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स्वतंत्र संग्राम के शहीदों के साथ अन्याय

स्वतंत्र संग्राम के शहीदों के साथ अन्याय

इतिहास में कई ऐसे कड़वे सच छिपे हैं, जो हमारे सिखाए गए विचारों और विश्वासों को चुनौती देते हैं। यह एक ऐसा ही सत्य है, जो हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि कुछ राष्ट्रीय नेताओं को हम किस हद तक सम्मान देते हैं।

घटना: भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव से किया गया विश्वासघात

फरवरी 1931 में, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय ने भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी से बचाने के लिए एक बड़ा कदम उठाया।

मालवीय जी ने लॉर्ड इरविन के सामने दया याचिका दायर की और उनकी सजा को कम करने की अपील की।

लेकिन लॉर्ड इरविन ने शर्त रखी कि यह याचिका कांग्रेस के प्रमुख नेताओं, जैसे गांधी, नेहरू और अन्य 20 सदस्यों के समर्थन के बिना स्वीकार नहीं की जाएगी।

जब मालवीय जी ने गांधी और नेहरू से समर्थन मांगा:

गांधी और नेहरू ने चुप्पी साध ली और याचिका का समर्थन करने से इनकार कर दिया।

उनके इनकार के चलते अन्य कांग्रेस नेताओं ने भी याचिका पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया।

लॉर्ड इरविन ने बाद में क्या खुलासा किया

रिटायरमेंट के बाद, लॉर्ड इरविन ने लंदन में खुलासा किया:

अगर गांधी या नेहरू ने दया याचिका पर हस्ताक्षर किए होते, तो ब्रिटिश सरकार निश्चित रूप से भगत सिंह और उनके साथियों की फांसी रद्द कर देती।

चौंकाने वाली बात यह थी कि गांधी और नेहरू भगत सिंह को फांसी दिए जाने की जल्दबाजी में थे।

भगत सिंह की बढ़ती लोकप्रियता गांधी और नेहरू को शायद असुरक्षित महसूस करा रही थी।

गांधी का चौंकाने वाला पत्र

लाहौर जेल के जेलर ने गांधी को लिखा कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की फांसी देश में अशांति फैला सकती है। गांधी ने जो जवाब दिया वह झकझोर देने वाला था:

“आप अपना काम करें, कुछ नहीं होगा।”

राजनीतिक स्वार्थ और चुप्पी का मतलब

भगत सिंह युवाओं के लिए प्रेरणा बन रहे थे और उनके विचार जनता में क्रांति का बीज बो रहे थे।

उनकी लोकप्रियता गांधी की अहिंसा नीति और नेतृत्व को चुनौती दे रही थी।

ब्रिटिश सरकार को भी भगत सिंह की फांसी की जल्दबाजी नहीं थी। वे कांग्रेस से कड़ा विरोध उम्मीद कर रहे थे, लेकिन गांधी और नेहरू की चुप्पी ने उन्हें खुली छूट दे दी।

देशभक्ति का विश्वासघात

इतना सब जानने के बाद भी अगर कोई गांधी, नेहरू या कांग्रेस को देशभक्त मानता है, तो यह उसकी समझ और ईमानदारी पर सवाल खड़ा करता है।

यह सत्य, जो वर्षों से इतिहास की किताबों में दबा रहा, हमें यह सिखाता है:

गांधी और नेहरू के राजनीतिक स्वार्थ कितने गहरे थे।

वे भगत सिंह जैसे क्रांतिकारियों से क्यों भयभीत थे।

कैसे उन्होंने अपने राजनीतिक फायदे के लिए देश के सच्चे नायकों का बलिदान किया।

युवाओं के लिए सबक

सत्य को समझें: इतिहास को आंख मूंदकर न मानें। गहराई से खोजें और छिपे हुए सच को उजागर करें।

सच्चे नायकों को पहचानें: भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने बिना किसी स्वार्थ के देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दी।

सत्य का प्रचार करें: यह हमारी जिम्मेदारी है कि इन क्रांतिकारियों के बलिदान की सच्चाई लोगों तक पहुंचाएं।

पारदर्शिता की मांग करें: आरटीआई (सूचना का अधिकार) का उपयोग करके छिपे हुए ऐतिहासिक तथ्यों को उजागर करें।

एक आह्वान

यह समय है कि हम सच्चे देशभक्तों का सम्मान करें और उन नेताओं के झूठे महिमामंडन पर सवाल उठाएं, जिन्होंने देश के असली नायकों के साथ विश्वासघात किया।
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के बलिदान को सच्चे दिल से सलाम करें और उनकी सच्चाई जानकर अपने जीवन में प्रेरणा लें।

🇮🇳 वंदे मातरम! जय हिंद!

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