सनातन धर्म (हिंदुत्व) केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह एक सभ्यतागत दृष्टिकोण भी है, जो करुणा, सह-अस्तित्व, वैश्विक भाईचारा और धर्म (न्याय एवं कर्तव्य) पर आधारित है। वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में भारत एक उभरती हुई शक्ति है, और क्या हिंदुत्व भारत की विदेश नीति को एक कूटनीतिक ताकत बना सकता है? यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।
1. हिंदुत्व का वैश्विक दृष्टिकोण: ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ और ‘सर्व धर्म समभाव’
भारत की विदेश नीति का एक महत्वपूर्ण आधार ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ (विश्व एक परिवार है) रहा है, जो कि हिंदुत्व की मौलिक शिक्षा से उत्पन्न हुआ है।
- यह सिद्धांत संयुक्त राष्ट्र, G-20, BRICS जैसे वैश्विक मंचों पर भारत की भूमिका को मजबूती देता है।
- धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता के कारण भारत विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के बीच मध्यस्थता और संवाद की भूमिका निभा सकता है।
उदाहरण:
- बौद्ध और हिंदू कूटनीति: भारत ने श्रीलंका, नेपाल, म्यांमार, थाईलैंड जैसे बौद्ध बहुल देशों के साथ सांस्कृतिक कूटनीति को मजबूत किया है।
- ‘इंडियन डायस्पोरा’ की शक्ति: भारतीय मूल के करोड़ों लोग दुनियाभर में बसे हुए हैं, जिनके साथ सांस्कृतिक संबंध भारत को एक वैश्विक शक्ति बना सकते हैं।
2. हिंदुत्व: सॉफ्ट पावर से हार्ड पावर तक
भारत अपनी ‘सॉफ्ट पावर’ (सांस्कृतिक और आध्यात्मिक प्रभाव) को ‘हार्ड पावर’ (आर्थिक और सैन्य शक्ति) में बदल सकता है।
सॉफ्ट पावर:
- योग, आयुर्वेद, और भारतीय संस्कृति को विश्व स्तर पर प्रचारित करना।
- अंतरराष्ट्रीय योग दिवस (21 जून) को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता मिलना इसका उदाहरण है।
- भारतीय धर्म और वेदांत पर आधारित शिक्षा और विचारधारा को प्रचारित करना।
हार्ड पावर:
- हिंदुत्व की सहिष्णुता और वीरता को जोड़कर एक शक्तिशाली रक्षा और सुरक्षा नीति तैयार करना।
- ‘सर्वे भवंतु सुखिनः’ और ‘शठे शाठ्यम् समाचरेत’ दोनों को अपनाकर कूटनीति बनाना।
- अखंड भारत की अवधारणा को सांस्कृतिक और रणनीतिक रूप से सुदृढ़ करना।
3. इस्लामिक और वामपंथी कूटनीति के विरुद्ध हिंदू शक्ति का निर्माण
- आज वैश्विक स्तर पर इस्लामिक कट्टरता और वामपंथी प्रचार का असर बढ़ रहा है, जिससे हिंदू सभ्यता और भारतीय संस्कृति को चुनौती मिल रही है।
- भारत को हिंदू राष्ट्रवादी कूटनीति अपनाकर ऐसे खतरों का सामना करना होगा।
- उदाहरण:
- कश्मीर में धारा 370 हटाने का वैश्विक समर्थन भारत की हिंदू-राष्ट्रवादी कूटनीति का परिणाम था।
- अयोध्या राम मंदिर निर्माण को वैश्विक मंच पर सांस्कृतिक पुनर्जागरण के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है।
4. हिंदुत्व और भारत की ‘एक्ट ईस्ट’, ‘नेबरहुड फर्स्ट’ एवं ‘ग्लोबल साउथ’ नीति
भारत की विदेश नीति में हिंदुत्व को शामिल करने से रणनीतिक बढ़त मिल सकती है।
एक्ट ईस्ट नीति:
- दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (इंडोनेशिया, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया) में हिंदू–बौद्ध विरासत को मजबूत कर प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।
नेबरहुड फर्स्ट नीति:
- नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में हिंदू प्रभाव को पुनः स्थापित करना।
ग्लोबल साउथ नेतृत्व:
- अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में सनातन संस्कृति को फैलाकर भारत को एक नेतृत्वकर्ता बनाना।
5. हिंदू राष्ट्रवाद: विश्व मंच पर भारत की नई पहचान
यदि भारत हिंदू राष्ट्रवाद को एक कूटनीतिक शक्ति के रूप में अपनाए, तो वह वैश्विक स्तर पर चीन और इस्लामिक कट्टरपंथ के खिलाफ एक मज़बूत विकल्प बन सकता है।
- धार्मिक पर्यटन और सांस्कृतिक पुनर्जागरण के माध्यम से वैश्विक हिंदू एकता को मजबूत किया जा सकता है।
- रक्षा नीति में हिंदू योद्धा संस्कृति (छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, गुरु गोविंद सिंह) को शामिल किया जा सकता है।
सुधार के उपाय:
- हिंदू राष्ट्रवाद पर आधारित विदेश नीति विकसित की जाए।
- हिंदू उद्योगपतियों और टेक्नोक्रेट्स को अंतरराष्ट्रीय प्रभाव बढ़ाने के लिए प्रेरित किया जाए।
- ग्लोबल हिंदू मीडिया और थिंक टैंक बनाए जाएं, ताकि हिंदू कूटनीति को प्रचारित किया जा सके।
हिंदुत्व केवल भारत की संस्कृति नहीं, बल्कि इसकी कूटनीतिक शक्ति भी बन सकता है।
- सनातन धर्म की सहिष्णुता और हिंदू राष्ट्रवाद की दृढ़ता को मिलाकर भारत एक वैश्विक शक्ति बन सकता है।
- यदि भारत अपनी विदेश नीति में हिंदू कूटनीति को शामिल करता है, तो यह न केवल भारत की रक्षा करेगा, बल्कि विश्व में सनातन धर्म को पुनः स्थापित करने का मार्ग भी प्रशस्त करेगा।
“हिंदुत्व को सशक्त बनाएं, भारत को महाशक्ति बनाएं!”