कांग्रेस की राजनीति और मोदी सरकार का फर्क
- पश्चिम बंगाल सहित देश के कुछ हिस्सों में उकसावे की राजनीति को देखकर अनेक लोगों के मन में स्वाभाविक प्रश्न उठते हैं।
- सबसे बड़ा सवाल यही है— “अगर केंद्र इतना सक्षम है, तो तुरंत सख़्त कदम क्यों नहीं?”
- इसका उत्तर भावनाओं में नहीं, रणनीति, संवैधानिक मर्यादा और राष्ट्रीय हित में छिपा है।
🔊 1. कांग्रेस मॉडल: शोर बहुत, काम कम—और वह भी राष्ट्रीय हित के विरुद्ध
भारत ने दशकों तक एक ऐसा मॉडल देखा है जिसमें:
- हर मुद्दे पर ज़ोरदार बयानबाज़ी
- हर घटना पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस और धरना
- मीडिया में आक्रामक शोर
लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह रही कि:
- आतंकवाद पर नरमी
- राष्ट्रविरोधी तत्वों से समझौते
- हिंदू हितों की लगातार अनदेखी
- मुस्लिम तुष्टिकरण आधारित वोट-बैंक राजनीति
कांग्रेस की “कार्रवाई” अक्सर:
- प्रतीकात्मक होती थी
- कोर्ट में टिकती नहीं थी
- देश को दीर्घकालिक नुकसान पहुँचाती थी
यानी शोर राष्ट्रहित का नहीं, एजेंडे का होता था।
🔇 2. मोदी मॉडल: कम शोर, गहरी तैयारी, निर्णायक परिणाम
मोदी सरकार का कार्य-तरीका मूलतः अलग है:
- अनावश्यक बयानबाज़ी से दूरी
- मीडिया-ड्रामा से परहेज़
- भावनात्मक उकसावे से इंकार
इसके स्थान पर:
- ख़ामोशी से इंटेलिजेंस इनपुट
- कानूनी और संवैधानिक तैयारी
- बहु–एजेंसी समन्वय
- अंतरराष्ट्रीय प्रभावों का आकलन
और जब कार्रवाई होती है:
- वह अचानक नहीं लगती, लेकिन निर्णायक होती है
- वह प्रचार नहीं करती, परिणाम देती है
इतिहास गवाह है:
- सर्जिकल स्ट्राइक
- एयर स्ट्राइक
- आतंक फंडिंग पर कठोर प्रहार
- UAPA, NIA, ED के माध्यम से ठोस कदम
👉 यह सरकार बोलकर नहीं, करके दिखाती है।
🧠 3. अगर शोर नहीं है, तो समझिए काम चल रहा है
यह मान लेना कि:
- “सरकार कुछ नहीं कर रही”
- “केंद्र सो रहा है”
एक बड़ी भूल है।
मोदी टीम का सिद्धांत स्पष्ट है:
- “तैयारी पूरी होने से पहले शोर नहीं।”
क्योंकि:
- अधूरी तैयारी = न्यायिक विफलता
- जल्दबाज़ी = अंतरराष्ट्रीय दबाव
- भावनात्मक कदम = देश को नुकसान
शांत रहकर काम करना कमज़ोरी नहीं, रणनीतिक परिपक्वता है।
🏛️ 4. संघीय ढांचा और संवैधानिक मर्यादा
भारत के संघीय ढांचे में:
- कानून-व्यवस्था राज्य का विषय है
- केंद्र बिना ठोस आधार के सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता
लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि:
- केंद्र असहाय है
- एजेंसियाँ निष्क्रिय हैं
वास्तविकता यह है:
- निरंतर निगरानी
- डेटा और इनपुट का संकलन
- जिम्मेदारियों की स्पष्ट पहचान
- समय आने पर संवैधानिक विकल्पों का प्रयोग
कानून तब सबसे मज़बूत होता है, जब सबूत निर्विवाद हों।
♟️ 5. उकसावे की राजनीति अंततः अपने ही जाल में फँसती है
इतिहास बताता है:
जो सत्ता उकसावे और विभाजन पर टिकी होती है वही आगे चलकर
- न्यायिक संकट
- प्रशासनिक विफलता
- जन-असंतोष
का सामना करती है।
अल्पकालिक लाभ:
- शोर और भीड़ से मिल सकता है
दीर्घकालिक परिणाम:
- कानून और जनता तय करती है
🌍 6. अंतरराष्ट्रीय संदर्भ: हर कदम वैश्विक निगाहों में
आज भारत:
- निवेश का बड़ा केंद्र है
- वैश्विक मंचों पर नेतृत्व कर रहा है
- कानून-आधारित व्यवस्था का पक्षधर है
ऐसे में:
- विरोधी शक्तियाँ मानवाधिकार और अल्पसंख्यक नैरेटिव से दबाव बनाती हैं
- इसलिए हर कदम वैध, संतुलित और टिकाऊ होना ज़रूरी है
मोदी सरकार:
- टकराव नहीं, वैधता चुनती है
- प्रचार नहीं, प्रक्रिया पर भरोसा करती है
🛡️ 7. समाज की भूमिका: भरोसा, समर्थन और वैध आत्म-रक्षा की तैयारी
- सरकार अपना काम कर रही है, लेकिन समाज की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
✔️ नागरिकों के लिए ज़रूरी बिंदु:
- मोदी टीम पर पूरा भरोसा रखें
- राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर मज़बूत समर्थन दें
- अफवाहों और उकसावे से बचें
- कानून और संविधान के साथ खड़े रहें
✔️ वैध आत्म-रक्षा और सजगता:
- मानसिक रूप से सजग रहें
- शारीरिक रूप से स्वस्थ और सक्षम रहें
- परिवार और समाज की कानूनी आत्म–सुरक्षा के उपाय जानें
- संकट की स्थिति में प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों से सहयोग करें
👉 यह हिंसा का आह्वान नहीं है।
👉 यह जिम्मेदार नागरिक सजगता और आत्म–संरक्षण की बात है।
🔥 8. निर्णायक क्षणों पर मोदी सरकार का रिकॉर्ड
जो लोग पूछते हैं:
- “कार्रवाई कब होगी?”
उन्हें याद रखना चाहिए:
- कार्रवाई हमेशा घोषणाओं के साथ नहीं,
- बल्कि परिणामों के साथ सामने आती है।
और जब आती है:
- वह देश की सुरक्षा को मज़बूत करती है
- और भविष्य के लिए स्थायी समाधान छोड़ती है
🇮🇳 मौन को कमज़ोरी न समझें
यह कांग्रेस युग नहीं है:
- जहाँ शोर बहुत और काम शून्य हो
यह मोदी का भारत है:
- जहाँ शांत तैयारी होती है
- और सही समय पर निर्णायक कदम
>पूरा भरोसा रखें।
>मज़बूती से समर्थन दें।
>सजग और एकजुट रहें।
और आवश्यकता पड़ने पर—कानून के दायरे में— स्वयं, समाज और देश की रक्षा के लिए तैयार रहें।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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