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सनातन धर्म आध्यात्मिक पथ की ओर

वर्तमान में सनातन धर्म का विकृत स्वरूप और सच्चे आध्यात्मिक पथ की ओर

⚠️ आज के हिंदू धर्म का भटकाव

आज जो धर्म “हिंदू धर्म” के नाम से प्रचलित है, वह वास्तव में सनातन धर्म के मूल तत्वों से भटक गया है। इसका मुख्य ध्यान दो बातों पर आकर टिक गया है:

  • इच्छा पूर्ति का साधन:
    अधिकांश पूजा-पाठ, व्रत, तीर्थयात्राएं, और देवताओं की उपासना केवल सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए हो रही हैं — जैसे धन, नौकरी, विवाह, संतान, स्वास्थ्य आदि।
  • लोग कम समय में, बिना परिश्रम के, सब कुछ चाहते हैं और इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। इसी लालसा का फायदा उठाकर कई कथावाचक, गुरु और पंडित अलग-अलग देवी-देवताओं, जापों, अनुष्ठानों और चमत्कारिक उपायों के नाम पर लोगों से मोटी धनराशि वसूल रहे हैं।

दुर्भाग्य से, कुछ लोग तो अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए मुस्लिम मजारों तक जाने लगे हैं, यह सब अपनी परंपरा को भूलकर।

  • पुण्य, पाप और स्वर्ग-नरक का जाल:
    दूसरी ओर, लोग दान-पुण्य के माध्यम से स्वर्ग पाने की लालसा में जुटे हैं। अब तो सैकड़ों प्रकार के “दान” और कर्मकांड मौजूद हैं, जिनसे कथित रूप से “पाप धुल जाते हैं”।
  • यह सब बाहरी सफाई है, आंतरिक शुद्धि नहीं। पूजा-पाठ, हवन, अनुष्ठान और कथा में लगकर हम यह समझते हैं कि पाप खत्म हो गए, परंतु इसका वास्तविक उद्देश्य खो गया है।
  • इसके पीछे एक संपूर्ण उद्योग खड़ा हो गया है — अधिक मंदिर, अधिक सेंटर, अधिक अनुयायी — क्योंकि हर भक्त एक आय का स्रोत बन गया है। नामापराध और अपराध जैसी अवधारणाओं को भी भय फैलाने और अधिक पैसा वसूलने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

आजकल धर्म केवल तीर्थयात्रा, कथा आयोजनों, ज्योतिषियों और गुरु इत्यादि  तक सीमित हो गया है। यह केवल इच्छापूर्ति का साधन बन गया है, मोक्ष या आत्मज्ञान का नहीं

🌿 सच्चा सनातन धर्म क्या है?

इसके विपरीत, सनातन धर्म का वास्तविक उद्देश्य है — आत्मचिंतन और परमात्मा से मिलन। इसके मूल प्रश्न हैं:

  • मैं कौन हूँ?
  • मैं यहाँ क्यों आया हूँ?
  • इस जीवन का उद्देश्य क्या है?

हम सब जिस सच्चे सुख की खोज में हैं, वह न तो भोग में है, न स्वर्ग में, बल्कि हमारे भीतर है — परमात्मा के मिलन में।

सनातन धर्म के अनुसार, हमारे जीवन के सभी सुख-दुख हमारे प्रारब्ध कर्मों का फल हैं, जिन्हें हम बदल नहीं सकते — केवल भोग सकते हैं। यहां तक कि महान संतों को भी अपने प्रारब्ध का फल भोगना पड़ा।

📜 मार्गदर्शक ग्रंथ: भगवद गीता और श्रीमद् भागवत

सनातन धर्म को समझने के लिए दो मुख्य ग्रंथ हैं:

  • भगवद गीता (700+ श्लोक) — स्वयं भगवान श्रीकृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया गया ज्ञान। यह समस्त वेद, उपनिषद और शास्त्रों का सार है।
  • श्रीमद् भागवत पुराण (18,000 श्लोक) — महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित और शुकदेव जी द्वारा राजा परीक्षित को सुनाया गया। यह गीता के संदेश को विस्तार देता है और ब्रह्मांड, अवतारों, संतों और ईश्वरीय लीलाओं का वर्णन करता है।

गीता हमें मार्ग दिखाती है, और भागवत हृदय को छूता है।

✨ एक परम अदृश्य संचालक

इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड का एक ही परम संचालक है जिसे अलग-अलग धर्मों में विभिन्न नामों से जाना जाता है:

  • ईश्वर, भगवान (हिंदू)
  • अल्लाह (मुस्लिम)
  • गॉड (ईसाई)
  • वाहेगुरु, सत श्री अकाल (सिख)

यह परमात्मा सर्वव्यापक, सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान है। वह हर जीव में निवास करता है और हमारे सभी कर्मों का साक्षी है। यदि हम वास्तव में इसमें विश्वास करें, तो कोई भी गलत कार्य नहीं करेगा।

हमें समझना चाहिए कि हमारे दुख-सुख दूसरों की वजह से नहीं, बल्कि हमारे ही कर्मों का परिणाम हैं। मंदिरों और बाबाओं के पीछे भागने से समाधान नहीं मिलेगा। केवल आत्मज्ञान और भक्ति ही हमें शांति देंगे।

🐚 कर्म, माया और मोक्ष

कुछ लोग पूछते हैं: अगर सब कुछ प्रारब्ध है, तो कर्म क्यों करें?
भगवद गीता कहती है: कोई भी क्षणभर भी निष्क्रिय नहीं रह सकता।
इसलिए कैसे कर्म किया जाए, यही महत्वपूर्ण है:

  • पाप या अहंकार से प्रेरित कर्म न करें
  • निःस्वार्थ भाव से कर्म करें
  • सभी कर्म भगवान को समर्पित करें

पुण्य भी बंधन है — स्वर्ण की जंजीर। केवल ज्ञान, कर्मयोग और भक्तियोग के माध्यम से ही आत्मा संसार चक्र से मुक्त हो सकती है।

🧘 आत्म-ज्ञान और जीवन का उद्देश्य

  • हम शरीर नहीं हैं
  • हम मन नहीं हैं
  • हम हैं आत्मा — परमात्मा का अंश

हमारा शरीर एक रथ है:

  • इंद्रियां इसके घोड़े हैं
  • मन लगाम है
  • बुद्धि सारथी है

जब मन विषयों में उलझा होता है, रथ सांसारिक सुख-दुखों के चक्कर मैं उकझ रहता है। लेकिन यदि मन भगवान में रमा हो, और बुद्धि शुद्ध हो, तो रथ मोक्ष की ओर बढ़ता है। हम ही अपने भाग्य के निर्माता हैं। भगवान केवल हमारे कर्मों का फल देते हैं। इसलिए उन्हें दोष देना अनुचित है।

💠 शुद्ध भक्ति और समर्पण का मार्ग

  • शास्त्रों के अनुसार आचरण करें
  • सही संतों, भक्तों और ज्ञानीजनों की संगति करें
  • ईश्वर या संतों की निंदा करने वालों से दूर रहें
  • वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या और द्वेष से मन को मुक्त करेँ

इन गुणों का विकास करें:

  • विनम्रता
  • करुणा
  • दया
  • धैर्य
  • संतोष
  • वैराग्य
  • आत्म-नियंत्रण

सब कुछ भगवान को समर्पित करें — यही सच्चा साधना पथ है।

भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं:

  • सर्व धर्मान परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वां सर्व पापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः।।
    (गीता 18.66)
  • सभी धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हारे सारे पापों से मुक्ति दूंगा। यह समर्पण ही मनुष्य जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है।

भगवान आगे कहते हैं:

  • मन्मना भव, मद्भक्तो, मद्याजी, मां नमस्कुरु।
  • अर्थात् — मेरा चिंतन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो, और मुझे प्रणाम करो।
  • सिर्फ नाम-जप से मन थक सकता है, इसलिए इसे भगवान की लीलाओं, गुणों, संतों की संगति और शास्त्रों के अध्ययन के साथ जोड़ना चाहिए।
  • जैसा अंत समय में मन होता है, वैसा ही अगला जन्म होता है। इसलिए, सांसारिक कर्म करते हुए भी भगवान का स्मरण करते रहना — यही सबसे सरल और प्रभावी मार्ग है।

भूला हुआ उद्देश्य

  • आज का धर्म केवल इच्छाओं की पूर्ति और सुख की खोज तक सीमित हो गया है।
    परंतु सनातन धर्म का उद्देश्य है — परम शांति, आत्मा की मुक्ति, और परमात्मा की प्राप्ति
  • अब समय है कि हम सच्चे ज्ञान, भक्ति, और समर्पण के मार्ग पर लौटें।
    ईश्वर से सौदेबाजी बंद करें। अंधविश्वास छोड़ें।
  • ज्ञानपूर्वक, श्रद्धा से, और एकाग्रता से चलें।

यही है सच्चा सनातन धर्म

🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳

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