अमेरिका में ट्रंप की जीत: उन ताकतों के लिए झटका जो भारत में मोदी सरकार को उखाड़ना चाहती थीं
अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप की जीत किसी करिश्मे से कम नहीं है। भारत की तरह अमेरिका में भी ट्रंप के खिलाफ ऐसा नैरेटिव तैयार किया गया था कि वह संविधान को खत्म कर देगा, और अगर फिर से चुने गए तो वहां दोबारा चुनाव नहीं होंगे। प्रचारित किया गया कि ट्रंप एक तानाशाह बन जाएंगे। यह भी प्रचारित किया गया कि ट्रंप की हार निश्चित है और कमला हैरिस के साथ डेमोक्रेट्स की जीत तय है। परंतु, नतीजे चौंकाने वाले आए, और ट्रंप ने लगभग सभी स्विंग स्टेट्स में जीत हासिल कर ली, जो इस नैरेटिव को ध्वस्त कर गया।
बाइडन प्रशासन ने बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार को हटाने के मंसूबे बनाए थे और इसी के साथ भारत में भी विपक्षी दल, विशेषकर राहुल गांधी गिरोह, इस प्रचार में लगा था कि आने वाले छह महीनों में भारत में भी बांग्लादेश की तर्ज पर माहौल बनाया जाएगा, जिससे मोदी सरकार को उखाड़ा जा सके। कहा जा रहा था कि जैसे बांग्लादेश में शेख हसीना के खिलाफ जनमानस बना, उसी प्रकार भारत में भी जनता मोदी के खिलाफ खड़ी होगी। इस साजिश के तहत राहुल गांधी ने अमेरिका के कुछ बड़े अधिकारियों के साथ बैठकें की थीं। इन गुप्त बैठकों में डोनाल्ड लू, जो अमेरिका के Bureau Of South And Central Asian Affairs के Assistant Secretary हैं और सरकारें गिराने में माहिर माने जाते हैं, ने राहुल गांधी को मोदी सरकार को हटाने का मार्गदर्शन दिया।
ट्रंप की जीत ने इस नैरेटिव को ध्वस्त कर दिया है, और जिन लोगों की तमन्ना थी कि भारत में मोदी को हटाया जा सके, उनके मंसूबों पर पानी फिर गया है। यह नतीजा राहुल गांधी और उसके पाकिस्तानी साथियों के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि उनका एक प्रमुख सहारा टूट गया है। इससे संभावना है कि राहुल गांधी की गुप्त अमेरिकी अधिकारियों के साथ बैठकों की जानकारी भी उजागर हो सकती है, जो उसके लिए संकट का कारण बनेगी।
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप को दिल से बधाई दी है, जिससे यह स्पष्ट है कि इस जीत का असर भारत और विश्व के बाकी देशों पर भी पड़ेगा। खास बात यह है कि ट्रंप ने यूक्रेन को मदद रोकने की बात कही है, जिससे ज़ेलेंस्की के लिए मुश्किलें खड़ी होंगी। साथ ही, भारत को भी उम्मीद है कि ट्रंप जैसे नेता भारत के खिलाफ साजिश करने वाले आतंकवादी तत्वों, जैसे कि गुरपतवंत सिंह पन्नू पर भी लगाम लगाएंगे। यह संदेश कनाडा को भी जाएगा कि भारत के खिलाफ ऐसे तत्वों का समर्थन न करें।
एक प्रमुख भारतीय पत्रकार, नरेंद्र जोशी, ने कहा कि चाहे कमला हैरिस आएं या ट्रंप, भारत के लिए दोनों स्थिति में फायदे हैं। हालांकि, यह पूरी तरह से सही नहीं है, क्योंकि बाइडन प्रशासन के तहत भारत के साथ कुछ मुद्दों पर दबाव बनाया गया है। बाइडन प्रशासन ने चुनाव से पहले भारत की 19 रक्षा कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया था, भारत पर रूस से तेल खरीदने का दबाव डाला था, और भारत के अंदरूनी मामलों में भी हस्तक्षेप किया। ऐसे में ट्रंप की जीत भारत के लिए राहत की तरह है, जो अमेरिका के साथ सही दिशा में संबंधों को मजबूत करेगी।
आशा की जा रही है कि मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू की तिकड़ी (MTN) मिलकर एक नया वर्ल्ड ऑर्डर स्थापित करेगी, जो भारत और वैश्विक राजनीति के लिए सकारात्मक बदलाव ला सकेगी।
उदाहरण और केस स्टडीज
बांग्लादेश में राजनीतिक हस्तक्षेप:
उदाहरण: हाल के वर्षों में बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार को अस्थिर करने के लिए विदेशी प्रभावों की कोशिशें हुईं। अमेरिकी कूटनीतिक चैनलों ने अप्रत्यक्ष रूप से शासन परिवर्तन का समर्थन किया ताकि पश्चिम-समर्थित नेतृत्व लाया जा सके। यह उदाहरण भारत की राजनीतिक स्थिरता पर विदेशी प्रभाव के संभावित खतरों की ओर संकेत करता है।
केस स्टडी: शेख हसीना के खिलाफ विदेशी हस्तक्षेप का उदाहरण दिखाता है कि कैसे मजबूत नेतृत्व, जैसे कि मोदी और हसीना का, बाहरी हस्तक्षेप के दबावों से बचकर अपने राष्ट्र की संप्रभुता को बनाए रखने का प्रयास करता है।
कनाडा में खालिस्तान आंदोलन का प्रभाव:
उदाहरण: कनाडा में एक सक्रिय खालिस्तानी समर्थक प्रवासी है जो भारत में अस्थिरता फैलाने के प्रयासों का समर्थन करता है। यह समूह कनाडा में राजनीतिक रूप से प्रभावशाली है और अक्सर भारतीय संप्रभुता के खिलाफ बयानबाजी करता है।
केस स्टडी: यह स्थिति दर्शाती है कि कैसे कुछ विदेशी तत्व भारत के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश करते हैं, जिससे खालिस्तानी आंदोलन को बल मिलता है और देश में विभाजनकारी ताकतें बढ़ती हैं।
जॉर्ज सोरोस और विदेशी एनजीओ का प्रभाव:
उदाहरण: कई विदेशी एनजीओ और आर्थिक प्रभावशाली व्यक्तित्व, जैसे जॉर्ज सोरोस, भारत में सरकार विरोधी आंदोलनों का समर्थन करते हैं और अस्थिरता फैलाने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं।
केस स्टडी: विदेशी फंडिंग वाले एनजीओ के माध्यम से भारत के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप और सरकार विरोधी आंदोलनों को समर्थन देने का प्रयास हुआ है, जिससे देश की सुरक्षा और स्थिरता को खतरा पहुंचा है।
आगे के कदम
राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना:
राष्ट्रहित के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए शिक्षण, मीडिया और सामाजिक संवाद के माध्यम से भारतीय संस्कृति, संप्रभुता और एकता पर बल दिया जाए।
सभी वर्गों को अपने देश की अखंडता और सुरक्षा के प्रति जिम्मेदारी का एहसास कराते हुए विदेशी हस्तक्षेपों के बारे में जागरूकता पैदा की जाए।
कूटनीतिक दबाव का विरोध:
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए मजबूत संदेश देना चाहिए, ताकि विदेशी ताकतें भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप न कर सकें।
अन्य देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा देते हुए उनकी कूटनीतिक गतिविधियों की निगरानी की जाए।
सूचना सुरक्षा और डेटा संरक्षण को मजबूत करना:
डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म और विदेशी सोशल मीडिया के माध्यम से गलत जानकारी फैलाने वालों पर कड़ी निगरानी रखी जाए।
साइबर सुरक्षा के मजबूत उपाय लागू किए जाएं ताकि संवेदनशील डेटा का विदेशी ताकतों द्वारा दुरुपयोग न हो सके।
विदेशी वित्त पोषित एनजीओ पर निगरानी:
उन एनजीओ की जांच और निगरानी की जाए जो विदेशी फंडिंग के साथ भारतीय राजनीति और समाज में हस्तक्षेप करने का प्रयास करते हैं।
सभी एनजीओ के फंडिंग स्रोत और उनके लक्ष्यों की पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए।
वैश्विक मंच पर सहयोग:
समान विचारधारा वाले देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बढ़ाई जाए, ताकि बाहरी ताकतों के प्रभाव को संतुलित किया जा सके और भारत की संप्रभुता की रक्षा हो सके।
इन कदमों को अपनाकर भारत न केवल अपनी आंतरिक स्थिरता को सुरक्षित कर सकता है, बल्कि एक सशक्त और आत्मनिर्भर राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान को मजबूत भी कर सकता है।
