विकसित और समृद्ध भविष्य की ओर भारत की शाश्वत यात्रा
1. वंदे मातरम् — केवल नारा नहीं, एक जीवंत मंत्र
वंदे मातरम्कोई साधारण शब्द-समूह नहीं है, जिसे केवल भावुक क्षणों में बोला जाए।
यह एक सभ्यतागत मंत्र है—जो इतिहास, बलिदान, साहस, आस्था और भविष्य को एक सूत्र में बाँधता है।
- यह पूजा है, लेकिन साथ ही कर्तव्य भी
- यह भावना है, लेकिन उतनी ही प्रतिज्ञा भी
- यह स्मृति है, लेकिन उतनी ही दृष्टि भी
- जब करोड़ों भारतीय एक साथ वंदे मातरम् कहते हैं, तो यह ध्वनि नहीं रह जाती।
यह ऊर्जा बन जाती है - एक सामूहिक चेतना का जागरण, जो जाति, भाषा, क्षेत्र और विचारधारा से ऊपर उठ जाती है।
- इसीलिए वंदे मातरम् सदियों के आक्रमण, विकृति और दमन के बावजूद जीवित रहा—क्योंकि यह पुस्तकों में नहीं, भारत की आत्मा में बसता है।
2. भारत — एक ऐसी सभ्यता जिसने मरने से इनकार किया
भारत कोई संयोग से बना राष्ट्र नहीं है, न ही किसी आदेश से रचा गया भू-खंड।
भारत एक अविच्छिन्न सभ्यता-धारा है, जो लिखित इतिहास से भी पुरानी है।
- साम्राज्य उठे और गिरे
- आक्रांताओं ने आकर शासन किया और मिट गए
- सीमाएँ बदलीं, नक्शे बदले
- फिर भी भारत अडिग रहा।
क्यों? क्योंकि भारत केवल शक्ति या विजय पर नहीं टिका था। वह टिका था संतुलन पर:
- शक्ति के साथ संयम
- समृद्धि के साथ उद्देश्य
- ज्ञान के साथ विवेक
- सामर्थ्य के साथ नैतिकता
हमारे ऋषि-मुनियों, संतों, आचार्यों और वीरों ने यह सत्य जाना था:
- कोई राष्ट्र केवल हथियारों से नहीं, बल्कि आत्मबोध से उपजे मूल्यों से जीवित रहता है।
वंदे मातरम् इसी धरती से जन्मा।
3. दासता की जंजीरों में जन्मा, स्वतंत्रता के लिए नियत
जब बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने वंदे मातरम् की रचना की, तब भारत अपने सबसे कठिन दौर से गुजर रहा था:
- विदेशी शासन द्वारा लूटा गया
- शोषणकारी नीतियों से कुचला गया
- हीन और पिछड़ा बताकर अपमानित किया गया
- आत्मविश्वास से वंचित
फिर भी बंकिम बाबू ने एक ऐसे भारत की कल्पना की, जो:
- सुजलाम हो
- सुफलाम हो
- श्यामल और समृद्ध हो
यही कल्पना स्वयं में विद्रोह थी।
- वंदे मातरम् ने भारत का वर्णन नहीं किया— उसने भारत के पुनरुत्थान की भविष्यवाणी की।
इसीलिए यह अंग्रेजों को भयभीत करता था और भारतीयों को प्रेरित।
4. कविता से जन-शक्ति तक
जो रचना साहित्य के रूप में जन्मी, वह शीघ्र ही स्वतंत्रता संग्राम की रीढ़ बन गई।
- कांग्रेस अधिवेशनों से लेकर क्रांतिकारियों के गुप्त अड्डों तक
- बंगाल विभाजन के विरुद्ध आंदोलनों में
- जेलों की कालकोठरियों और फाँसी के तख्तों पर
असंख्य स्वतंत्रता सेनानी वंदे मातरम् कहते हुए शहीद हुए। और उससे भी अधिक ने इसे हृदय में जीया।
- महात्मा गांधी ने इसे अखंड भारत का चित्र कहा
- श्री अरविंद ने इसे आत्मबल जगाने वाला मंत्र बताया
- रवींद्रनाथ टैगोर ने इसे स्वर दिया
आधुनिक इतिहास में कोई और गीत नहीं जिसने संस्कृति, प्रतिरोध और राष्ट्रबोध को इतने गहरे जोड़ा हो।
5. भारत राष्ट्र को “माता” क्यों कहता है
भारत की दृष्टि अद्वितीय है।
- जहाँ अन्य सभ्यताएँ राष्ट्र को राजनीतिक इकाई मानती हैं, भारत राष्ट्र को माँ मानता है—माँ भारती।
माँ केवल कोमल नहीं होती:
- वह पालन करती है
- शिक्षित करती है
- बलिदान देती है
- और आवश्यकता पड़ने पर अधर्म का नाश भी करती है
वंदे मातरम् इसी पूर्ण दृष्टि को प्रकट करता है:
- सरस्वती — ज्ञान
- लक्ष्मी — समृद्धि
- दुर्गा — शक्ति और रक्षा
इसी कारण भारत का स्वतंत्रता संग्राम केवल सत्ता परिवर्तन नहीं था— वह स्वाभिमान और आत्मसम्मान की पुनर्स्थापना था।
6. स्वतंत्रता अंत नहीं — आरंभ है
- वंदे मातरम् मुक्ति पर रुकता नहीं। वह स्वतंत्रता के बाद के कर्तव्य की भी मांग करता है।
एक सच्चा स्वतंत्र राष्ट्र:
- ज्ञान, विज्ञान और तकनीक में अग्रणी हो
- नवाचार और उद्यम से समृद्ध बने
- आत्मनिर्भर रक्षा से सुरक्षित रहे
- मानवता की सेवा करे, पर अन्याय पर कठोर रहे
मोदीजी के नेत्रत्व मैं आज का भारत इसी मार्ग पर आगे बढ़ रहा है। जो काम पहले 65 साल में नहीं हुआ वो मोदीजी के काल मैं पिछले ग्यारह साल से निरंतर सुचारु रूप से चल रहा है।
7. इतिहास की सीख, वर्तमान की चेतावनी
इतिहास यह भी सिखाता है कि प्रतीकों को कमजोर करना राष्ट्र को कमजोर करता है।
- वंदे मातरम् के साथ हुआ अन्याय और उसी सोच से हुआ देश का विभाजन—
आज भी हमें सावधान करता है।
इसीलिए वंदे मातरम् के पूर्ण भाव को समझना आवश्यक है।
8. आज का भारत — उठने को तैयार राष्ट्र
आज माँ भारती के पास है:
140 करोड़ संतानें
विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी
तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था
तकनीकी आत्मविश्वास
सभ्यतागत पुनर्जागरण
हर ऐतिहासिक उपलब्धि पर आज का भारत स्वतः कह उठता है—
वंदे मातरम्।
9. शाश्वत पथप्रदर्शक
वंदे मातरम् केवल इतिहास नहीं, कर्म का मंत्रहै।
- जब भारत निर्माण करता है
- जब भारत रक्षा करता है
- जब भारत साहस दिखाता है
- जब भारत स्वयं पर विश्वास करता है
विकसित भारत 2047 की यात्रा में यह मंत्र हमारा ध्रुवतारा बना रहेगा।
- क्योंकि जो राष्ट्र अपनी आत्मा को पहचानते हैं, वे कभी मार्ग नहीं भटकते।
🇮🇳 जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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