एकता और पहचान के संकट से ग्रस्त हिंदू समाज की स्थिति पर विचार करते हुए यह आत्मनिरीक्षण हमें गहराई से सोचने पर मजबूर करता है। विभिन्न जातियों, धर्मों, भाषाओं, और राजनीतिक दलों में बंटा हुआ समाज आखिर अपनी मूल पहचान—हिंदू—को क्यों नहीं अपना सका? आइए, इसे विस्तार से समझते हैं।
जाति, वर्ण और पहचान का भ्रम
हम ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र जैसे सामाजिक वर्गों में बंट गए।
जातिवाद ने हमें इतना अलग कर दिया कि हमने अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक जड़ों को भुला दिया।
”हिंदू” होना एक व्यापक पहचान है, जो जातियों और वर्णों से परे है, लेकिन हमने इसे कभी अपनाया ही नहीं।
याद रखें: हमारा धर्म हमें ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ सिखाता है, लेकिन हमने इसे केवल किताबों तक सीमित कर दिया।
राजनीति का प्रभाव
हम बीजेपी, कांग्रेस, सपा, टीएमसी, या अन्य राजनीतिक पार्टियों के समर्थक बन गए।
धर्म और राजनीति के बीच संतुलन स्थापित करने की बजाय, हमने अपनी प्राथमिकता बदल ली।
धर्म और संस्कृति को संरक्षित करने का कार्य राजनीति का मोहताज हो गया।
सवाल उठता है: क्या हम धर्म के ऊपर राजनीति को रख रहे हैं?
क्षेत्रीय विभाजन
हम उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय, गुजराती, मराठी, और बंगाली बन गए।
क्षेत्रीयता ने हमारी पहचान को छोटा कर दिया।
हम यह भूल गए कि हमारी असली पहचान “हिंदुस्तानी” और “हिंदू” होना है।
सोचिए: क्या हमारे क्षेत्र हमारे धर्म और संस्कृति से बड़े हैं?
आध्यात्मिकता का भटकाव
हम विभिन्न संतों और गुरुओं के अनुयायी बन गए, लेकिन धर्म के मूल सिद्धांतों को नहीं अपनाया।
शंकराचार्य, राम, कृष्ण, और हनुमान जैसे आदर्शों को अपनाने की बजाय, हमने केवल व्यक्तिगत लाभ और आडंबर को महत्व दिया।
मूल्यांकन करें: क्या हम धर्म का पालन कर रहे हैं, या केवल दिखावा?
सामाजिक वर्ग का विभाजन
हमने अपने आप को अमीर और गरीब के खेमों में बांट लिया।
हमारे सामाजिक और आर्थिक संघर्षों ने हमारी सामूहिक पहचान को और कमजोर कर दिया।
हमने हिंदू धर्म के बराबरी और दान की परंपरा को दरकिनार कर दिया।
समझिए: हमारी सांस्कृतिक धरोहर हमें सहयोग और एकता सिखाती है।
क्या करना होगा?
एकजुट पहचान: जाति, वर्ग, क्षेत्र, और राजनीति से ऊपर उठकर, खुद को पहले “हिंदू” मानें।
धार्मिक मूल्यों का पालन: राम, कृष्ण, और हनुमान जैसे आदर्शों को अपने जीवन में उतारें।
विविधता में एकता: क्षेत्रीय और सामाजिक विभाजन से ऊपर उठकर, “हिंदुस्तानी” और “हिंदू” पहचान को मजबूत करें।
आत्मनिरीक्षण: अपने कार्यों और विचारों का मूल्यांकन करें कि क्या वे धर्म और समाज को जोड़ने वाले हैं या तोड़ने वाले।
युवा पीढ़ी के लिए संदेश
हिंदू धर्म की सबसे बड़ी ताकत उसकी विविधता और सहिष्णुता है। यह समय है कि हम इस ताकत को अपनी कमजोरी बनने से रोकें।
जाति, वर्ग, और क्षेत्रीयता से परे जाकर “हिंदू” पहचान को अपनाएं।
समाज को एकजुट करें और अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करें।
राजनीति और व्यक्तिगत लाभ से ऊपर उठकर, धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए कार्य करें।
याद रखें:
”धर्म और संस्कृति की रक्षा के बिना, समाज का कोई अस्तित्व नहीं।”
आज का युवा, यदि एकजुट होकर हिंदू धर्म के मूल सिद्धांतों को अपनाएगा, तो न केवल समाज मजबूत होगा, बल्कि देश भी सशक्त बनेगा।
🚩 जय हिंदू, जय भारत 🚩