भारत में जकात जिहाद बनाम सनातन निष्क्रियता एक गंभीर वैचारिक संघर्ष बन चुका है। जहां ज़कात आधारित जिहाद संगठित रूप से आर्थिक संसाधनों के ज़रिए कट्टरता फैला रहा है, वहीं सनातन समाज की निष्क्रियता इस संघर्ष को और भी जटिल बना रही है।
❗ भारत का आज का संकट बाहरी नहीं, बल्कि हमारी भीतरी सुस्ती और नेतृत्वहीनता का परिणाम है
📌 मुद्दा सिर्फ़ एक मौलवी या एक केस का नहीं — यह एक सुनियोजित जिहादी नेटवर्क बनाम दिशाहीन सनातन समाज की लड़ाई है।
🧩 क्या हो रहा है ज़मीनी स्तर पर?
क़ानून का दुरुपयोग:
- 370 हटने के बाद भी कश्मीर में मस्जिदों में हथियार, भड़काऊ भाषण, और राष्ट्रद्रोही गतिविधियाँ जारी हैं।
- ‘लव-जिहाद’ पर बने कानूनों को लागू करने में राज्य सरकारें लचर हैं।
- हिंदू समाज के न्यायिक मामले सालों साल खिंचते हैं, लेकिन धर्मांतरण के आरोपी ज़मानत पर छूट जाते हैं।
विदेशी फ़ंडिंग और NGO नेटवर्क:
- सऊदी, तुर्की, कतर और UAE जैसे देशों से करोड़ों की ज़कात और चंदा भारत में जिहादी नेटवर्क के माध्यम से पहुँच रहा है।
- ‘मौलवी नेटवर्क’ ग्रामीण क्षेत्रों, स्लम इलाकों, मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में स्कूल, हॉस्टल, मुफ्त कोचिंग सेंटर, अस्पताल खोलकर संघन धार्मिक जिहाद चला रहे हैं।
शैक्षणिक और मीडिया फ्रंट पर कब्ज़ा:
- मिशनरी स्कूलों और मदरसों में “धर्मनिरपेक्षता” के नाम पर हिंदू प्रतीकों का तिरस्कार।
- OTT प्लेटफार्मों, Bollywood, और कुछ न्यूज़ चैनलों पर हिंदू भावनाओं का लगातार उपहास और इस्लामी छवि को “प्रगतिशील” दिखाने का षड्यंत्र।
🔱 उधर शंकराचार्य, महामंडलेश्वर, पीठाधीश्वर क्या कर रहे हैं?
- हज़ारों करोड़ों की संपत्ति वाले मठ – लेकिन कोई मिशन नहीं।
- सैकड़ों एकड़ ज़मीन – लेकिन कोई गाँव गोद नहीं लिया।
- लाखों अनुयायी – लेकिन एक संगठित प्रतिकार नहीं।
- महंगी कारें, वातानुकूलित आश्रम, विदेश यात्राएँ – लेकिन हिंदू बेटियों की सुरक्षा के लिए कोई प्रयास नहीं और उनके लिए कोई पुनर्वास केंद्र नहीं।
👉 क्या यह धर्म की सेवा है? या उनका सुविधापूर्ण जीवन?
🧠 कारण क्या हैं इस निष्क्रियता के?
विकृत गुरुकुल प्रणाली:
- आधुनिक शिक्षा से कटे हुए साधु-संत आज भी 100 साल पुराने पठन-पाठन और शास्त्रार्थ में उलझे हुए हैं, जबकि दुनिया डिजिटल युद्ध में है।
राजनीति से डर:
- अधिकतर संत “निष्पक्ष” रहने के नाम पर राजनीतिक मोर्चों से दूर रहते हैं, जिससे अधार्मिक शक्तियाँ राजनीतिक मंच पर मज़बूत हो गई हैं।
मठों और ट्रस्टों का व्यवसायीकरण:
- कई आश्रम और मंदिर आज “धार्मिक ब्रांड” बन चुके हैं – जहाँ टिकट, ड्रेस कोड, VIP एंट्री और चढ़ावे की दरें होती हैं। धर्म नहीं, प्रबंधन चलता है।
🛑 लेकिन परिणाम क्या हो रहे हैं?
- भारत के 300+ जिलों में जनसांख्यिकीय संतुलन तेजी से बदल रहा है।
- हर साल 50,000 से ज़्यादा लड़कियाँ लव-जिहाद, छल या लालच का शिकार बन रही हैं।
- हर साल 5 लाख से अधिक धर्मांतरण, विशेषकर दलित और वनवासी समुदायों में।
- हज़ारों गाँव ‘मिनी पाकिस्तान’ बन चुके हैं – जहाँ हिंदू पर्व नहीं मनाए जा सकते, मंदिर नहीं बन सकते, तिरंगा नहीं फहराया जा सकता।
🚩 समाधान क्या है?
🔹1. आधुनिक साधु-संत प्रशिक्षण संस्थान:
- हर मठ, हर पीठ को शास्त्रों के साथ-साथ राष्ट्रनीति, संविधान, मीडिया और तकनीक की शिक्षा देनी चाहिए।
🔹2. मठ-मिशन मॉडल:
- हर पीठ को कम-से-कम 50 गाँवों में “घरवापसी, गौ-संरक्षण, शिक्षा और स्वरोज़गार” का अभियान चलाना चाहिए।
🔹3. हिंदू पुनर्जागरण फंड:
- बड़े-बड़े मंदिर ट्रस्ट अपने सालाना आय का 20% हिंदू सुरक्षा मिशन में लगाएँ — जैसे कि “लव-जिहाद से पीड़ित बहनों की सहायता”, “घरवापसी केंद्र”, “हिंदू युवाओं के लिए स्किल सेंटर”, आदि।
🔹4. हिंदू डिजिटल सेना:
- हर आश्रम, हर मठ को एक डिजिटल प्रचार टीम बनानी चाहिए जो सोशल मीडिया पर झूठ और प्रोपेगंडा का जवाब दे सके।
🔹5. सामूहिक स्वाभिमान आंदोलन:
– मंदिरों को साफ़ करो,
– मठों को जवाबदेह बनाओ,
– और जहां संत मौन हैं, वहाँ जनता को बोलना होगा।
अब प्रश्न शंकराचार्य का नहीं, तुम्हारा है हिंदू
- क्या तुम सिर्फ़ मूर्तियाँ पूजते रहोगे, या अपनी बेटियों की अस्मिता के लिए लड़ोगे?
- क्या तुम सिर्फ़ प्रवचन सुनोगे या पथ पर चलोगे?
- क्या तुम अपने चढ़ावे से ऐसे संस्थानों को पालोगे, जो तुम्हारी ही चिता की लकड़ी इकट्ठा कर रहे हैं?
🙏 जागो, संगठित होओ, और अपने संतों से जवाब माँगो।
🚩 धर्म बचाना है तो अब मौन नहीं – मंथन और आंदोलन दोनों चाहिए।
जय श्रीराम। वंदे मातरम्।
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