संविधान या शरीयत
भारत में आज एक अहम सवाल खड़ा है — क्या देश संविधान से चलेगा या शरीयत से? यह मुद्दा केवल धर्म या राजनीति का नहीं, बल्कि हर भारतीय की आज़ादी, समानता और न्याय से जुड़ा सवाल है।
🔥 1. वह बयान जिसने देश को झकझोर दिया
हाल ही में सहारनपुर के पूर्व विधायक माविया अली ने एक भड़काऊ और राष्ट्रविरोधी बयान दिया —
- “हम पहले मुसलमान हैं, फिर हिंदुस्तानी। शरीयत ही हमारा संविधान है। अगर भारतीय कानून इस्लाम से टकराएगा, तो हम इस्लाम के साथ होंगे।”
 - यह कोई सामान्य वक्तव्य नहीं था, बल्कि यह भारत की एकता, संविधान की सर्वोच्चता और राष्ट्रीय अखंडता पर सीधा हमला था।
 - यह उस खतरनाक मानसिकता को उजागर करता है जो कुछ वर्गों में धीरे-धीरे पनप रही है — जहाँ धार्मिक निष्ठा को राष्ट्रीय निष्ठा से ऊपर रखा जाता है।
 
⚠️ 2. इस सोच के पीछे छिपा ख़तरा
- यह विचारधारा मानती है कि धर्म देश से ऊपर है।
 - यह भारतीय संविधान की सर्वोच्चता को चुनौती देती है।
 - यह एक समान न्याय व्यवस्था की जगह अलग धार्मिक कानून (शरीयत) थोपने की कोशिश करती है।
 - इस सोच से फूट, कट्टरता और अस्थिरता फैलती है जो भारत जैसे बहुधर्मी समाज के लिए ज़हर के समान है।
 
🇮🇳 3. असली समस्या — भारतीयों की गलत प्राथमिकताएँ
दुःख की बात है कि यह समस्या केवल उग्रवादियों तक सीमित नहीं है।
यह हमारे समाज की एक गहरी मानसिक कमजोरी है।
- अधिकतर भारतीयों के लिए पहले आता है स्वार्थ,
 - फिर आता है धर्म या विचारधारा,
 - और सबसे अंत में आता है देशप्रेम।
 - यह क्रम उल्टा है — और यही हमारी गिरावट की जड़ है।
 
💡 हमें समझना होगा —
- “अगर देश सुरक्षित नहीं है, तो आपका धर्म, आपका परिवार, और आपका निजी जीवन भी सुरक्षित नहीं है।”
 - जब देश टूटता है, तो सब कुछ टूट जाता है।
 - इसलिए हर नागरिक का पहला कर्तव्य देश के प्रति निष्ठा होना चाहिए — धर्म, विचारधारा या स्वार्थ के बाद नहीं, बल्कि उनसे पहले।
 
⚖️ 4. भारत का संविधान — सर्वोच्च ग्रंथ
- भारत का संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं है,
यह 140 करोड़ भारतीयों को जोड़ने वाला पवित्र बंधन है। - यह सबको धर्म की स्वतंत्रता देता है — लेकिन राष्ट्र के कानून के भीतर।
 - यह सभी को समान न्याय देता है — किसी धर्म के लिए विशेष नियम नहीं।
 - यह स्वतंत्रता देता है — लेकिन राष्ट्रीय एकता की कीमत पर नहीं।
 - अगर हर कोई यह कहने लगे कि “मेरे धर्म का कानून देश के कानून से ऊपर है”,
तो भारत फिर से 1947 जैसी त्रासदी और विभाजन की ओर बढ़ जाएगा। 
🛑 5. राष्ट्र अनुशासन और जवाबदेही की आवश्यकता
भारत की अखंडता की रक्षा के लिए कुछ अटल सिद्धांतों को अपनाना आवश्यक है —
- कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं।
 - जो कोई भी शरीयत या किसी धार्मिक कानून को संविधान से ऊपर माने, उसे कानूनी दंड और सामाजिक विरोध का सामना करना चाहिए।
 - जो संविधान का सम्मान नहीं करता, उसे भारत में रहने का अधिकार नहीं।
 - जो लोग भारतीय संस्कृति, संविधान और एकता से असंतुष्ट हैं,
उन्हें यहाँ रहते हुए इसके लाभ उठाने का नैतिक अधिकार नहीं। 
राष्ट्रीय निष्ठा अनिवार्य है।
- हर नागरिक को — चाहे वह किसी भी धर्म का हो — “भारत पहले” की भावना अपनानी चाहिए।
 
कट्टर और उग्र विचारधाराओं से सावधान रहें।
- चाहे वह धार्मिक हो या राजनीतिक, ऐसी विचारधाराएँ राष्ट्र को भीतर से खोखला करती हैं और इन्हें बेनक़ाब करना हर भारतीय का कर्तव्य है।
 
संवैधानिक और नागरिक शिक्षा को बढ़ावा दें।
- स्कूलों और संस्थानों में संविधान, कर्तव्य, समानता और देशभक्ति पर शिक्षा दी जानी चाहिए।
 
🕉️ 6. सनातन दृष्टिकोण — धर्म और राष्ट्र एक हैं
- सनातन धर्म में धर्म का अर्थ अंधभक्ति नहीं, बल्कि न्याय, कर्तव्य और सत्य का पालन है।
 - राष्ट्र की सेवा ही सर्वोच्च धर्म है, क्योंकि राष्ट्र ही सभी धर्मों और स्वतंत्रताओं का रक्षक है।
 - हमारी सभ्यता ने हमेशा सभी धर्मों का सम्मान किया है,
परंतु कभी भी धर्म को राष्ट्र से ऊपर नहीं माना। 
सच्चे सनातनी जानते हैं —
- “भारत की रक्षा ही धर्म की रक्षा है।”
 
🧭 7. हमें क्या बदलना होगा
भारत को मजबूत और एकजुट बनाने के लिए हमें अपने भीतर परिवर्तन लाना होगा
- स्वार्थ की जगह कर्तव्य को रखो:
व्यक्तिगत हित से ऊपर राष्ट्रीय हित को रखो। - विभाजन की जगह एकता लाओ:
हिन्दू, मुस्लिम, सिख या ईसाई नहीं — पहले भारतीय बनो। - धार्मिक कानूनों से ऊपर राष्ट्रीय कानून:
संविधान ही सर्वोच्च है, किसी धर्म का कानून नहीं। - आलस्य की जगह ईमानदारी:
हर व्यक्ति अपने क्षेत्र में ईमानदारी से काम करे, यही राष्ट्र निर्माण है। - डर की जगह साहस:
राष्ट्रविरोधी विचारों के सामने चुप मत रहो, सच बोलो — यही सच्ची देशभक्ति है। 
🛕 8. नागरिकों का कर्तव्य
- संविधान का सम्मान और पालन करें।
 - बच्चों को उनके कर्तव्यों की शिक्षा दें, केवल अधिकारों की नहीं।
 - समाज में सक्रिय भागीदारी करें — वोट दें, स्वयंसेवा करें, जागरूक बनें।
 - धर्म या जाति के नाम पर विभाजन फैलाने वाली राजनीति का विरोध करें।
 - हर मंच पर भारत की एकता की रक्षा करें — घर में, कार्यस्थल पर, और सोशल मीडिया पर भी।
 
🕊️ 9. अंतिम सत्य — भारत पहले, सदा पहले 🇮🇳
- संविधान किसी धर्म के विरोध में नहीं है —
वह सभी को समान अधिकार देता है। - परंतु कोई धर्म संविधान से ऊपर नहीं हो सकता।
 - अगर हम “भारत से पहले मैं” सोचते रहेंगे,
तो न कानून, न सेना, न कोई नेता हमें बचा सकेगा। - अब समय है कि हम अपने निष्ठा का क्रम बदलें —
 - राष्ट्र पहले → कर्तव्य दूसरा → धर्म तीसरा → स्वयं सबसे बाद में।
 - क्योंकि केवल एक सुरक्षित और सशक्त राष्ट्र ही हमारे घर, मंदिर, मस्जिद और भविष्य की रक्षा कर सकता है।
 - “राष्ट्र के प्रति निष्ठा कोई विकल्प नहीं — यह सर्वोच्च धर्म है।” 🇮🇳
 - अगर हम यह नहीं कर पाए तो हम विश्वशक्ति नहीं बन पाएंगे और कोई दूसरा देश आकर हमें फिर से अपना गुलाम बना लेगा।
 
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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