ट्रंप और राहुल गांधी—दो अलग-अलग देशों के नेता, लेकिन दोनों की राजनीति में एक समानता है: सत्ता की चाह और राष्ट्रहित की बातें। आइए जानें कैसे इन दोनों के विचार, नेतृत्व शैली और प्राथमिकताएँ एक-दूसरे से भिन्न हैं।
- आज पूरी दुनिया में दो घटनाएँ एक साथ चर्चा का विषय बनी हुई हैं —
एक ओर अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, जो अपनी नोबेल पुरस्कार की महत्वाकांक्षा के लिए अमेरिका की नीतियों को दांव पर लगा रहे हैं, - और दूसरी ओर भारत में राहुल गांधी, जो सत्ता की लालसा में भारत की साख को कमजोर करने का कोई मौका नहीं छोड़ते।
- दोनों की कार्यशैली में भले ही भौगोलिक दूरी हो, लेकिन मानसिकता में समानता है
व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा के लिए राष्ट्रहित की अनदेखी।
🔹 1. ट्रंप की महत्वाकांक्षा और अमेरिकी नीतियों पर संकट
- डोनाल्ड ट्रंप अपने दूसरे कार्यकाल की महत्वाकांक्षा में इतने डूब चुके हैं कि अब उनकी नीतियाँ अमेरिकी जनता के भले से अधिक, अपनी राजनीतिक छवि सुधारने के लिए बनाई जा रही हैं।
- हाल ही में उन्होंने भारत पर 50% टैरिफ लगाने की धमकी दी, ताकि वे अमेरिकी मतदाताओं के सामने “अमेरिका फर्स्ट” नेता के रूप में दिखें।
- लेकिन यह निर्णय केवल अमेरिका–भारत संबंधों को नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक स्थिरता को भी प्रभावित करता है।
भारत अब अमेरिका का सिर्फ सहयोगी नहीं, बल्कि एक महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है।
- ट्रंप का यह रवैया दर्शाता है कि वे भारत की बढ़ती ताकत से असुरक्षित हैं।
- उनकी “नोबेल शांति पुरस्कार” की लालसा ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता पाने के लिए भारत जैसे देशों को निशाना बनाने पर मजबूर कर दिया है।
- लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि भारत अब कोई “कमज़ोर और दबाव में झुकने वाला देश” नहीं रहा
यह मोदी का भारत है, जो अपने हितों के लिए किसी भी ताकत से भिड़ने में नहीं हिचकता।
🔹 2. अगर भारतीय मूल के लोग अमेरिका छोड़ दें…
ट्रंप जैसे नेता भारत की शक्ति को कम आंकने की भूल कर रहे हैं।
वे शायद भूल गए हैं कि अमेरिका की सफलता की असली रीढ़ भारतीय प्रवासी समुदाय है।
- अमेरिका की आईटी इंडस्ट्री में लगभग 45% प्रोफेशनल्स भारतीय मूल के हैं।
- गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एडोबी, आईबीएम, और पेप्सी जैसी कई शीर्ष कंपनियाँ भारतीयों द्वारा संचालित हैं।
- अमेरिकी विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में हजारों भारतीय वैज्ञानिक और शिक्षाविद् काम कर रहे हैं।
- अगर भारतवंशी एक दिन अमेरिका से अपना कदम पीछे खींच लें, तो अमेरिका की टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य, शोध और वित्तीय व्यवस्था चरमरा जाएगी।
- इसलिए ट्रंप को यह समझना होगा कि यह 21वीं सदी का भारत है —
👉 जो दबाव में नहीं झुकता, बल्कि विश्व को दिशा देने की क्षमता रखता है।
भारत अब अमेरिका को चुनौती नहीं, बल्कि विकल्प और सहयोग का नया केंद्र बन चुका है।
🔹 3. राहुल गांधी की राजनीति: विरोध के लिए विरोध
जहाँ ट्रंप अपनी गलत नीतियों से अमेरिका की साख खो रहे हैं, वहीं राहुल गांधी अपनी विरोध की राजनीति से भारत की साख को चोट पहुँचा रहे हैं।
हाल ही में उन्होंने ट्रंप के उस बयान से सहमति जताई जिसमें ट्रंप ने कहा था कि “भारत की अर्थव्यवस्था डेड हो चुकी है।”- यह बयान राहुल गांधी के लिए आत्मघाती साबित हुआ।
- कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं शशि थरूर और राजीव शुक्ला ने राहुल गांधी की राय का खुलेआम विरोध किया।
- थरूर ने कहा — “भारत की अर्थव्यवस्था सबसे तेज़ी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। ट्रंप का बयान गलत है, और राहुल गांधी को इसका समर्थन नहीं करना चाहिए था।”
- शुक्ला ने कहा — “ऐसे बयानों से देश की वैश्विक छवि को नुकसान होता है। विपक्ष को भी राष्ट्रहित को प्राथमिकता देनी चाहिए।”
- यह स्पष्ट हो गया कि राहुल गांधी का उद्देश्य देश का भला नहीं, बल्कि मोदी सरकार का विरोध है
- चाहे इसके लिए उन्हें विदेशी नेताओं की झूठी बातों का समर्थन ही क्यों न करना पड़े।
🔹 4. सत्ता की भूख बनाम राष्ट्रहित
- दोनों नेताओं — ट्रंप और राहुल गांधी — की सोच में समानता है।
दोनों राष्ट्रहित की कीमत पर व्यक्तिगत स्वार्थ को आगे रखते हैं। - ट्रंप अपनी “नोबेल डिप्लोमेसी” में फंसे हुए हैं।
- राहुल गांधी अपनी “वोट बैंक राजनीति” और सत्ता पाने की लालसा में उलझे हुए हैं।
- दोनों ही अपने-अपने देशों की जनता से दूर होते जा रहे हैं।
जहाँ मोदी और बाइडन जैसे नेता वास्तविक नीति और सहयोग की बात करते हैं, वहीं ट्रंप और राहुल गांधी प्रचार और भ्रम पर आधारित राजनीति करते हैं।
🔹 5. मोदी का भारत: आत्मनिर्भर, अडिग और आत्मविश्वासी
आज का भारत ट्रंप और राहुल दोनों के लिए एक जागता हुआ सबक है।
कभी वही भारत, जिसे पश्चिम “गरीब और पिछड़ा” कहता था, आज विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है।
- भारत अब अपने दम पर मेड इन इंडिया डिफेंस सिस्टम, चंद्रयान-3, और डिजिटल पेमेंट क्रांति जैसे काम कर रहा है।
- मोदी सरकार ने वैश्विक व्यापार में भारत के हितों को दृढ़ता से रखा है, और हाल ही में अमेरिका तथा यूरोप के खिलाफ टैरिफ युद्धों में भी भारत ने अपने हितों से कोई समझौता नहीं किया।
- भारत अब किसी भी पश्चिमी देश के आगे झुकने वाला नहीं, बल्कि शर्तें तय करने वाला देश बन गया है।
यह वही भारत है जिसने कोरोना महामारी के दौरान 100 से अधिक देशों को वैक्सीन भेजकर “वसुधैव कुटुम्बकम्” की भावना को सिद्ध किया।
6. यह नया भारत है, जो सम्मान के साथ साझेदारी करता है
- ट्रंप और राहुल गांधी को यह समझना होगा कि अब भारत न तो किसी का उपनिवेश है, न किसी की कठपुतली।
- यह स्वाभिमानी भारत है — जो अपनी नीतियाँ खुद तय करता है, और दूसरों की गलतियों को सुधारने की क्षमता रखता है।
👉 भारत अब न दबाव में झुकता है,
👉 न झूठे प्रचार से डरता है,
👉 और न ही किसी के अधीन होकर निर्णय लेता है।
- मोदी का भारत राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखता है।
- ट्रंप की नीति और राहुल की राजनीति — दोनों अब पुराने जमाने की सोच का हिस्सा हैं।
🔹 मुख्य संदेश
- यह नया भारत है — जो दोस्ती चाहता है, लेकिन सम्मान के साथ।
- जो सहयोग करता है, लेकिन अपनी शर्तों पर।
- और जो अब किसी विदेशी या देशी नेता के स्वार्थ का मोहरा नहीं बनेगा।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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