क्या सच के उजागर होने से डर लगने लगा है इस्लामी कट्टरपंथियों को?
जब दर्जी कन्हैयालाल का गला कैमरे पर काटा गया, तब मौलाना अरशद मदनी और जमीयत उलेमा-ए-हिंद कहाँ थे?
कौन से भाईचारे में यह बर्बरता की गई थी?
क्या यह घटना भारतीय लोकतंत्र, कानून और हिंदू समाज के मुंह पर तमाचा नहीं थी?
अब जब “उदयपुर फाइल्स” उस अमानवीय नरसंहार को दस्तावेजी रूप में सामने ला रही है — तो जमीयत की बेचैनी क्यों बढ़ गई है?
🔥 “फिल्म नफरत फैलाती है…” — या फिर आईना दिखाती है?
जमीयत की याचिका में कहा गया कि:
- “फिल्म समाज में विभाजन और सांप्रदायिक तनाव फैलाएगी… यह मुस्लिम विरोधी है… और मुसलमानों के सम्मान से जीने के अधिकार का उल्लंघन है।”
तो सवाल ये है:
- जब कन्हैयालाल को सरेआम काटा गया, तो क्या वह घटना भाईचारे को मजबूत कर रही थी?
- जब “सर तन से जुदा” के नारे खुलेआम लगाए गए — क्या वह सहिष्णुता का प्रदर्शन था?
- जब हिंदू त्योहारों, मंदिरों, और शोभायात्राओं पर हमला होता है — तो मौलाना मदनी जैसे लोग मौन क्यों हो जाते हैं?
📽️ “उदयपुर फाइल्स” — एक फिल्म नहीं, सबक है
- यह फिल्म किसी कल्पना पर नहीं, घटना पर आधारित है — कैमरे में रिकॉर्ड की गई बर्बरता पर।
- यह फिल्म न तो किसी धर्म के खिलाफ है और न ही समाज को तोड़ने वाली, बल्कि यह कट्टरपंथ के खिलाफ जनता को जागरूक करने वाली फिल्म है।
- जो लोग The Kashmir Files से घबराए थे, वही अब Udaipur Files से डरे हुए हैं — क्योंकि इन फिल्मों ने उस मूक और दबा हुआ सत्य को उठाया है जिसे दशकों से छुपाया गया।
❗ “भाईचारे” की आड़ में अपराध?
क्या ये भाईचारा था:
- पहलगाम में हिंदुओं को नाम पूछकर मारना?
- ज्ञानवापी में शिवलिंग पर सदियों तक वजू करना?
- मोहर्रम के दौरान मंदिरों और हिंदू घरों पर पथराव?
- तस्लीम रहमानी का TV पर भगवान शिव का अपमान?
- छांगुर बाबा का हिंदू लड़कियों का धर्मांतरण रेट कार्ड?
- हाकिम सलाउद्दीन की हथियार फैक्ट्री?
अगर यह सब “भाईचारा” है — तो फिर हत्याएं, घृणा और देशद्रोह की कोई अलग परिभाषा नहीं बचती।
⚖️ क्या हिंदुओं को सच देखने और कहने का हक नहीं?
- अगर मौलाना मदनी को “सम्मान से जीने का अधिकार” है,
- तो हिंदुओं को भी अपने मारे गए भाइयों के लिए न्याय मांगने का,
- अपनी आस्था की रक्षा करने का,
- और कट्टरपंथी खतरे से जनता को सतर्क करने का अधिकार है।
“उदयपुर फाइल्स” सच बोल रही है — और सच कट्टरपंथियों को चुभता है।
🔱 यह सिर्फ एक फिल्म नहीं — यह चेतावनी है
- ये फिल्म हमें याद दिलाती है कि कट्टरपंथ का इलाज चुप्पी नहीं, चेतना है।
- ये फिल्म हमें बताती है कि हमें इतिहास भूलना नहीं, उससे सीखना है।
- ये फिल्म गौरवशाली भारत और संवेदनशील हिंदू समाज को उन शक्तियों से आगाह करती है, जो उसे तोड़ने का सपना देखती हैं।
⚖️ विवाद: कानूनी चुनौती और अदालत की रोक
इस्लामी संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अदालत में एक याचिका दायर कर कहा कि यह फिल्म साम्प्रदायिक तनाव भड़का सकती है। वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने याचिकाकर्ता की ओर से अदालत में यह तर्क दिया कि फिल्म देश की नाज़ुक सामाजिक संरचना को बिगाड़ सकती है।
दिल्ली हाईकोर्ट ने सावधानी के तौर पर फिल्म की रिलीज़ पर अस्थायी रोक लगा दी, जब तक अगली सुनवाई न हो जाए। लेकिन समाज के कई वर्गों ने इस फैसले को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश और असुविधाजनक सच्चाइयों को दबाने का प्रयास माना है।
🧭 वृहद बहस: सच्चाई बनाम शांति — क्या दोनों टकरा सकते हैं?
यह मामला एक गंभीर द्वंद्व को सामने लाता है:
- क्या कठोर सच्चाइयों को इसलिए रोका जाए कि वे सामाजिक शांति भंग कर सकती हैं?
- या फिर समाज को इन सच्चाइयों का सामना करना चाहिए, ताकि वे सुधार और जागरूकता की दिशा में कदम बढ़ा सकें?
🧾 सच्चाई सामने आनी चाहिए, लेकिन जिम्मेदारी के साथ
भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, और यहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक पवित्र अधिकार है — लेकिन सामाजिक शांति भी उतनी ही जरूरी है।
- ‘उदयपुर फाइल्स’ केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि यह दर्शाती है कि एक राष्ट्र कैसे त्रासदी, न्याय और सच्चाई को स्वीकार करता है और उस पर प्रतिक्रिया करता है।
- कन्हैया लाल की हत्या केवल एक जघन्य अपराध नहीं थी, बल्कि कट्टरता के खिलाफ एक चेतावनी थी — एक ऐसा संदेश कि हमें धर्म से परे होकर कट्टरपंथ के खिलाफ एकजुट होना चाहिए।
आइए हम सब न्याय की मांग करें, सच्चाई को अपनाएं, लेकिन ऐसा करें परिपक्वता, एकता और संवैधानिक मर्यादा के साथ।
“उदयपुर फाइल्स” से अगर किसी को परेशानी है,
तो वह या तो अपराधी है, या अपराधी का संरक्षक।
- न्याय मांगना नफरत नहीं होता।
- सच बोलना सांप्रदायिकता नहीं होती।
- हिंदू होना अपराध नहीं है।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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