भारत का इतिहास केवल युद्धों और विजयों का नहीं, बल्कि असंख्य वीरांगनाओं के अद्भुत शौर्य और स्वाभिमान की गौरवगाथा भी है। अफसोस की बात यह है कि वामपंथी और कांग्रेसी इतिहासकारों ने इन वीर नायिकाओं के बलिदान को दबाने का प्रयास किया और विदेशी आक्रांताओं को “महान” के रूप में प्रस्तुत किया। अकबर, जिसे अक्सर “महान” कहा जाता है, उसके कुटिल और नीच कृत्यों को जानबूझकर छिपाया गया। लेकिन सत्य को अधिक दिनों तक दबाया नहीं जा सकता। राजपूत वीरांगना बाईसा किरणदेवी का एक ऐसा ही अद्भुत प्रसंग भारतीय इतिहास के स्वर्ण पृष्ठों में अंकित है, जिसने न केवल अकबर की नीचता को उजागर किया बल्कि उसकी क्रूर इच्छाओं पर हमेशा के लिए रोक लगा दी।
अकबर की नीयत और नौरोज का मेला: छल–प्रपंच का अड्डा
अकबर हर साल दिल्ली में “नौरोज का मेला“ आयोजित करता था, जिसका उद्देश्य जनता को आनंद देना नहीं, बल्कि अपनी कुटिल वासनाओं की पूर्ति करना था।
नौरोज मेले की विशेषताएँ:
पुरुषों का प्रवेश निषेध:
- इस मेले में केवल महिलाएँ ही शामिल हो सकती थीं।
- बाहर से यह एक उत्सव की तरह दिखता था, लेकिन इसकी असली मंशा कुछ और थी।
अकबर का छल:
- वह खुद महिलाओं के वेष में इस मेले में आता था।
- जो भी महिला उसे लुभाती, उसे छल से अपने महल में बुलवा लेता।
- फिर उसकी दासियाँ उसे अकबर के पास जाने के लिए बाध्य करतीं।
क्या यह “महानता” थी?
वामपंथी इतिहासकारों ने अकबर को एक सहिष्णु और उदार शासक के रूप में प्रस्तुत किया।
लेकिन क्या एक राजा, जो अपने ही मेले में महिलाओं को छल–कपट से बुलाता था, महान हो सकता है?
वीरांगना बाईसा किरणदेवी: राजपूती स्वाभिमान का प्रतीक
एक दिन नौरोज के मेले में राजपूतों की शान, महाराणा प्रताप के छोटे भाई महाराज शक्तिसिंह की पुत्री बाईसा किरणदेवी आईं। वे बीकानेर के पृथ्वीराज जी की पत्नी थीं और अपनी सुंदरता व तेजस्विता के लिए प्रसिद्ध थीं।
अकबर जब उन्हें देखता है, तो उसके नीच विचार जाग उठते हैं। वह अपने दासियों को भेजकर किरणदेवी को महल में बुलवाता है।
किरणदेवी का प्रतिशोध: जब एक नारी ने सम्राट को झुका दिया
अकबर अपने ही जाल में फँस जाता है। जैसे ही वह किरणदेवी को छूने का प्रयास करता है, उन्होंने अपनी कमर से कटार निकाली, उसे ज़मीन पर पटक दिया और उसकी छाती पर पैर रखकर कटार उसकी गर्दन पर रख दी।
उनका क्रोधपूर्ण स्वर गूंज उठा:
“नीच… नराधम! क्या तुझे पता नहीं कि मैं उन्हीं महाराणा प्रताप की भतीजी हूं, जिनके नाम से तेरी नींद उड़ जाती है? अब बोल, तेरी आखिरी इच्छा क्या है?”
अकबर काँपने लगा, उसकी पूरी हेकड़ी हवा हो गई। वह हाथ जोड़कर क्षमा माँगने लगा।
नौरोज मेले का अंत और अकबर की पराजय
किरणदेवी ने अपनी शर्तें रखीं:
- आज के बाद दिल्ली में नौरोज का मेला नहीं लगेगा।
- किसी भी हिंदू नारी को परेशान नहीं किया जाएगा।
अकबर ने भयभीत होकर हाथ जोड़कर प्रतिज्ञा ली कि अब से यह मेला कभी नहीं लगेगा।
इतिहास गवाह है कि उस दिन के बाद दिल्ली में नौरोज का मेला कभी आयोजित नहीं हुआ!
इतिहास में अंकित किरण बाईसा की वीरता
इस घटना का उल्लेख गिरधर आसिया द्वारा रचित ‘सगत रासो‘ में पृष्ठ संख्या 632 पर मिलता है।
इसके अलावा, बीकानेर संग्रहालय में लगी एक पेंटिंग में भी इस घटना को एक दोहे के माध्यम से दर्शाया गया है:
“किरण सिंहणी सी चढ़ी, उर पर खींच कटार,
भीख मांगता प्राण की, अकबर हाथ पसार।“
वीरांगनाओं को याद रखना हमारा कर्तव्य है!
आज भारतीय बेटियाँ फिल्मों और सोशल मीडिया पर व्यस्त हैं, लेकिन क्या उन्हें अपने गौरवशाली इतिहास का पता है?
क्या हमें नहीं चाहिए कि हम अपनी वीरांगनाओं को नमन करें, उन्हें याद रखें, और आने वाली पीढ़ी को उनके शौर्य के बारे में बताएं?
अकबर को महान बताने वालों को जवाब दें!
🚩 अगर आप अपनी संस्कृति और सभ्यता का सम्मान करते हैं, तो इस गौरवशाली कथा को जन-जन तक पहुँचाएँ! 🚩
🇳🇪 जय भारत, वन्देमातरम🇳🇪
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