सेना और प्रधानमंत्री पर अभद्र टिप्पणियाँ
सेना और प्रधानमंत्री पर अभद्र टिप्पणियाँ: यह एक विवादास्पद विषय है जिसमें कुछ व्यक्तियों या संगठनों द्वारा भारतीय सशस्त्र बलों और प्रधानमंत्री के खिलाफ अपमानजनक या अभद्र भाषा का उपयोग किया गया है। ऐसे बयान अक्सर राष्ट्रीय सुरक्षा, राजनीतिक असहमति या सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संदर्भ में चर्चा का कारण बनते हैं।
— क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है या राष्ट्रद्रोह का खुलेआम प्रदर्शन?
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के पूर्व विधायक अरुण तिवारी ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया है कि भारत में कुछ लोगों के लिए राजनीति अब सेवा का माध्यम नहीं बल्कि राष्ट्र–विरोध का हथियार बन चुकी है। सेना जैसे गौरवशाली और पवित्र संस्थान और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता पर निचले स्तर की अपमानजनक टिप्पणियाँ करके न केवल देश की आंतरिक एकता पर हमला किया गया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की छवि को भी धूमिल किया गया है।
🔥 इस अपमानजनक व्यवहार को “राय की स्वतंत्रता” कहना — लोकतंत्र का मज़ाक है!
क्या कोई ऐसा देश है जहाँ:
- सेना पर कीचड़ उछालना राष्ट्र सेवा कहलाए?
- प्रधानमंत्री को गालियाँ देना राजनीतिक मतभेद हो जाए?
- और फिर भी अपराधी मीडिया में “बोलने की आज़ादी” के नायक बन जाएँ?
भारत में अब यह ‘Trend’ बन चुका है — “सेना और मोदी को गाली दो, पार्टी में पद पाओ, मीडिया में नायक बनो, और फिर गिरफ़्तारी पर ‘शहीद’ कहलाओ।”
⚖️ राष्ट्रविरोधी मानसिकता पर अब क़ानूनी शिंकजा जरूरी है:
ये घटनाएँ केवल isolated political episodes नहीं हैं, बल्कि एक बड़ी राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा हैं:
- यह सेना के मनोबल को गिराने का प्रयास है, जिससे उनके अंदर विभाजन पैदा हो और राष्ट्र की रक्षा कमजोर हो।
- यह प्रधानमंत्री जैसे लोकप्रिय और प्रभावशाली नेता की छवि को धूमिल करने की सुनियोजित कोशिश है — ताकि देश की वैश्विक शक्ति छवि को नुकसान पहुँचे।
- यह देश में अराजकता और अविश्वास फैलाने का प्रयोग है, जिसमें कुछ राजनीतिक दल और विदेशी हितधारी लगातार ईंधन डालते हैं।
📜 अब क्या होना चाहिए?
✅ कानूनी प्रावधानों में सख्ती की ज़रूरत है:
- जो भी व्यक्ति, संस्था या दल सेना, प्रधानमंत्री, या संवैधानिक संस्थानों पर झूठे आरोप लगाए या मानहानिक बातें कहे — उस पर तुरंत देशद्रोह या संगठित राष्ट्रविरोधी अपराध की धाराएँ लगें।
- ऐसे मामलों की फास्ट ट्रैक कोर्ट में सुनवाई हो और 3 महीने के भीतर फैसला सुनाया जाए।
- किसी भी राजनीतिक दल, NGO या मीडिया संस्थान को इस तरह के अपराधियों का बचाव करने की अनुमति न हो — ऐसा करने पर उन पर भी जुर्माना और दंड लगे।
🛡️ ये केवल शब्द नहीं, ये युद्ध है — मानसिक, वैचारिक और वैधानिक
जब कोई सैनिक दुश्मनों से सीमा पर लड़ता है, और उसी समय देश के अंदर बैठे राजनेता उसका अपमान करते हैं — तो यह पीठ में छुरा घोंपना नहीं तो और क्या है?
जब प्रधानमंत्री जैसे वैश्विक नेता, जिन्होंने भारत को UN, G20, Quad, BRICS जैसे मंचों पर सम्मान दिलाया, उनके खिलाफ सरेआम गंदी भाषा बोली जाती है — तो यह केवल राजनीतिक आलोचना नहीं, राष्ट्रद्रोह का खुला प्रदर्शन है।
राष्ट्र प्रथम, पार्टी बाद में
- आज भारत को चाहिए:
- कड़ा कानून,
- सजग जनता,
- और राष्ट्रनिष्ठ न्यायपालिका,
ताकि किसी को भी भारत की गरिमा पर हमला करने का दुस्साहस न हो।
🔴 अब समय है — राष्ट्रवाद को केवल भावना नहीं, बल्कि नीति, कानून और प्रतिकार की शक्ति बनाना।
🙏 भारत माता की जय
जय भारत! वंदे मातरम्!
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