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सोनिया गांधी

सोनिया गांधी ने इंडियन नेशनल कांग्रेस को कैसे हमेशा के लिए बदल दिया

कैसे बदली कांग्रेस की दिशा और पहचान

  • यह परिवर्तन कांग्रेस को एक आत्मनिर्भर और देशभक्त शक्ति से उठाकर एक वैश्विक वाम-उदारवादी इकाई बना गया, जो राष्ट्र-विरोधी एजेंडा आगे बढ़ाती है और भारत को विदेशी वैचारिक आकाओं पर निर्भर बनाने का काम करती है।

सेक्शन 1 — भूमिका: एक ऐसा बदलाव जो दिखा नहीं, पर जिसने सब बदल दिया

  • 14 मार्च 1998 केवल कांग्रेस अध्यक्ष बदलने की तारीख नहीं थी—
    यह उस राजनीतिक मोड़ का दिन था, जब इंडियन नेशनल कांग्रेस अपने मूल राष्ट्रवादी ढाँचे से हटकर, धीरे-धीरे वैश्विक प्रोग्रेसिव-लेफ्ट नेटवर्क्स और बाहरी वैचारिक ढांचों की ओर झुकने लगी।
  • यह परिवर्तन धीरे-धीरे, चुपचाप और परोक्ष रूप से हुआ। लेकिन इसके परिणाम आज स्पष्ट दिखाई देते हैं
  • कांग्रेस की राजनीति, भाषण शैली, गठबंधन, वैचारिक भ्रम और भारतीय सांस्कृतिक पहचान से दूरी इसकी पुष्टि करती है।

सेक्शन 2 — वैश्विक समाजवादी नेटवर्क की जड़ें

1. फैबियन सोसाइटी (लंदन)

  • 19वीं सदी के अंत में स्थापित।
  • “धीरे-धीरे समाजवाद” की नीति का समर्थन।
  • UK लेबर पार्टी के निर्माण में गहरा प्रभाव।
  • कई दशकों तक वैश्विक नीति विमर्श को प्रभावित किया।

2. सोशलिस्ट इंटरनेशनल (SI) का निर्माण

विभिन्न देशों की समाजवादी और सोशल-डेमोक्रेटिक पार्टियों का अंतरराष्ट्रीय मंच।

इसने जिन मुद्दों को बढ़ावा दिया:

  • समानता आधारित नीतियाँ
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग
  • कठोर राष्ट्रवाद में कमी
  • वैश्विक शासन संरचनाएँ

कोई षड्यंत्र नहीं, लेकिन एक वास्तविक वैश्विक वैचारिक नेटवर्क।

3. अंतरराष्ट्रीय प्रभाव

SI के साथ जुड़ी पार्टियाँ यूरोप, दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और एशिया में सक्रिय थीं। आलोचकों के अनुसार, इस तरह के वैश्विक ब्लॉक्स अक्सर:

  • राष्ट्रीय पहचान को कमजोर करते हैं
  • स्थानीय संस्कृति से कटाव बढ़ाते हैं
  • उच्च-वर्गीय नीति ढाँचों का प्रभाव बढ़ाते हैं

सेक्शन 3 — भारत और सोशलिस्ट इंटरनेशनल: प्रारंभिक दूरी

1. नेहरू का प्रभाव, लेकिन सावधानी

  • हालाँकि जवाहरलाल नेहरू फैबियन विचारधारा से प्रभावित थे, फिर भी:
  • उन्होंने कांग्रेस को SI से दूर रखा
  • पार्टी में राष्ट्रवादी, दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी धड़े मौजूद थे
  • भारत की सभ्यता-आधारित पहचान पर बाहरी प्रभाव का डर था

2. कांग्रेस ने दशकों तक SI की सदस्यता क्यों नहीं ली?

निम्न कारणों से कांग्रेस ने नेहरू, इंदिरा और राजीव काल में SI से दूरी बनाए रखी:

  • पार्टी में मजबूत राष्ट्रवादी नेतृत्व
  • भारतीय विशिष्टताओं के संरक्षण की चिंता
  • वैश्विक वैचारिक गठबंधन से आंतरिक मतभेद बढ़ने का डर

3. आखिरी राष्ट्रवादी स्तंभ: पी. वी. नरसिंहा राव

  • स्वतंत्र विदेश नीति
  • आर्थिक उदारीकरण की व्यावहारिक सोच
  • भारत-प्रथम दृष्टिकोण

उनकी मौजूदगी तक कांग्रेस की वैचारिक पहचान भारतीय भूमि से जुड़ी रही।

सेक्शन 4 — 14 मार्च 1998: निर्णायक वैचारिक मोड़

सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के साथ ही पार्टी का वैचारिक संतुलन बदलने लगा।

तत्काल प्रभाव

  • वंशवादी नेतृत्व का पुनः केंद्रीकरण
  • राष्ट्रवादी नेताओं का हाशिए पर जाना
  • विदेश-प्रेरित सलाहकारों और नेटवर्क्स का प्रभाव बढ़ना
  • “भारत-प्रथम” दृष्टिकोण से “ग्लोबल-प्रोग्रेसिव-प्रथम” दृष्टिकोण की ओर झुकाव

यह वह क्षण था जिसने बाहरी वैचारिक गठबंधनों में कांग्रेस की प्रविष्टि का मार्ग खोला। यह शायद उनकी विदेशी परवरिश और विचारधारा की देन थी।

सेक्शन 5 — 1999: कांग्रेस का सोशलिस्ट इंटरनेशनल (SI) में प्रवेश

ब्यूनस आयर्स (1999)में कांग्रेस ने औपचारिक रूप से सोशलिस्ट इंटरनेशनल की सदस्यता ली।

इस कदम की अहमियत

  • कांग्रेस वैश्विक समाजवादी नेटवर्क का हिस्सा बनी।
  • पार्टी की नीति-भाषा यूरोपीय लेफ्ट पार्टियों जैसी होने लगी।
  • भारतीय सांस्कृतिक वास्तविकताओं से दूरी बढ़ने लगी।

राजनीतिक प्रभाव

  • कांग्रेस का राष्ट्रवादी स्थान कमजोर हुआ।
  • RSS और BJP जैसी भारतीय-जड़ों वाली संस्थाओं को उभरने का अवसर मिला।
  • कांग्रेस की राजनीति में विदेशी वैचारिक प्रभाव बढ़ा।

सेक्शन 6 — 2014: प्रोग्रेसिव अलायंस (PA) की सदस्यता

  • 2014 में SI से विकसित होकर एक और बड़ा नेटवर्क बना—
    प्रोग्रेसिव अलायंस (PA), जिसमें 140+ ग्लोबल लेफ्ट पार्टियाँ शामिल थीं।
  • कांग्रेस इसमें भी शामिल हुई।
    और राहुल गांधी इसकी प्रेसिडियम समिति में भी शामिल हुए।

इसके निहितार्थ

  • कांग्रेस और गहराई से वैश्विक प्रगतिशील ढाँचों में जुड़ गई।
  • पार्टी की भाषा में वैश्विक लेफ्ट विमर्श की झलक बढ़ी।
  • भारतीय वोटर कांग्रेस को “विदेश-निर्देशित” पार्टी की तरह देखने लगे।

सेक्शन 7 — इस वैचारिक बदलाव ने कांग्रेस के व्यवहार को कैसे बदला

1. कथानक (Narrative) में परिवर्तन

  • पहचान-आधारित राजनीति का बढ़ना
  • हिंदू पहचान और सनातन दर्शन पर प्रश्नचिन्ह
  • RSS, BJP और हिंदुत्व के खिलाफ पश्चिमी-शैली के आरोप
  • “मेजॉरिटेरियनिज़्म”, “फासिज़्म” जैसे आयातित शब्दों का उपयोग

2. RSS, हिंदू और सनातन धर्म के प्रति शत्रुता

कांग्रेस लगातार:

  • RSS को बदनाम करती रही
  • हिंदू समाज को विभाजित करने वाले आरोप लगाए
  • सनातन धर्म के विरुद्ध विदेशी शब्दावलियों का प्रयोग किया
  • मोदी और BJP को बिना आधार “तानाशाह” बताती रही

3. फर्जी नैरेटिव और गलत आरोप

अपने पतन को ढंकने के लिए कांग्रेस ने:

  • झूठे आरोप
  • विदेशी मीडिया में इंडिया-विरोधी बयान
  • फर्जी घोटालों का प्रचार
  • भारत की संस्थाओं पर अविश्वास फैलाना

“ठगबंधन” जैसी मजबूरी की राजनीति को अपनी रणनीति बना ली।

4. वोटर की नज़र में कांग्रेस की गिरती विश्वसनीयता

  • असंगति
  • विदेशी प्रभाव
  • नेतृत्व का भ्रम
  • जमीनी जुड़ाव का अभाव

इन सबने कांग्रेस की विश्वसनीयता को गंभीर नुकसान पहुँचाया।

सेक्शन 8 — कांग्रेस के पतन के बीच राष्ट्रवादी शक्तियों का उदय

1. RSS का उदय

  • समाज सेवा
  • सांस्कृतिक पुनर्जागरण
  • संगठनात्मक अनुशासन

2. BJP का राष्ट्रीय नेतृत्व के रूप में उभार

  • मजबूत शासन
  • आर्थिक सुधार
  • सुरक्षा और कूटनीति

3. सनातन धर्म की वैश्विक प्रतिष्ठा

  • योग, आयुर्वेद
  • आध्यात्मिक दर्शन
  • वैश्विक शांति का संदेश

4. मोदी युग में भारत का उदय

  • वैश्विक मंच पर भारत की प्रतिष्ठा
  • सांस्कृतिक कूटनीति
  • सभ्यतागत आत्मविश्वास

भारत की मूल पहचान से जुड़े इन तत्वों ने राष्ट्रवाद को पुनर्जीवित किया और कांग्रेस की वैचारिक कमजोरी को उजागर किया।

सेक्शन 9 — 1998 वह साल था जब कांग्रेस भारत से दूर हो गई

  • 14 मार्च 1998 के बाद लिए गए वैचारिक निर्णयों ने कांग्रेस को:
  • भारत की सभ्यतागत जड़ों से दूर कर दिया
  • विदेशी वैचारिक ब्लॉक्स पर निर्भर बना दिया
  • राष्ट्रवादी वोटर से अलग कर दिया
  • संगठनात्मक पतन की राह पर डाल दिया

आज भारत की ऊर्जा, चेतना और दिशा

  • RSS, BJP और सनातन धर्म के साथ खड़ी है—
  • क्योंकि ये भारत की आत्मा से जन्मी शक्तियाँ हैं,
  • जबकि कांग्रेस ने 1998 के बाद अपनी जड़ों से दूरी बढ़ा ली।

अगर हमें भारत, सनातन धर्म, हमारी संस्कृति और हिन्दू समाज को सुरक्षित रखना है, तो कांग्रेस और उसकी विचारधारा पर चलने वाले ठगबंधन दलों को राजनीति से पूरी तरह बाहर करना ही होगा। तभी भारत सच मायनों में वैश्विक महाशक्ति बनेगा और विश्वगुरु के रूप में स्थापित हो सकेगा।

🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳

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