न्यायपालिका की राष्ट्रवादी जागृति— कर्नाटक हाईकोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का संवैधानिक अधिकार दोहराया
🕉️ 1. भूमिका: एक ऐतिहासिक और निर्णायक फैसला
- कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ पीठ ने कांग्रेस सरकार के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी है, जिसके तहत आरएसएस जैसे संगठनों के कार्यक्रमों के लिए पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया था।
- कांग्रेस सरकार ने 18 अक्टूबर को यह आदेश जारी किया था कि 10 से अधिक लोगों का बिना अनुमति इकट्ठा होना अपराध माना जाएगा, और पार्कों, सड़कों व खेल मैदानों में भी भीड़ जुटने पर कार्रवाई की चेतावनी दी थी।
- इस आदेश को लेकर व्यापक विरोध हुआ, क्योंकि यह सीधे तौर पर नागरिकों के मौलिक अधिकारोंपर हमला था।
⚖️ 2. कोर्ट की स्पष्ट टिप्पणी — “संविधान सर्वोपरि है, राजनीति नहीं”
जस्टिस एम. नागाप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार से तीखा सवाल किया —
- “सरकार को ऐसा संवैधानिक अधिकार आखिर मिला कहाँ से कि वह नागरिकों के मौलिक अधिकारों को सीमित करे?”
- कोर्ट ने माना कि सरकार का यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(B) (शांतिपूर्ण सभा करने का अधिकार) का उल्लंघन है।
- अदालत ने इस आदेश को “असंवैधानिक” करार देते हुए उस पर तत्काल रोक लगा दी और स्पष्ट कहा:
- “किसी भी लोकतांत्रिक सरकार को यह अधिकार नहीं है कि वह संविधान से ऊपर खड़ी हो जाए।”
🇮🇳 3. आरएसएस को बड़ी राहत — लोकतंत्र की जीत
- यह फैसला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के लिए बड़ी राहत लेकर आया है, जिसे कांग्रेस लगातार राजनीतिक बदले की भावना से निशाना बना रही थी।
- कांग्रेस सरकार का यह आदेश दरअसल एक अप्रत्यक्ष प्रतिबंधथा, जिससे राष्ट्रवादी और सांस्कृतिक संगठनों की गतिविधियों को सीमित किया जा सके।
- हाईकोर्ट के हस्तक्षेप ने सुनिश्चित किया कि ऐसी राजनीतिक द्वेषपूर्ण नीतियाँलोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर नहीं कर पाएंगी।
🔍 4. न्यायपालिका का बदलता हुआ रुख — राष्ट्रहित की दिशा में सकारात्मक संकेत
- पिछले कुछ वर्षों में यह चिंता बढ़ी थी कि न्यायपालिका के कुछ हिस्सों पर वामपंथी विचारधारा और राष्ट्रविरोधी लॉबीज़ का प्रभाव बढ़ता जा रहा है।
- परंतु अब हाल के कुछ निर्णय, विशेषकर यह फैसला, इस दिशा में एक सुखद परिवर्तन का संकेत दे रहे हैं।
- यह निर्णय दिखाता है कि न्यायपालिका अब यह समझने लगी है कि उसका कार्य सरकार के हर कदम की आलोचना करना नहीं, बल्कि संविधान और राष्ट्रहित के बीच संतुलन बनाना है।
- जब अदालतें संविधान के साथ-साथ राष्ट्र की आत्मा — सनातन मूल्यों की रक्षा करती हैं, तब न्याय वास्तव में धर्म का रूप ले लेता है।
💪 5. सरकार और न्यायपालिका का सहयोग — भारत को विश्वशक्ति बनाने की दिशा
- जब कार्यपालिका (सरकार) और न्यायपालिका एक-दूसरे के पूरक बनकर कार्य करते हैं, तब भारत का उत्थान और तेज़ी से होता है।
- न्यायपालिका यदि संविधान की मूल भावना को ध्यान में रखते हुए राष्ट्र निर्माण के कार्यों में सहयोगी भूमिका निभाती है, तो सरकार विकास, सुरक्षा और कल्याण पर केंद्रित रह सकती है।
- इस तरह की साझेदारी भारत को “विश्वगुरु” बनने के मार्ग पर और मज़बूती से आगे बढ़ाएगी।
🚫 6. कांग्रेस की दोहरी नीति और लोकतंत्र पर हमला
- कांग्रेस का यह आदेश उसके तानाशाही और राष्ट्रविरोधी मानसिकता को उजागर करता है।
- यही कांग्रेस जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई देती है, वही जब राष्ट्रवादी संगठन अपनी बात कहते हैं, तो प्रतिबंध और अनुमति की तलवार निकाल लेती है।
- इस निर्णय ने कांग्रेस के पाखंड और राजनीतिक अवसरवादको उजागर कर दिया है।
- अदालत ने स्पष्ट संदेश दिया कि — “कोई भी सरकार देशभक्त संगठनों को दबाने के लिए संविधान का दुरुपयोग नहीं कर सकती।”
🌅 7. न्यायपालिका में राष्ट्रवाद का उदय — एक नई दिशा
- यह फैसला केवल एक कानूनी निर्णय नहीं, बल्कि एक न्यायिक राष्ट्रवाद (Judicial Nationalism) की शुरुआत का संकेत है।
- आज अदालतें यह समझ रही हैं कि राष्ट्रवाद कोई राजनीतिक विचार नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा है।
- जब न्यायपालिका नागरिक अधिकारों के साथ-साथ राष्ट्र के कल्याण और एकता की भी रक्षा करती है, तब लोकतंत्र अपनी वास्तविक शक्ति को प्राप्त करता है।
- कर्नाटक हाईकोर्ट का यह निर्णय इसी दिशा में एक मील का पत्थरहै।
🌏 8. संस्थाओं में बढ़ता विश्वास — राष्ट्र की आत्मा जागृत हो रही है
- पिछले वर्षों में नागरिकों में यह भावना बढ़ी थी कि न्यायपालिका चयनात्मक सक्रियता दिखा रही है, परंतु अब यह विश्वास लौट रहा है कि भारत की अदालतें धर्म, न्याय और संविधान की सच्ची रक्षक हैं।
- यह निर्णय दिखाता है कि अदालतें अब केवल तकनीकी कानूनी मुद्दों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे यह भी देख रही हैं कि उनके निर्णयों का राष्ट्रहित पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
- यह बदलाव भारत के नए न्यायिक चरित्र की झलक देता है — संविधान सम्मत, राष्ट्रभक्त और धर्मनिष्ठ।
🕉️ 9. राष्ट्रहित और संविधान का संतुलन
- कर्नाटक हाईकोर्ट का यह फैसला याद दिलाता है कि भारत का संविधान राष्ट्र की आत्मा है, किसी दल का औजार नहीं।
- यह निर्णय एक नए युग की शुरुआत है — जहाँ संविधान और राष्ट्रवाद एक साथ चलते हैं।
- जब न्यायपालिका और सरकार एकजुट होकर कार्य करती हैं, तब भारत की प्रगति अवरोध्य नहीं रहती।
- यह निर्णय आने वाले समय में भारत को न्याय, धर्म और राष्ट्रभावना के आदर्श पर आधारित महाशक्ति बनने की दिशा में प्रेरित करेगा।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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