सोशल मीडिया और पक्षपाती मीडिया
आज जब सच्चाई सबसे अधिक सुलभ होनी चाहिए थी, हम झूठ, भ्रम और मानसिक प्रदूषण के जाल में फँसते जा रहे हैं — जिसे सोशल मीडिया और मुख्यधारा की मीडिया द्वारा हर दिन फैलाया जा रहा है।
सोशल मीडिया जो कभी अभिव्यक्ति और ज्ञान का माध्यम था, आज एक खतरनाक युद्धभूमि बन चुका है:
- ग़लत जानकारी फैलाने का केंद्र
- नैतिक मूल्यों का ह्रास
- वैचारिक चरमपंथ और युवाओं का ब्रेनवॉश
- जनता को भटकाने और बाँटने का उपकरण
📱 सोशल मीडिया: परिवर्तन का माध्यम या अराजकता का हथियार?
आज सोशल मीडिया पर अधिकांश कंटेंट:
- सच्चाई के लिए नहीं
- समाज के हित के लिए नहीं
- बल्कि सिर्फ़ लाइक, व्यूज़ और पैसा कमाने के लिए डाला जा रहा है।
👉 इसके लिए लोग:
- झूठ फैलाते हैं,
- अश्लीलता को बढ़ावा देते हैं,
- भावनाओं के साथ खेलते हैं,
- धर्म और राष्ट्र के खिलाफ ज़हर उगलते हैं।
🎯 परिणाम क्या है?
- युवा नैतिक पतन की ओर जा रहे हैं,
- बुजुर्ग भ्रमित हैं,
- बच्चे अनुपयुक्त सामग्री के संपर्क में आ रहे हैं,
- और राष्ट्रीय एकता पर चोट पहुँच रही है।
🗣️ ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर कितना झेलेंगे?
हमें स्पष्ट होना होगा — अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ ये नहीं कि कोई भी झूठ, नफ़रत या अश्लीलता फैलाने की आज़ादी हो।
भारत और विश्वभर में:
- सोशल मीडिया का प्रयोग सरकारों को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है।
- चरमपंथी विचारधाराएं फैलाकर युवाओं को बहकाया जा रहा है।
- धर्म और जाति के नाम पर जनता को बाँटने का षड्यंत्र हो रहा है।
- और इसे “अभिव्यक्ति की आज़ादी” की ढाल में छिपा दिया जाता है।
📰 मुख्यधारा की मीडिया: निष्पक्षता गई, पक्षपात आया
सोशल मीडिया की तरह आज अधिकतर मीडिया हाउस भी:
- राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए हैं,
- विदेशी फंडिंग पर चल रहे हैं,
- राष्ट्र विरोधी और हिन्दू विरोधी एजेंडों को हवा दे रहे हैं,
- और सच्ची ख़बरों को छुपाकर, झूठी कहानियों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रहे हैं।
📢 पत्रकारिता अब जनता की सेवा नहीं, एक राजनीतिक हथियार बन गई है।
🌐 यह भारत की ही नहीं, वैश्विक समस्या है
- अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका में सोशल मीडिया का उपयोग नस्लीय हिंसा, गृह अशांति और युवाओं की मानसिक गुलामी के लिए किया जा रहा है।
- भारत में यह एक सामाजिक, सांस्कृतिक और वैचारिक विष बन चुका है।
- यह स्वतंत्रता नहीं — सूचना का नियंत्रण और समाज का मानसिक उपनिवेशीकरण है।
🇮🇳 भारत के लिए खतरा क्यों है?
भारत एक मात्र देश है जो सभ्यता के आधार पर बना है — और इस सभ्यता की रक्षा सच्चाई, धर्म और सामाजिक संतुलन से होती है।
अगर हमने:
- झूठ और नफ़रत को सहना जारी रखा,
- धर्म के नाम पर लोगों को बाँटने वालों को न रोका,
- युवाओं को भटकाने वालों को खुली छूट दी,
- और राष्ट्र विरोधी ताक़तों को मंच दिया —
तो हम अपने ही देश को फिर से ग़ुलामी की ओर धकेल देंगे।
🛡️ समाधान क्या है?
अब सिर्फ़ आलोचना नहीं, व्यवस्था चाहिए — ठोस और स्पष्ट:
1. डिजिटल जवाबदेही लागू हो
- ग़लत जानकारी, घृणा फैलाने वाले और अश्लील कंटेंट पर सख़्त कार्रवाई हो।
- फ़ैक्ट-चेकिंग को अनिवार्य किया जाए।
- धार्मिक या राष्ट्रविरोधी कंटेंट तुरंत हटाया जाए।
2. राष्ट्रीय डिजिटल नीति बने
- शिक्षाविद, आईटी विशेषज्ञ, समाजसेवी, और नीति-निर्माता मिलकर सोशल मीडिया के लिए दिशा तय करें।
3. भारतीय मीडिया को गैर-राजनीतिक बनाया जाए
- हर मीडिया संस्थान को अपनी फंडिंग और राजनीतिक जुड़ाव सार्वजनिक करना अनिवार्य हो।
- विदेशी पैसे से चलने वाले मीडिया चैनल पर निगरानी रखी जाए।
4. धर्मिक और राष्ट्रवादी कंटेंट को बढ़ावा मिले
- भारतीय संस्कृति, वेद, योग, इतिहास, नैतिकता पर काम करने वाले क्रिएटर्स को प्रोत्साहन मिले।
5. जनजागरूकता अभियान चलाए जाएं
- लोगों को फेक न्यूज़ पहचानने और ज़िम्मेदारी से सोशल मीडिया इस्तेमाल करने के लिए प्रशिक्षित किया जाए।
✊ आम नागरिकों से अपील: जागो और नेतृत्व कर
👉 अब समय है कि हम:
- झूठ को नकारें,
- सत्य का साथ दें,
- राष्ट्रवादी मीडिया को सहयोग दें,
- और भारत को फिर से सत्य, धर्म और विवेक का प्रकाशस्तंभ बनाएं।
🕉️ “धर्म केवल पूजा नहीं — सत्य और न्याय की रक्षा करना भी धर्म है।”
अब सत्य की लड़ाई सिर्फ़ अदालतों में नहीं, इंटरनेट और मीडिया में भी है।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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