Skip to content Skip to sidebar Skip to footer
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट का संदेश — संस्थागत स्वतंत्रता और विपक्ष की बाधाएँ

 सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी – “हर कार्य न्यायपालिका नहीं करेगी”

  • मंगलवार को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए यह साफ किया कि SIR (Special Intensive Revision) यानी मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण का मामला पूरी तरह से केंद्रीय चुनाव आयोग (ECI) के अधिकार क्षेत्र में आता है।
  • जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह भी कहा कि अदालत चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में दखल नहीं देगी, क्योंकि यह उसकी संवैधानिक जिम्मेदारी और विशेषाधिकार है।
  • कोर्ट ने केंद्र सरकार और संबंधित पक्षों से यह भी अपेक्षा की कि वे उन लोगों की सूची साझा करें जो वास्तव में SIR प्रक्रिया से प्रभावित हैं, ताकि पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे।


👉 अदालत ने सख्त लहजे में कहा —

  • “हम हर काम अपने हाथ में क्यों लें? चुनाव आयोग का अपना तंत्र है, उसे काम करने दिया जाए!”

यह टिप्पणी केवल एक कानूनी दिशा नहीं, बल्कि एक संविधानिक सिद्धांत की पुनः पुष्टि है — कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से कार्य करने दिया जाए।

विपक्ष की नई राजनीति — अदालतों में “विकास रोकने” का षड्यंत्र

आज भारत में विपक्षी “ठगबंधन” दलों द्वारा एक नया अभियान चलाया जा रहा है —
हर नीति, सुधार या विकास योजना के खिलाफ व्यर्थ मुक़दमे दायर करके न्यायपालिका पर बोझ बढ़ाना और सरकारी कामकाज को बाधित करना।

  • सड़क, रेल, रक्षा या शिक्षा से जुड़े प्रोजेक्ट्स पर बार-बार कोर्ट में याचिकाएँ दाखिल की जाती हैं।
  • सामाजिक सुधार या कानूनों (जैसे CAA, UCC, EVM, GST सुधार आदि) पर राजनीतिक मुक़दमे लाए जाते हैं, जिनका उद्देश्य केवल सरकार की गति रोकना होता है।
  • परिणामस्वरूप न्यायपालिका को वास्तविक न्यायिक मामलों के बजाय राजनीतिक एजेंडे पर आधारित याचिकाओं से जूझना पड़ता है।

यह एक सुनियोजित रणनीति है —
👉 “विकास रोको, सुधार अटकाओ, और न्यायपालिका को राजनीतिक अखाड़ा बनाओ।”

न्यायपालिका पर बढ़ता बोझ — असली मामलों में देरी

  • भारत में पहले से ही 4.5 करोड़ से अधिक मुक़दमे लंबित हैं।
  • ऐसे में राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित मामलों का अंधाधुंध प्रवाह न्यायिक प्रणाली को और कमजोर करता है।
  • अनावश्यक याचिकाओं से अदालतों का समय बर्बाद होता है।
  • सरकारी नीतियाँ रुक जाती हैं, परियोजनाएँ अधर में लटकती हैं।
  • जनता को मिलने वाले लाभों में देरी होती है।
  • विपक्षी दलों को यह पता है कि अदालतों की प्रक्रिया लंबी होती है —
    इसलिए वे “कानूनी बाधाओं” का इस्तेमाल राजनीतिक हथियार के रूप में करते हैं।

यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है, क्योंकि इससे जनता का ध्यान वास्तविक मुद्दों से हट जाता है और विकास ठहर जाता है।

न्यायपालिका की नई चेतावनी — “पहले उद्देश्य का आकलन करें”

  • सुप्रीम कोर्ट का यह रुख बहुत आवश्यक और समयोचित है।
  • अब समय आ गया है कि हर याचिका या मुक़दमे से पहले यह देखा जाए कि उसका उद्देश्य वास्तविक है या राजनीतिक
  • अगर कोई केस सिर्फ सरकार की नीति को रोकने के लिए है, तो उसे तत्काल खारिज किया जाए।
  • यदि याचिका तथ्यों पर आधारित नहीं है, तो दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए।
  • न्यायपालिका को अपनी प्राथमिकता ऐसे मामलों को देनी चाहिए जो सीधे नागरिक हित या संवैधानिक मूल्यों से जुड़े हों।

इससे न्यायिक प्रक्रिया की साख और कार्यकुशलता दोनों बढ़ेगी।

संवैधानिक संस्थाओं की स्वतंत्रता — लोकतंत्र की रीढ़

भारत का लोकतंत्र तीन स्तंभों पर टिका है —


> विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका।

> तीनों का संतुलन ही राष्ट्र की मजबूती तय करता है।

लेकिन जब राजनीतिक दल अपने हितों के लिए न्यायपालिका या अन्य संस्थाओं (जैसे चुनाव आयोग, CBI, ED, या नीति आयोग) पर सवाल उठाते हैं, तो यह संविधान की आत्मा पर प्रहार होता है।

  • चुनाव आयोग का काम चुनाव कराना है — उसे स्वतंत्र रूप से करने दिया जाना चाहिए।
  • न्यायपालिका का काम न्याय करना है — उसे राजनीतिक दबाव से मुक्त रहना चाहिए।
  • सरकार का काम नीतियाँ बनाना है — उसे बेवजह की रुकावटों से बचाया जाना चाहिए।

विपक्ष का असली डर — विकास और पारदर्शिता

  • आज मोदी सरकार की पारदर्शिता और भ्रष्टाचार पर सख्त रुख ने विपक्ष के भ्रष्ट परिवारों और घोटालेबाजों को परेशान कर दिया है।
  • GST सुधार, डिजिटल पेमेंट, जन-धन खाते, DBT और ट्रांसपेरेंसी जैसे कदमों ने भ्रष्टाचार की जड़ें काट दी हैं।

👉 इसलिए ये दल अब अदालतों को ही “राजनीतिक मोर्चा” बना रहे हैं —

  • ताकि लोकतंत्र की संस्थाओं पर भ्रम फैलाया जाए और विकास की गति रोकी जाए।

लेकिन सुप्रीम कोर्ट का यह रुख बता रहा है कि अब “संविधान का हथियार” राजनीतिक षड्यंत्रों का नहीं बनेगा।

आगे का रास्ता — जवाबदेही और विवेक

  • देश को अब ऐसे तंत्र की ज़रूरत है जिससे यह तय किया जा सके कि कौन-सा मामला सही है और कौन राजनीतिक है।
  • प्रीस्क्रीनिंग मैकेनिज्म: किसी भी याचिका को अदालत में स्वीकार करने से पहले उसकी वैधता और उद्देश्य की जांच हो।
  • दुरुपयोग पर दंड: बार-बार निराधार याचिकाएँ दायर करने वालों पर सख्त जुर्माना लगाया जाए।
  • विकास और जनहित मामलों को प्राथमिकता: सरकार के कल्याणकारी प्रोजेक्ट्स को रोकने वाली याचिकाओं को विशेष सतर्कता से देखा जाए।

जब संस्थाएँ स्वतंत्र होंगी, तभी भारत शक्तिशाली बनेगा

  • सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी केवल एक कानूनी निर्णय नहीं है — यह एक संदेश है कि लोकतंत्र में संस्थाओं की स्वतंत्रता सर्वोपरि है।
  • जब तक चुनाव आयोग, न्यायपालिका और कार्यपालिका अपने-अपने अधिकारों के भीतर स्वतंत्र रूप से काम कर सकेंगी, तब तक भारत सही मायने में “विश्वगुरु” बनने की दिशा में बढ़ता रहेगा।

आज ज़रूरत है कि:

  • हर संस्था का सम्मान किया जाए,
  • विकास कार्यों को रोका न जाए,
  • और राजनीतिक स्वार्थों के लिए अदालतों का दुरुपयोग बंद हो।

पुराने ब्लॉग्स के लिए कृपया हमारी वेबसाईट www.saveindia108.in पर जाएं।

👉Join Our Channels👈

Share Post

Leave a comment

from the blog

Latest Posts and Articles

We have undertaken a focused initiative to raise awareness among Hindus regarding the challenges currently confronting us as a community, our Hindu religion, and our Hindu nation, and to deeply understand the potential consequences of these issues. Through this awareness, Hindus will come to realize the underlying causes of these problems, identify the factors and entities contributing to them, and explore the solutions available. Equally essential, they will learn the critical role they can play in actively addressing these challenges

SaveIndia © 2025. All Rights Reserved.