सनातन पर हो रहा आघात
क्या आप जानते हैं?
भारत की हर भूमि, हर कोने में आज भी खंडित मंदिरों, जली हुई मूर्तियों, और टूटी हुई सांस्कृतिक विरासतों की चीख सुनाई देती है।
ये कोई साधारण पत्थर नहीं हैं —
ये हमारी पहचान, आस्था, परंपरा, संस्कृति और आत्मा का प्रतीक हैं।
इन मूर्तियों को किसने तोड़ा?
उन आक्रांताओं ने, जिनके लिए हम ‘काफिर’ थे।
जिन्हें न शिव पसंद थे, न राम।
न देवी पूजा, न गाय, न पीपल, न नदियाँ।
जिन्हें गंगा नहीं खलीफा चाहिए था।
जिन्हें वेदों की शांति नहीं, तलवार की धार चाहिए थी।
वे आए, उन्होंने मंदिर तोड़े।
नालंदा जला दी।
हजारों विश्वविद्यालय, गुरुकुल, पुस्तकालय — भस्म कर दिए।
औरतों को उठाया, धर्मांतरण करवाया, मूर्तियाँ खंडित कीं।
और क्या बदला है आज?
उनकी संतति आज नए हथियार के साथ खड़ी है —
प्रश्नों के हथियार के साथ।
- शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाते हो?
- शंख क्यों बजाते हो?
- मंगलसूत्र क्यों पहनते हो?
- मंदिर क्यों जाते हो?
- गाय को क्यों पूजते हो?
- तुलसी क्यों लगाते हो?
- यज्ञ क्यों करते हो?
क्या ये सवाल जिज्ञासा से पूछे जाते हैं?
नहीं।
ये सवाल तिरस्कार से पूछे जाते हैं।
इनका मकसद आपकी परंपरा का सम्मान करना नहीं,
उसे नीचा दिखाना है।
वे आपके उत्तरों से कभी संतुष्ट नहीं होंगे —
क्योंकि उनका उद्देश्य आपकी संस्कृति को समाप्त करना है।
चाणक्य ने चेताया था:
“यदि बाहरी लोगों को यहां जगह दी गई, तो वे सबसे पहले आपकी संस्कृति को निशाना बनाएंगे।
वो आपके समाज को तोड़ेंगे, धर्म को कमजोर करेंगे, और फिर राष्ट्र का पतन सुनिश्चित करेंगे।”
क्या आज वही नहीं हो रहा?
हमारे बीच कुछ लोग दल, जाति, सत्ता के नाम पर इन्हीं विघटनकारी शक्तियों के साथ खड़े हो गए हैं।
हमें समझना होगा —
जब समाज टूटता है,
तो धर्म डगमगाता है।
जब धर्म नहीं बचेगा,
तो संस्कृति कैसे बचेगी?
और जब संस्कृति मर जाएगी,
तो भारत का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा।
लेकिन… अभी भी उम्मीद बाकी है।
- हमारे पास हैं भारत के लाखों मंदिरों की धरोहरें।
- हमारी सभ्यता आज भी जिंदा है — होयसल, सुचिन्द्रम, चित्रदुर्ग, कांची, काशी, द्वारका, बद्रीनाथ, कोणार्क।
- हमारे पास है हजारों वर्षों की वैज्ञानिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि।और सबसे बड़ी बात — हमारे पास है संख्यात्मक शक्ति।
- हम बहुसंख्यक हैं।
- हम जागेंगे, तो भारत बचेगा।
- हम एक होंगे, तो सनातन बचेगा।
अब विकल्प स्पष्ट हैं:
या तो चुप रहो और मिट जाओ —
जैसे गांधार, मेसोपोटामिया, मिस्र की सभ्यताएँ हो गईं।
या फिर उठो, जागो, और आक्रोश से उत्तर दो —
शब्द से, संगठन से, सच्चाई से, और संस्कृति से।
आज जरूरत है कि:
- सभी हिंदू संगठन — RSS, VHP, बजरंग दल, अखाड़ा परिषद, जागें और रक्षा करें।
- सभी धार्मिक संस्थाएं — ISKCON, रामकृष्ण मिशन, ब्रह्माकुमारी, श्रीवैष्णव, आदि संप्रदाय, अपनी धार्मिक जिम्मेदारी निभाएं।
- सभी साधु-संत, मठाधीश, गुरु — अब धर्मक्षेत्र में उतरें, मठों से बाहर निकलें।
आज बंगाल जल रहा है, हिंदू मारे जा रहे हैं, मंदिर तोड़े जा रहे हैं — और हम मौन हैं?
क्यों? किसके इंतजार में हैं हम?
अब समय है — एक विराट सांस्कृतिक पुनर्जागरण का।
- अब समय है — आत्मगौरव से उठने का।
- अब समय है — संघर्ष का, संगठन का, सनातन के पुनर्निर्माण का।
हम चुप रह गए तो —
इतिहास माफ नहीं करेगा,
और हमारी पीढ़ियाँ हमें धिक्कारेंगी।
आज जब सनातन संस्कृति पर बार-बार आघात हो रहा है, तो चुप रहना विकल्प नहीं है। अब समय आ गया है कि हम सभी मिलकर जागें, संगठित हों और अपनी आस्था, परंपरा और विरासत की रक्षा के लिए एकजुट कदम उठाएं। संघर्ष ही सनातन धर्म के पुनर्निर्माण का मार्ग है — और यही भारत के भविष्य की गारंटी भी।
| जय भारत, वन्देमातरम |
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