया, न्यायपालिका और राजनीति में आरएसएस को लगातार नकारात्मक रूप से पेश किया गया।
  • 2014 तक, आरएसएस और उससे जुड़े संगठनों को अपनी विचारधारा के प्रचार-प्रसार और जनजागरण में कई रोडब्लॉक झेलने पड़े।

4. 2014 के बाद का परिदृश्य – अवसर और सवाल

  • 2014 में भाजपा की राष्ट्रवादी, प्रखर हिंदुत्ववादी सरकारके आने से एक बड़ा अवसर मिला।
  • आज़ादी के बाद पहली बार सरकार, समाज और हिंदुत्व संगठनों का एक समन्वय दिखने लगा।

लेकिन सवाल यह है कि:

  • क्या आरएसएस ने इस अवसर का पूरा लाभ उठाया?
  • क्या उन्होंने केवल अपने सांस्कृतिक और सामाजिक एजेंडेपर काम किया, या हिंदू राष्ट्र और सुरक्षा को प्राथमिकता दी?
  • अक्सर यह देखा गया है कि आरएसएस और भाजपा के सिद्धांतों और रणनीतियों में अंतर दिखाई देता है।
  • यह अंतर हिंदू एकता और राष्ट्रवाद के लिए हानिकारक है।
  • विपक्षी और विरोधी शक्तियाँ हमेशा इसी फूट का लाभ उठाती हैं।

5. मौजूदा चुनौतियाँ और ज़िम्मेदारियाँ

आज भारत के सामने अनेक आंतरिक और बाहरी चुनौतियाँ हैं:

  • विदेशी ताक़तें भारत के उदय को रोकना चाहती हैं।
  • आंतरिक दुश्मन – जिहादी नेटवर्क, अवैध घुसपैठिए, शहरी नक्सल, वामपंथी और तथाकथित सेक्युलर गिरोह।
  • न्यायपालिका और मीडिया – अक्सर राष्ट्रविरोधी और हिंदू विरोधी एजेंडे को बढ़ावा देते हैं।
  • जनसंख्या जिहाद और सांस्कृतिक आक्रमण – हिंदू समाज की अस्मिता और सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा।

6. भाजपा सरकार और हिंदू संगठनों की भूमिका

  • भाजपा सरकार के पास सीमित समय और असीमित चुनौतियाँ हैं।
  • उन्हें विदेश नीति, रक्षा, अर्थव्यवस्था और भारत को विश्व की शीर्ष-3 महाशक्तियों में पहुँचाने का लक्ष्य सँभालना है।
  • ऐसे में, आंतरिक दुश्मनों से लड़ाई में हिंदुत्व संगठनों, धार्मिक संस्थाओं और संपूर्ण हिंदू समाज का सक्रिय सहयोग आवश्यक है।
  • यदि आंतरिक मोर्चे पर यह समर्थन मिलेगा, तभी सरकार बाहरी मोर्चे पर पूरी ताक़त से ध्यान दे पाएगी।

7. भविष्य का मार्ग – आरएसएस से अपेक्षाएँ

  • अब समय आ गया है कि आरएसएस अपनी प्राथमिकताओं को वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार बदले।
  • केवल सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यों से आगे बढ़कर हिंदू समाज और राष्ट्र की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए।
  • भाजपा और आरएसएस में पूर्ण सामंजस्य और स्पष्ट रणनीति होनी चाहिए, ताकि हिंदू राष्ट्र और हिंदू समाज की रक्षा सुनिश्चित हो सके।
  • हर स्वयंसेवक और हर हिंदू संगठन को यह समझना होगा कि यह केवल सांस्कृतिक संघर्ष नहीं, बल्कि सभ्यतागत युद्ध है।

चिंतन और कार्रवाई के लिए आह्वान

  • आरएसएस ने पिछले 100 वर्षों में भारत और हिंदू समाज को गहराई से प्रभावित किया है।
  • उन्होंने असंख्य कार्यों से राष्ट्रवाद, समाजसेवा और सनातन धर्म की रक्षा में योगदान दिया।
  • लेकिन आज जब हिंदू समाज और भारत की अस्तित्व रक्षा का प्रश्न सामने है, तब उनसे यह अपेक्षा है कि वे समय की माँग के अनुसार अपने एजेंडे को बदलें और भाजपा सरकार का पूरा सहयोग करें।

यदि आरएसएस, भाजपा और हिंदू समाज एकजुट होकर कार्य करेंगे, तो भारत न केवल हिंदू राष्ट्र बनेगा, बल्कि आने वाले वर्षों में विश्व की शीर्ष महाशक्तियों में भी शामिल होगा।

🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳

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