विदेशी NGO नेटवर्क
- भारत आज एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। एक तरफ़ यह देश तेज़ी से एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभर रहा है, तो दूसरी तरफ़ विदेशी ताक़तें हर तरह से इसे कमजोर करने पर आमादा हैं।
- यह हमला सिर्फ़ सीमा पर गोलियों से नहीं, बल्कि भीतर बैठाए गए नरम ताक़त के एजेंटों के ज़रिए भी हो रहा है। यही एजेंट “सामाजिक कार्यकर्ता” या “सुधारक” के रूप में जनता के बीच प्रस्तुत किए जाते हैं।
- सोनम वांगचुक और उनकी विदेशी संबंधों से भरी यात्रा इसी पैटर्न की एक बड़ी मिसाल है।
🔑 रहस्यमयी शुरुआत – रेबेका नॉर्मन का आगमन
- वर्ष 1993, जब कश्मीर आतंकवाद से जल रहा था, एक अमेरिकी युवती रेबेका नॉर्मन लद्दाख पहुँची।
- 22–23 वर्ष की युवती अचानक भारत के सबसे संवेदनशील क्षेत्र में क्यों आई?
- यह कोई सामान्य घटना नहीं थी, बल्कि रणनीतिक एजेंडे का हिस्सा प्रतीत होता है।
👉 रेबेका ने पढ़ाई की थी School for International Training (SIT) से। SIT वही संस्था है जहाँ Peace Corps (अमेरिकी जासूसी और कूटनीति का छुपा रूप) की ट्रेनिंग होती है।
- इसे फंड करते हैं – Ford Foundation, Soros का Open Society Foundation और Bill & Melinda Gates Foundation।
- यही नेटवर्क दुनिया भर में “मानवता और सुधार” के नाम पर अमेरिकी प्रभुत्व को आगे बढ़ाता है।
- मानवीय सहायता की आड़ मैं देशों को गुलाम बनाता है।
💍 विवाह और वांगचुक की उन्नति
- 1988: वांगचुक ने NGO SECMOL बनाई।
- 1993: रेबेका वहाँ इंग्लिश टीचर बनीं।
- 1996: दोनों का विवाह हुआ।
शादी के बाद –
- वांगचुक की अंतरराष्ट्रीय पहुँच अचानक कई गुना बढ़ गई।
- विदेशी पुरस्कार, फेलोशिप और नेटवर्क – सब कुछ मानो पहले से तय स्क्रिप्ट की तरह मिलने लगा।
🌐 विदेशी नेटवर्क की परतें
- 2002 – Ashoka Fellowship → अमेरिकी NGO नेटवर्क से जुड़ाव।
- 2005 – कांग्रेस शासन → राष्ट्रीय प्राथमिक शिक्षा गवर्निंग काउंसिल में नियुक्ति।
- 2016 – Rolex Award → ₹2.25 करोड़ की राशि, CSR फंडिंग का रास्ता।
- 2018 – Ramon Magsaysay Award → CIA समर्थित Rockefeller Foundation द्वारा स्थापित।
👉 ध्यान दें: मैग्सेसे पुरस्कार अक्सर उन्हीं को दिया जाता है जिनकी छवि “एंटी-एस्टेब्लिशमेंट” हो — और हमारे देश मैं उनकी भरमार है।
🎭 असली एजेंडा – Soft War Asset
अमेरिका की रणनीति बिल्कुल साफ है:
- NGOs और अवॉर्ड्स के जरिए “लोकप्रिय चेहरे” बनाना।
- इन चेहरों से जनता को गुमराह करना और सरकार को दबाव में लाना।
- लंबे समय में देश में अस्थिरता और विभाजन पैदा करना।
⚠️ यह सिर्फ़ एक मामला नहीं
सोनम वांगचुक अकेले नहीं हैं।
- दशकों से कई “सामाजिक कार्यकर्ता” विदेशी NGOs से पैसा लेकर विदेशी एजेंडे साधते आए हैं।
- कांग्रेस शासन में यह नेटवर्क कमीशन और घूस के रास्ते से विदेशी ताक़तों को भारत के भीतर पैर जमाने देता रहा।
मोदी सरकार आने के बाद यही नेटवर्क अब एंटी-नेशनल इकोसिस्टम के लिए फंडिंग चैनल बन गया है —
- दंगे करवाना
- प्रदर्शन खड़ा करना
- “लोकतंत्र खतरे में है” का नैरेटिव फैलाना
👉 विदेशी NGOs, पुरस्कार और तथाकथित सुधारकों का यह गठजोड़ अब भारत को भीतर से कमजोर करने का सबसे बड़ा हथियार बन चुका है।
🛑 न्यायपालिका और विदेशी एजेंडा
सबसे खतरनाक पहलू यह है कि ऐसे तथाकथित कार्यकर्ता अक्सर न्यायपालिका का दरवाज़ा खटखटाते हैं।
- विदेशी पैसे से पाले गए ये एक्टिविस्ट अदालत में याचिकाएँ डालते हैं।
- विकास परियोजनाओं को रोकते हैं।
- राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं पर बाधाएँ खड़ी करते हैं।
👉 न्यायपालिका को समझना होगा कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है।
- एंटी-नेशनल एजेंडे वाली याचिकाएँ स्वीकार नहीं होनी चाहिए।
- दुर्भावनापूर्ण याचिकाओं से न्याय का समय और संसाधन दोनों बर्बाद होते हैं।
🛡️ भारत के लिए सबक
- सरकार और न्यायपालिका को विदेशी फंडिंग और NGOs की गहराई से जाँच करनी होगी।
- “Soft War Assets” को पहचानना और उनका नेटवर्क खत्म करना ज़रूरी है।
- जनता को भी जागरूक होना होगा कि हर तथाकथित सुधारक असल में सुधारक नहीं, बल्कि किसी विदेशी नेटवर्क का हिस्सा भी हो सकता है।
- रेबेका नॉर्मन और सोनम वांगचुक की कहानी कोई साधारण प्रेमकथा नहीं, बल्कि 32 साल लंबा अमेरिकी निवेश है।
- यह उस बड़े खेल का हिस्सा है जो भारत को भीतर से अस्थिर करने के लिए NGOs, अवॉर्ड्स और “सामाजिक सुधार” के नाम पर खेला जा रहा है।
👉 अब वक्त आ गया है कि भारत —
- विदेशी फंडिंग वाले नेटवर्क को कानूनी रूप से खत्म करे।
- सच्चे राष्ट्रहित और आत्मनिर्भरता के रास्ते पर अडिग रहे।
और हम देशभक्तों को चाहिये कि हम अपनी देशभक्त सरकार का पूर्ण समर्थन करके देश, धर्म और समाज का संरक्षण करेँ।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮
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