समावेशी राष्ट्र के लिए हिन्दू समाज का आह्वान
1. भूमिका: भारत, धर्म और अस्तित्व का संकट
- भारत का लोकतंत्र, सहिष्णुता और समावेश की नींव सनातन धर्म के सिद्धांतों पर टिकी हइस संस्कृति का मूल भाव — “एकं सद् विप्राः बहुधा वदन्ति” (सत्य एक है, विद्वान उसे कई नामों से पुकारते हैं) — भारतीय सभ्यता की विशालता और सह-अस्तित्व की भावना का प्रतीक है।
- हजारों वर्षों से भारत ने अपने ज्ञान, संस्कृति और विविधता को संजोए रखा है, पर जब भी अधर्म बढ़ा, सनातन समाज ने धर्म-संरक्षण के लिए शस्त्र उठाया।
- यही नीति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है, क्योंकि भारत फिर से वैचारिक, सांस्कृतिक और धार्मिक संघर्षों से गुजर रहा है।
2. सनातन धर्म के मूल तत्त्व — सहिष्णुता और समावेशन
- वेद, उपनिषद, पुराण और स्मृतियाँ हमें सिखाती हैं कि सहिष्णुता कोई कमजोरी नहीं, बल्कि आत्मबल की निशानी है।
- सनातन धर्म किसी पर अपना मत थोपता नहीं, बल्कि सबको अपनी आस्था के अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता देता है।
- इसीलिए भारत ने सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, यहूदी, मुस्लिम और ईसाई — सभी समुदायों को समान आदर और शरण दी।
- “सर्वे भवन्तु सुखिनः” का भाव केवल धार्मिक मंत्र नहीं, बल्कि सामाजिक दर्शन है — जहाँ सबके कल्याण की प्रार्थना की जाती है।
परन्तु, इस उदारता का बार-बार दुरुपयोग हुआ है, और अब समय आ गया है कि हम इसकी सीमाएँ समझें और धर्म-संरक्षण का अर्थ पुनः स्मरण करें।
3. सहिष्णुता की सीमा — धर्म-संरक्षण का अधिकार और कर्तव्य
- सहिष्णुता तब तक श्रेष्ठ है जब तक दोनों पक्ष आपसी सम्मान और शांति बनाए रखें।
- जब कोई विचारधारा या समुदाय अधर्म, हिंसा या अन्याय के मार्ग पर चलता है और दूसरों की आस्थाओं को नष्ट करने का प्रयास करता है — तब धर्म-संरक्षण कर्तव्य बन जाता है।
- गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा — “यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत…” अर्थात जब-जब अधर्म बढ़े, धर्म की रक्षा के लिए कार्य करना स्वयं धर्म है।
- इतिहास साक्षी है कि राम, कृष्ण, शिव, गुरुनानक, महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी जैसे धर्मयोद्धाओं ने इसी धर्मसंरक्षण की परंपरा निभाई।
- इसलिए आज का हिन्दू समाज यदि निष्क्रिय रहेगा, तो उसकी सहिष्णुता कायरता समझी जाएगी।
4. वर्तमान खतरे — वैचारिक, धार्मिक और राजनीतिक चुनौती
- आज भारत दोहरे खतरे से जूझ रहा है — इस्लामिक जेहाद और धार्मिक धर्मांतरण।
- इस्लामिक चरमपंथ तथा विदेशी मिशनरियाँ आर्थिक प्रलोभन, झूठे वादों और सांस्कृतिक युद्ध के माध्यम से भारत की जड़ों को खोखला कर रही हैं।
- दूसरी ओर, कुछ राजनीतिक दलों की तुष्टिकरण नीतियाँ, वोटबैंक की राजनीति और विदेशी एजेंडा इन शक्तियों को प्रोत्साहित कर रहे हैं।
- शिक्षा, मीडिया और सामाजिक संस्थानों में धीरे-धीरे ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है जहाँ हिन्दू संस्कृति को पिछड़ा और अन्य धर्मों को “प्रगतिशील” बताया जा रहा है।
- यह मानसिक गुलामी का नया रूप है, जो हमारी आत्मा और संस्कृति दोनों को कमजोर करता है।
5. हिन्दू समाज की चुप्पी और विभाजन — सबसे बड़ा खतरा
- पिछले कई दशकों से हिन्दू समाज ने अपनी आस्थाओं पर हो रहे हमलों को सहा लेकिन कभी एकजुट होकर उत्तर नहीं दिया।
- यही मौन विरोधी शक्तियों को और आक्रामक बनाता गया।
- समाज जाति, भाषा और क्षेत्र के नाम पर बँटता गया — कोई मराठी, कोई तमिल, कोई ब्राह्मण, कोई राजपूत — पर सबका धर्म एक था, फिर भी एकता नहीं दिखी।
- अगर हम अब भी नहीं जागे, तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।
- सनातन धर्म केवल पूजा की परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवनदर्शन है जिसे बचाना हमारा सर्वोच्च कर्तव्य है।
6. राष्ट्रवादी पुनरुत्थान — राजनीतिक और सामाजिक एकजुटता की आवश्यकता
- पिछले 11 वर्षों में भारत ने भ्रष्टाचार-मुक्त शासन, आत्मनिर्भरता, और वैश्विक सम्मान की दिशा में अद्भुत प्रगति की है।
- यह संभव हुआ क्योंकि एक राष्ट्रवादी, प्रोसनातन सरकार ने समाज, सुरक्षा और संस्कृति को प्राथमिकता दी।
- लेकिन विपक्षी दलों का “संविधान बचाओ” अभियान केवल एक छलावा है — उनका असली उद्देश्य सत्ता में लौटना और अपने पुराने भ्रष्ट सिस्टम को पुनर्जीवित करना है।
- कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों ने दशकों तक संविधान में संशोधन करके हिन्दू समाज को कमजोर किया और मुसलमानों का तुष्टिकरण किया।
- अब समय है कि हर सनातनी नागरिक राजनीति, समाज और संस्कृति के स्तर पर एकजुट होकर इस राष्ट्रवादी नीति का समर्थन करे।
7. सनातन नीति — आत्मरक्षा और उत्तरदायित्व का संतुलन
- सनातन धर्म सिखाता है — “अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च” अर्थात जब धर्म पर आक्रमण हो, तो उसका प्रतिकार ही धर्म है।
- हमें अब केवल सहिष्णुता नहीं, बल्कि रणनीति और संगठन की दिशा में आगे बढ़ना होगा।
- मंदिरों, आश्रमों, संघों, और सांस्कृतिक संस्थाओं को एक मंच पर लाना ही अब समय की मांग है।
- हिन्दू समाज को अपने धार्मिक और राजनीतिक नेतृत्व को निष्ठा से समर्थन देना चाहिए ताकि राष्ट्र सुरक्षित रह सके।
8. जाग्रत सनातन पुनर्जागरण का आह्वान
- अब यह युग फिर से जागृति का है — सनातन धर्म पुनर्जागरण का।
- हर हिन्दू को यह समझना होगा कि धर्म, राष्ट्र और संस्कृति की रक्षा केवल सरकार की नहीं, बल्कि हर नागरिक की जिम्मेदारी है।
- “धर्मो रक्षति रक्षितः” — जो धर्म की रक्षा करेगा, धर्म उसकी रक्षा स्वयं करेगा।
- आइए, अपनी संस्कृति, आस्था, और मातृभूमि की रक्षा के लिए एकजुट हों, संगठित हों, और इस राष्ट्र को विश्वगुरु के रूप में स्थापित करें।
- यही सच्चा देशभक्ति, यही सच्चा धर्म और यही सच्चा भारत है।
🔱 समापन संदेश
- “शांति, संयम जब तक संभव हो… शक्ति, साहस जब धर्म-संरक्षण हो।”
- अब हर हिन्दू, हर राष्ट्रवादी को अपने भीतर कृष्ण, शिव और राम का तेज जगाना होगा।
- क्योंकि आने वाले समय में धर्म और अधर्म का युद्ध वैचारिक नहीं, अस्तित्व का होगा — और केवल एकजुट हिन्दू समाज ही इसे जीत सकता है।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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