दुनिया में मुसलमानों की अस्वीकृति
दुनिया में मुसलमानों की अस्वीकृति एक महत्वपूर्ण और जटिल मुद्दा है, जो विभिन्न देशों और समाजों में अलग-अलग कारणों से उत्पन्न हुआ है। हम जानेंगे कि मुसलमानों को किन कारणों से अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है, जैसे कि धार्मिक कट्टरता, सांस्कृतिक भेदभाव और आतंकवाद। इसके अलावा, हम यह भी समझेंगे कि मुस्लिम समाज को इससे निपटने के लिए कौन से सबक लेने चाहिए, जो समाज में शांति और समरसता को बढ़ावा दे सकें।
1. दुनिया में मुसलमानों की अस्वीकृति क्यों?
आज दुनिया के कई प्रमुख देश — चाहे वे लोकतांत्रिक हों या तानाशाही — मुस्लिम समुदाय की एक विशेष प्रवृत्ति से परेशान हैं:
- कट्टर धार्मिक सोच,
- धार्मिक कानूनों को सर्वोपरि मानना,
- स्थानीय संस्कृति और कानून को अस्वीकार करना,
- कट्टरपंथ, आतंकवाद, और अलगाववादी रवैया।
उदाहरणस्वरूप:
- चीन ने मुस्लिमों पर सख्ती इसलिए की क्योंकि वहाँ ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट जैसे आतंकी संगठन उभरने लगे।
- म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा उग्रवादी गतिविधियों के चलते सरकार ने कड़ा रुख अपनाया।
- फ्रांस में इस्लामिक चरमपंथियों ने शिक्षकों की हत्या कर दी, जिसके बाद सरकार ने मस्जिदों को गिराया और कानून सख्त किया।
- जापान ने शुरुआत से ही धार्मिक कट्टरता को देश से दूर रखा और इस्लाम के प्रचार को कानूनन अपराध बना दिया।
जहाँ भी इस्लामिक कट्टरता बढ़ी — वहाँ की मुख्य संस्कृति और शांति को खतरा हुआ। इसलिए देशों ने बचावात्मक रुख अपनाया, जो अब मुस्लिम विरोध जैसा दिखता है।
2. मुस्लिम देशों में मुसलमानों की हालत क्यों खराब है?
यह और भी चौंकाने वाला है कि जिन देशों में 100% मुस्लिम जनसंख्या है, वहाँ भी मुसलमान सुरक्षित नहीं हैं।
- पाकिस्तान, ईरान, इराक, अफगानिस्तान, सीरिया, लीबिया — इन सब जगह शिया-सुन्नी, सूफी-सलफी, या तालिबानी-विरोधी के नाम पर खुद मुसलमान एक-दूसरे को मारते हैं।
- मस्जिदों में बम फटते हैं, जुलूसों पर गोलियाँ चलती हैं, महिलाओं को सरेआम पत्थर से मारा जाता है।
मुसलमान, केवल गैर–मुस्लिम समाज में ही नहीं — बल्कि खुद अपने समाज में भी सुरक्षित नहीं हैं। समस्या कहीं और नहीं, विचारधारा में है।
3. भारत में मुस्लिमों की स्थिति: विशेषाधिकार और फिर भी असंतोष
भारत एकमात्र देश है जहाँ मुस्लिमों को:
- पूरी धार्मिक स्वतंत्रता,
- हज सब्सिडी,
- मदरसे चलाने की आज़ादी,
- मुस्लिम पर्सनल लॉ,
- आरक्षण जैसी योजनाओं का लाभ,
- और कई बार कानून से भी ऊपर संरक्षण मिला है।
फिर भी:
- “भारत तेरे टुकड़े होंगे“, “गजवा–ए–हिन्द“, “सर तन से जुदा“ जैसे नारे लगते हैं।
- ओवैसी जैसे नेता 15 मिनट की धमकी देते हैं।
- हुर्रियत और अलगाववादी कश्मीर में पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाते हैं।
- मदरसों में भारत–विरोधी विचार पनपते हैं।
- जनसंख्या जिहाद, लव जिहाद, और घुसपैठियों की सहायता खुलेआम होती है।
- हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान किया जाता है लेकिन कोई ‘सहिष्णुता’ की बात नहीं करता।
जब इतना सब कुछ पाकर भी मुस्लिम समाज भारत को नहीं अपनाता — तो हिंदुओं की सहिष्णुता भी धीरे–धीरे समाप्त हो सकती है।
4. अब क्या करना चाहिए? (सुधार का रास्ता)
मुस्लिम समाज के लिए ज़रूरी है कि वो खुद आत्ममंथन करे और बदलाव लाए:
(1) राष्ट्र सर्वोपरि हो — मज़हब नहीं:
भारत में रहना है तो भारत के संविधान, संस्कृति और क़ानून को सर्वोच्च मानना होगा। इस्लामिक स्टेट या खलीफा का सपना छोड़ना होगा।
(2) कट्टरपंथ को नकारें:
हर उस मौलाना, नेता, या संस्था को खारिज करें जो समाज को नफरत सिखा रही है।
(3) शिक्षा, रोजगार और राष्ट्रसेवा को अपनाएँ:
पढ़ें, आगे बढ़ें, और देश के विकास में योगदान दें।
(4) दूसरे धर्मों का सम्मान करें:
जैसे अपने पैगंबर के अपमान को स्वीकार नहीं करते, वैसे ही हिंदू देवी–देवताओं, संस्कृति और आस्थाओं का भी सम्मान करें।
(5) असल इस्लाम की ओर लौटें:
शांति, सह-अस्तित्व और मानवता — ये इस्लाम की भी मूल बातें हैं। उन्हें फिर से अपनाना होगा।
5. नहीं सुधरे तो क्या होगा?
- भारत की सहनशीलता की भी सीमा है। यदि स्थिति नहीं बदली:
- जनमानस का धैर्य टूटेगा,
- कानून सख्त होंगे,
- राष्ट्रवादी ताकतें कट्टरपंथ के खिलाफ खड़ी होंगी,
और वो दिन दूर नहीं जब भारत भी फ्रांस, म्यांमार, चीन, या जापान की राह पर चला जाएगा।
भारत में मुसलमानों को सम्मान मिला है — लेकिन यह सम्मान अधिकारों से नहीं, कर्तव्यों की पूर्ति से बना रहेगा।
यदि मुस्लिम समाज खुद को राष्ट्र का हिस्सा माने, और राष्ट्र के प्रति कर्तव्य निभाए — तो भारत उन्हें सम्मान देगा।
वरना कट्टरपंथ से टकराव तय है।
🇮🇳जय भारत, वन्देमातरम 🇮🇳
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