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UAE

UAE में हिंदू मंदिर में रोज़ा खोलना

हाल ही में, अबू धाबी और दुबई के कई अरब मंत्रियों और शेखों ने हिंदू मंदिर में आकर प्रसाद के साथ अपना रोज़ा खोला। यह घटना असाधारण मानी जा रही है, क्योंकि पारंपरिक इस्लामी मान्यताओं के अनुसार, मूर्तिपूजा (बुतपरस्ती) इस्लाम में हराम मानी जाती है। इसके बावजूद, प्रभावशाली मुस्लिम नेता सार्वजनिक रूप से हिंदू मंदिर में रमज़ान के रोज़े खोल रहे हैं। यह न केवल धार्मिक सहिष्णुता को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि अरब देशों के मुसलमानों और दक्षिण एशियाई मुसलमानों की मानसिकता में एक बड़ा अंतर है।

 अरब और दक्षिण एशियाई मुसलमानों की मानसिकता में अंतर

1. अरब देशों के मुसलमान अधिक व्यावहारिक हैं

  • UAE, सऊदी अरब, कतर, बहरीन और ओमान जैसे देशों में इस्लाम को एक आध्यात्मिक और सामाजिक धर्म के रूप में देखा जाता है, लेकिन धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा नहीं दिया जाता।
  • इन देशों के शासकों और व्यापारियों को यह एहसास हो गया है कि आर्थिक विकास और वैश्विक प्रभाव बनाए रखने के लिए धार्मिक सहिष्णुता आवश्यक है।
  • इसलिए, UAE और सऊदी अरब जैसे देशों में हिंदू मंदिर, चर्च और अन्य धार्मिक स्थल बनाए जा रहे हैं।

 

2. दक्षिण एशियाई मुसलमानों में बढ़ती कट्टरता

  • भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के कई मुसलमान इस्लामी आक्रमणों के दौरान जबरन परिवर्तित लोगों के वंशज हैं, जिनकी मानसिकता को मदरसों और इस्लामी कट्टरपंथी संगठनों द्वारा नियंत्रित किया जाता है।
  • इन देशों में कट्टरपंथी गुटों को विदेशी ताकतों से फंडिंग मिलती है, जो जिहाद और इस्लामी विस्तारवाद को बढ़ावा देती हैं।
  • मुस्लिम बहुल इलाकों में जनसंख्या वृद्धि को एक रणनीति के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे वे धीरे-धीरे राजनीतिक और सामाजिक रूप से प्रभावशाली हो सकें।

 

क्या असली खतरा अरब देशों से है या दक्षिण एशिया के कट्टरपंथियों से?

1. अरब देश जिहाद और कट्टरता से दूरी बना रहे हैं

  • UAE और सऊदी अरब ने हाल के वर्षों में इस्लामी कट्टरपंथ पर सख्ती से नियंत्रण किया है।
  • सऊदी अरब ने वहाबी इस्लाम को सीमित कर दिया है, क्योंकि उसे एहसास हो गया है कि कट्टरता उसके आर्थिक विकास के लिए खतरा है।
  • मोहम्मद बिन सलमान ने धार्मिक पुलिस की शक्ति को भी कम कर दिया, जिससे महिलाओं को अधिक अधिकार मिले और समाज अधिक खुला बना।

 

2. दक्षिण एशिया में कट्टरता का बढ़ता प्रभाव

  • पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत के कुछ हिस्सों में कट्टरपंथी संगठनों को मजबूत किया जा रहा है।
  • विदेशी इस्लामी संगठनों द्वारा फंडिंग प्राप्त कर ये गुट इस्लामी शासन स्थापित करने के लिए जनता को तैयार कर रहे हैं।
  • ज़कात फाउंडेशन जैसे संस्थान IAS/IPS के लिए मुस्लिम युवाओं को प्रशिक्षित कर रहे हैं, जिससे वे प्रशासनिक शक्ति में प्रभावी रूप से प्रवेश कर सकें।
  • सेवा क्षेत्र और छोटे व्यवसायों में मुस्लिम समुदाय तेजी से आगे बढ़ रहा है, जबकि हिंदू समाज इसमें पीछे रह रहा है।

 भारत के लिए यह घटना क्यों महत्वपूर्ण है?

भारत में तथाकथित ‘धर्मनिरपेक्ष’ (सेक्युलर) सरकारों ने दशकों तक अल्पसंख्यकों के नाम पर कट्टरपंथियों को प्रश्रय दिया।

  • बहुसंख्यक हिंदू समाज की समस्याओं को नजरअंदाज किया गया।
  • जब मोदी सरकार ने इन असमानताओं को सुधारने की कोशिश की, तो इसे “लोकतंत्र पर हमला” कहकर प्रचारित किया गया।
  • विपक्षी दल और वामपंथी मीडिया यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो रहा है, जबकि सच्चाई यह है कि अब पहली बार हिंदुओं को उनके अधिकार मिल रहे हैं।
  • अरब देशों के मुसलमान जब स्वयं कट्टरता से दूर जा रहे हैं, तब भी भारत में कई कट्टरपंथी मुस्लिम गुट जिहाद और इस्लामी शासन की वकालत कर रहे हैं।

क्या भारत को भी सऊदी और UAE की तरह कट्टरपंथ के खिलाफ सख्त रुख नहीं अपनाना चाहिए?

 हमें सीखने की जरूरत है

अगर अरब देशों के अमीर और प्रभावशाली मुसलमान आज हिंदू मंदिर में आकर रमज़ान का रोज़ा खोल सकते हैं, तो यह दिखाता है कि वे कट्टरता को छोड़ रहे हैं। लेकिन दक्षिण एशिया में कई मुस्लिम कट्टरता के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहे हैं, और भारत को इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए।

  • भारत को कट्टरपंथी मदरसों और संगठनों पर सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए।
  • हिंदू समाज को जागरूक होकर व्यापार और प्रशासन में अपनी भागीदारी बढ़ानी चाहिए।
  • सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धार्मिक तुष्टिकरण की राजनीति फिर से न दोहराई जाए।

UAE के हिंदू मंदिर में रमज़ान का रोज़ा खोलने की घटना सिर्फ धार्मिक सहिष्णुता का उदाहरण नहीं है, बल्कि यह एक चेतावनी भी है कि भारत को कट्टरपंथियों से सावधान रहने और अपनी नीति मजबूत करने की जरूरत है।

हमें क्या करना चाहिए?

  1. राष्ट्रीय चेतना – हिंदू समाज को जागरूक करना होगा कि धार्मिक तुष्टिकरण की राजनीति उनके अस्तित्व के लिए खतरा बन सकती है।
  2. आर्थिक सशक्तिकरण – हिंदुओं को व्यापार और प्रशासन में अपनी भागीदारी बढ़ानी चाहिए।
  3. नीतिगत सुधार – सरकार को कट्टरपंथी मदरसों और संगठनों पर सख्ती से कार्रवाई करनी चाहिए।
  4. सशक्त हिंदू नेतृत्व – हिंदुओं को राजनीतिक और सामाजिक नेतृत्व में अपनी भागीदारी बढ़ानी चाहिए।
  5. मीडिया और शिक्षा में भागीदारी – हिंदू समाज को अपनी विचारधारा को प्रभावी रूप से रखने के लिए मीडिया और शिक्षा में अधिक सक्रिय होना चाहिए।

🇳🇪 जय भारत, वन्देमातरम🇳🇪

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