आज का भारत डिजिटल क्रांति के दौर से गुजर रहा है — लेकिन इसी क्रांति की आड़ में एक नया, अदृश्य और बेहद खतरनाक मोर्चा खुल चुका है। यह मोर्चा है – सोशल मीडिया पर डीपफेक खतरा, भ्रामक वीडियो, और सोशल मीडिया की नैतिकता का ह्रास।
🔍 सिर्फ डीपफेक नहीं, ‘फेक टाइटल’ और ‘क्लिकबेट’ भी बड़ा खतरा
- आजकल सिर्फ डीपफेक वीडियो ही नहीं, बल्कि ऐसे वीडियो भी तेजी से वायरल किए जा रहे हैं जिनके शीर्षक (titles) पूरी तरह भ्रामक होते हैं। उदाहरण के लिए—
- एक वीडियो का शीर्षक होता है: “देखिए मोदी ने क्या कहा मुसलमानों के बारे में”, और अंदर कोई पुराना भाषण होता है जिसका इससे कोई लेना-देना नहीं।
- कुछ वीडियो सिर्फ लाइक और शेयर बटोरने के लिए झूठी घटनाओं, मनगढ़ंत स्क्रिप्ट और संवेदनशील मसलों को तोड़-मरोड़ कर परोसते हैं।
- कई बार इन वीडियो के पीछे एक स्पष्ट दुर्भावनापूर्ण एजेंडाछिपा होता है — समाज में वैमनस्य फैलाने, किसी समुदाय या नेता को बदनाम करने, या चुनावी ध्रुवीकरण कराने के लिए।
🔞 एडल्ट कंटेंट का नया रूप — टेक्स्ट और नज़रों से छिपा जहर
- अब कई वीडियो में अश्लीलता सीधे तस्वीरों में नहीं, बल्कि टेक्स्ट, कमेंट्स और स्क्रिप्ट के जरिए परोसी जाती है। ऐसे वीडियो किशोरों को आकर्षित करने के लिए भावनात्मक प्रेम कहानियों, कथित लव स्कैंडल, या स्त्री-द्वेष आधारित संवाद के माध्यम से गुप्त रूप से पोर्नोग्राफिक कंटेंट परोसते हैं — और ये यूट्यूब शॉर्ट्स, इंस्टाग्राम रील्स, वॉट्सऐप पर काफी मात्रा में घूम रहे हैं।
⚠️ डीपफेक वीडियो: भारत की सुरक्षा और लोकतंत्र पर सीधा हमला
कुछ गंभीर उदाहरण:
- केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाहका फर्जी वीडियो जिसमें उन्हें आरक्षण खत्म करने की बात करते हुए दिखाया गया।
- एलटीटीई चीफ की मृत बेटी द्वारका का वीडियो — जिसमें उसे जिंदा दिखाने की साजिश की गई।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद चेतावनी दी है कि डीपफेक भारत के लोकतंत्र और सामाजिक सौहार्द के लिए एक गंभीर खतरा बन चुका है।
📉 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की नैतिक जिम्मेदारी खोखली साबित हो रही है
- व्हाट्सएप जैसे ऐप्स की एंड-टू-एंड एन्क्रिप्शन सुविधा फर्जी वीडियो की ट्रैकिंग को लगभग असंभव बना देती है। YouTube और Instagram जैसे प्लेटफॉर्म पर व्यूज के लोभ में अनैतिक और झूठी सामग्री को AI रिकमेंडेशन सिस्टम बढ़ावा देता है।
📜 भारत में अभी भी स्पष्ट और प्रभावी कानूनों की कमी
- भारत में डीपफेक या डिजिटल भ्रामकता के विरुद्ध कोई स्वतंत्र कानून नहीं है। अपराधी आसानी से वीपीएन और फर्जी प्रोफाइल से अपनी पहचान छिपा लेते हैं, और कानून-व्यवस्था उन्हें पकड़ने में पिछड़ जाती है।
✅ अब वक्त है — सोशल मीडिया पर कड़ा नियंत्रण और नैतिक दायित्व तय करने का
🔐 ये ठोस कदम अब अनिवार्य हैं:
- डीपफेक और फेक कंटेंट से संबंधित कड़े डिजिटल कानून बनाना — जिसमें कम से कम 5–10 साल की सजा का प्रावधान हो।
- क्लिकबेट और भ्रामक शीर्षकोंके खिलाफ विचारधारा-स्वतंत्र, निष्पक्ष तकनीकी समीक्षा कमेटी।
- हर वीडियो में डिजिटल वॉटरमार्किंग अनिवार्य ताकि स्रोत का तुरंत पता चल सके।
- सोशल मीडिया कंपनियों को कानूनी रूप से जवाबदेहबनाना — अगर वे फर्जी कंटेंट को हटाने में असफल रहते हैं।
- पुलिस, न्यायपालिका और छात्रों को डीपफेक व फेक न्यूज की पहचान के लिए विशेष प्रशिक्षण देना।
- युवाओं को डिजिटल नागरिकता (Digital Civics) और नैतिक सोशल मीडिया व्यवहार सिखाना।
- टेक्स्ट-आधारित एडल्ट कंटेंट पर रोक लगाने के लिए AI मॉडरेशन सिस्टम लागू करना।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाना, जिससे यह वैश्विक खतरा मिलकर रोका जा सके।
🔚 डिजिटल आज़ादी के नाम पर देश को बर्बादी की ओर न धकेलें
- अगर सोशल मीडिया पर नैतिकता, सच्चाई और कानून का नियंत्रण आज नहीं हुआ, तो आने वाले समय में चुनाव, न्याय व्यवस्था और युवा पीढ़ी सभी खतरे में पड़ सकते हैं।
अभी नहीं जागे — तो देर हो जाएगी।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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