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रुपये का अवमूल्यन

रुपये का अवमूल्यन: भारत की रणनीतिक आर्थिक तैयारी, संकट नहीं

रुपये का अवमूल्यन: डर नहीं, आर्थिक रणनीति है

  • दशकों से भारत में यह मानसिकता बिठाई गई किजैसे ही रुपया डॉलर के मुकाबले गिरता है, देश पर आर्थिक आपदा आ गई।
  • टीवी बहसें, अखबारों की सुर्खियाँ और राजनीतिक बयान— सबने इसे कमज़ोरी और असफलता का प्रतीक बताया।

लेकिन पहली बार पूर्व नीति आयोग अधिकारियों और जाने-माने अर्थशास्त्रियों ने बिल्कुल स्पष्ट कहा:

  • “यदि रुपये का अवमूल्यन नियंत्रित रूप से हो, तो यह भारत के निर्यात, रोजगार और विनिर्माण क्षमता को मजबूत करता है।”

यानी यह संकट नहीं—रणनीतिक आर्थिक उपकरण है।

🟥 SECTION 1 — रुपये का कम होना कमज़ोरी नहीं, प्रतिस्पर्धा की रणनीति है

मुद्रा का अत्यधिक मजबूत होना कई बार देश को वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्धा से बाहर कर देता है। दूसरी ओर, आर्थिक महाशक्तियाँ:

  • चीन
  • जापान
  • दक्षिण कोरिया
  • वियतनाम

इन्होंने अपनी उन्नति मजबूत मुद्रा पर नहीं, बल्कि नियंत्रित नरमी और निर्यात-आधारित नीति पर बनाई।

  • भारत अब उसी दिशा में बढ़ रहा है— जहाँ लक्ष्य मुद्रा को सजाना नहीं, बल्कि उत्पादन और निर्यात को बढ़ाना है।

🟥 SECTION 2 — रुपये का गिरना भारत के निर्यात को शक्ति देता है

जब रुपया थोड़ा कमजोर होता है, तब:

  • भारतीय वस्तुएँ विदेशी बाजारों में सस्ती होती हैं
  • ऑर्डर तेजी से बढ़ते हैं
  • फैक्टरी उत्पादन डबल शिफ्ट तक पहुंचता है
  • MSME इकाइयाँ विस्तार करती हैं
  • लाखों नौकरियाँ खुलती हैं

इसका सीधा लाभ मिलता है:

  • परिधान उद्योग
  • चमड़ा
  • आईटी और सेवाएँ
  • औषधियाँ
  • ऑटो पार्ट्स
  • इंजीनियरिंग वस्तुएँ
  • रत्न और आभूषण

ये सभी श्रम-आधारित सेक्टर हैं, यानी हल्का अवमूल्यन सीधा मांग बढ़ाता है और रोजगार वृद्धि में बदलता है।

🟥 SECTION 3 — एनआरआई रेमिटेंस पर सकारात्मक प्रभाव

विश्व में सबसे अधिक रेमिटेंस पाने वाले देशों में भारत अग्रणी है।

जब रुपया कमजोर होता है:

  • बाहर से भेजा गया डॉलर अधिक रुपये में बदलता है
  • परिवारों की क्रय शक्ति बढ़ती है
  • छोटे शहरों और गाँवों में मांग बढ़ती है
  • रियल एस्टेट, बैंक जमा, उपभोग सबमें उछाल आता है

यानी रुपये का अवमूल्यन केवल आर्थिक नहीं, सामाजिक स्थिरता का साधन भी बनता है।

🟥 SECTION 4 — अवमूल्यन भारत को आयात-निर्भरता से बाहर धकेलता है

कमजोर रुपया आयात को महँगा बनाता है। तब उद्योग स्वयं मजबूर होता है:

  • घरेलू उत्पादन बढ़ाने को
  • स्थानीय सप्लाई चेन विकसित करने को
  • तकनीकी निवेश करने को
  • फैक्टरी क्षमता विस्तार करने को

यही है:

  • मेक इन इंडिया
  • आत्मनिर्भर भारत
  • घरेलू विनिर्माण का पुनर्जागरण

मजबूत अर्थव्यवस्था वह नहीं जो सब कुछ आयात करे, बल्कि वह जो स्वयं ज्यादा उत्पादन करे

🟥 SECTION 5 — रुपये के अवमूल्यन से किसे आपत्ति है?

मुख्य विरोध वहीं से आता है जहाँ लाभ घटता है:

  • आयात-आधारित कारोबारी वर्ग
  • विदेशी कार असेंबलर
  • विलासिता वस्तु व्यापारी
  • डॉलर में कर्ज लेने वाली कंपनियाँ
  • मुद्रा सटोरिए

जब इनका लाभ कम होता है, तब मीडिया में डर फैलाने वाली कथाएँ उठती हैं।

  • लेकिन सरकार की नीतियाँ केवल आयात-लाभार्थी वर्ग के लिए नहीं, बल्कि रोजगार और उत्पादन आधारित राष्ट्र के लिए बनती हैं।

🟥 SECTION 6 — कब अवमूल्यन सावधानी माँगता है

रुपये का अवमूल्यन हानिकारक तभी होता है जब:

  • तेल की कीमतें बेकाबू हों
  • महंगाई नियंत्रण में न रहे
  • विदेशी ऋण अत्यधिक बढ़ जाए

इसीलिए RBI का लक्ष्य रुपये को “मजबूत दिखाना” नहीं, बल्कि उसे स्थिर और नियंत्रित सीमा में रहने देना है।

  • यही आर्थिक सुरक्षा का संतुलन है।

🟥 SECTION 7 — मुद्रा राष्ट्रध्वज नहीं, आर्थिक उपकरण है

राष्ट्र की शक्ति:

  • सेना
  • उद्योग
  • तकनीक
  • रोजगार
  • उत्पादन

से मापी जाती है, मुद्रा के बाहरी मूल्य से नहीं।

यदि नियंत्रित अवमूल्यन:

  • निर्यात बढ़ाए
  • नौकरियाँ पैदा करे
  • आयात निर्भरता कम करे
  • उत्पादन बढ़ाए

तो यह कमजोरी नहीं, रणनीतिक मजबूती है।

  • भारत को मुद्रा-अहंकार नहीं, मुद्रा-नीति चाहिए।

🟥 SECTION 8 — भारत को मुद्रा के प्रति दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता

रुपये की हल्की गिरावट पर भय फैलाना पुरानी आर्थिक सोच है।

नई भारत को समझना होगा:

  • मुद्रा उतार-चढ़ाव सामान्य है
  • वैश्विक पूँजी प्रवाह में परिवर्तन होता है
  • व्यापार संतुलन बदलता है
  • भंडार नीतियाँ दिशा तय करती हैं

असली शक्ति है:

  • निर्यात विस्तार
  • रोजगार वृद्धि
  • नवाचार
  • विनिर्माण नेतृत्व

रुपये का मूल्य नहीं, राष्ट्र की उत्पादक क्षमता ज्यादा मायने रखती है।

🕉 SECTION 9 — अवमूल्यन पतन नहीं, डिज़ाइन है

यदि अवमूल्यन:

  • उत्पादन बढ़ाए
  • निर्यात सुदृढ़ करे
  • स्थानीय निर्माण को बढ़ाए
  • नौकरियाँ दे
  • रेमिटेंस को शक्तिशाली बनाए
  • आयात-लत घटाए

तो यह संकट नहीं, स्थिर आर्थिक रणनीति है।

>भारत को मुद्रा के गिरने का नहीं, मुद्रा के बुद्धिमान उपयोग का समय चाहिए।

>रुपया गिर नहीं रहा,भारत को उठाने के लिए समायोजित हो रहा है।

🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳

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