बचपन की यादें और बजाज चेतक
बचपन में हमारे घर में एक बजाज चेतक स्कूटर था—तब यह एक बड़ी चीज़ मानी जाती थी। यह कितना अच्छा था, यह तो नहीं पता, लेकिन इसका 175cc इंजन और जबरदस्त पिकअप जरूर था।
हाई स्कूल तक मैं साइकिल से स्कूल जाता था, लेकिन इंटरमीडिएट (+2) के दौरान, कभी-कभी पिता जी का स्कूटर कॉलेज ले जाता था।
एक दिन मैं इसे कॉलेज ले गया, तभी एक अजीज दोस्त को अचानक घर जाना पड़ा—शायद किताबें लेने। वह काफ़ी क़रीबी था, तो मैंने उसे वही सलाह दी जो पिता जी हमेशा देते थे—“संभलकर चलाना!”
लेकिन 5-7 मिनट बाद ही वह गुस्से में लौटा और चिल्लाया—
“भाई, ये गाड़ी है या घोड़ा? ब्रेक लगाता हूँ तो और तेज़ भागने लगती है!”
मैंने हंसते हुए समझाया, “गाड़ी एक्सीलेटर से चलती है, ब्रेक से नहीं! तूने गलती से एक्सीलेटर घुमा दिया होगा!” लेकिन वह अड़ गया, “बकवास मत कर! खुद चला के देख ले!”
जिज्ञासावश, मैंने स्कूटर स्टार्ट किया और तेज़ी से निकला। जैसे ही ब्रेक लगाया—मैं हैरान रह गया! गाड़ी रुकने के बजाय और तेज़ भागने लगी!
किसी तरह भगवान का नाम लेकर गाड़ी रोकी और मैकेनिक के पास गया। उसने देखकर बताया—
“ब्रेक खराब नहीं हैं, लेकिन ब्रेक वायर ढीली हो गई है, जिससे ब्रेकिंग कमजोर हो गई है।“
माइंडसेट: दिमाग का खेल
वापसी में यही सोचता रहा कि ब्रेक लगाने पर गाड़ी तेज कैसे हो सकती है? फिर समझ आया कि—
“हमारा दिमाग इस बात के लिए सेट होता है कि अगर हमने ब्रेक दबाया, तो गाड़ी रुकनी चाहिए। लेकिन जब अपेक्षित परिणाम नहीं मिलता, तो हमें लगता है कि गाड़ी तेज हो गई!”
असल में गाड़ी तेज नहीं होती थी, बल्कि ब्रेक हल्का लग रहा था, जिससे रुकने में समय लग रहा था।
ब्रेक हल्का लगने के कई कारण हो सकते हैं—
- ब्रेक शू घिस गया हो
- ब्रेक ऑयल कम हो गया हो
- ब्रेक वायर ढीला हो गया हो
लेकिन, सवाल केवल स्कूटर का नहीं है। यह माइंडसेट समाज, राजनीति और धर्म पर भी लागू होता है।
राजनीति में ब्रेक और स्पीड का खेल
आज कई लोगों को लगता है कि “मोदी सरकार के आने के बाद तुष्टिकरण और तृप्तिकरण और तेज़ हो गया है!”
असल में ऐसा नहीं हुआ है। बल्कि, शासन सुचारू रूप से चलता रहा, लेकिन लोगों का माइंडसेट अलग था।
जो लोग यह सोच रहे थे कि “बीजेपी के सत्ता में आते ही भारत एक हिंदू राष्ट्र बन जाएगा“, उनके लिए जब ऐसा नहीं हुआ, तो उन्हें लगा कि मोदी ब्रेक लगाने के बजाय स्पीड बढ़ा रहे हैं।
जबकि सच्चाई यह है कि—
- जहाँ कभी कश्मीर समेत पूरे भारत में आतंकवाद चरम पर था, बम धमाके रोज़ होते थे—वह सब बंद हो चुका है।
- हज सब्सिडी पूरी तरह खत्म हो चुकी है।
- सरकारी आवासों में इफ्तार पार्टियों की जगह कन्या पूजन और दीपावली महोत्सव हो रहे हैं।
- भारत की सनातनी पहचान को ताजमहल और कुतुब मीनार से जोड़ने की बजाय काशी, महाकाल, अयोध्या और वृंदावन से जोड़ा जा रहा है।
लेकिन फिर भी कुछ लोग कहते हैं—
“भाऊ श्री के… ब्रेक लगाने के बाद भी गाड़ी और तेज क्यों भाग रही है?”
ड्रम ब्रेक या डिस्क ब्रेक?
अब सबसे बड़ा सवाल—
“अगर मोदी जी बदलाव ला ही रहे हैं, तो इतने धीमे क्यों? झटके से डिस्क ब्रेक लगाकर गाड़ी रोक क्यों नहीं देते?”
तो इसका आसान जवाब है—
“गाड़ी में बहुत सारे पैसेंजर बैठे हैं, और उनमें से कई सीट बेल्ट लगाए बिना लापरवाही से बैठे हैं!”
अगर झटके से गाड़ी रोकी गई, तो—
- कई लोग गाड़ी से गिर जाएंगे
- कुछ को चोट लग जाएगी
- गाड़ी भी पलट सकती है
सड़क भी सही नहीं है—
- बरसात (हिंदुओं की उदासीनता) से फिसलन हो गई है
- बड़े–बड़े रोड ब्रेकर (सेक्युलरिज्म, मानवाधिकार, कोर्ट) रास्ते में हैं
इसलिए, मोदी सरकार धीरे–धीरे, लेकिन सही तरीके से गाड़ी को मंज़िल तक पहुँचा रही है।
कुशल ड्राइवर वही होता है, जो न सिर्फ गाड़ी को डेस्टिनेशन पर पहुँचाए, बल्कि सभी यात्रियों को सुरक्षित रखते हुए ले जाए!
और मोदी जी वही कर रहे हैं!
🚩 जय भारत! जय हिन्द!! 🚩
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