वर्तमान समय में जब भारत धार्मिक विविधताओं का केंद्र बना हुआ है, एक गंभीर प्रश्न हमारे सामने खड़ा है — क्या हमारी धार्मिक पहचान, हमारी सनातन संस्कृति, और वह विरासत जो हमने हजारों वर्षों से संजोकर रखी है, आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रह पाएगी? त्योहारों की रौनक, मंदिरों की घंटियां और पारंपरिक मूल्यों की जड़ें धीरे-धीरे बदलते जनसंख्या संतुलन और सामाजिक-राजनीतिक समीकरणों के बीच कमजोर होती दिख रही हैं। अब समय है जागने का, सोचने का, और अपने धार्मिक और सांस्कृतिक अस्तित्व की रक्षा के लिए संगठित होने का।
आज जब हम होली, दिवाली, शिवरात्रि, जन्माष्टमी, करवा चौथ, मकर संक्रांति, बैसाखी, पोंगल, दुर्गा पूजा और बिहू जैसे त्योहार हर्षोल्लास से मना रहे हैं — क्या हमने एक क्षण ठहरकर यह सोचा कि क्या आने वाली पीढ़ियाँ भी यही पर्व मना सकेंगी?
क्या हम अपने बच्चों को वही सनातन परंपरा, वही धार्मिक स्वाधीनता, और वही सांस्कृतिक पहचान सौंप पाएंगे, जिसके साथ हमने जीवन जिया है?
आपको यह सवाल भावनात्मक नहीं, बल्कि वास्तविक आँकड़ों और तेजी से बदलते जनसंख्या संतुलन के आधार पर पूछा जा रहा है।
1. धार्मिक जनसंख्या का बदलता स्वरूप: चेतावनी या अवसर?
Institute of World Demographics Research द्वारा प्रस्तुत आंकड़े हमें भविष्य की एक सच्चाई से परिचित कराते हैं:
वर्ष | हिन्दू (%) | मुस्लिम (%) |
1948 | 88.2 | 6.0 |
1951 | 84.1 | 9.8 |
2011 (अनुमानित) | 79.8 | 15.0 |
2011 (आधिकारिक) | 73.2 | 22.6 |
2017 | 68.6 | ~26% अनुमानित |
2041 (अनुमानित) | ~60-63% | ~30%+ |
मात्र एक सदी से भी कम समय में हिंदुओं का प्रतिशत 88% से घटकर 60% तक पहुंच सकता है, जबकि मुस्लिम जनसंख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हो रही है।
2. क्यों हो रहा है ये बदलाव? – राजनीतिक और सामाजिक समीकरण
मुस्लिम समाज की जनसंख्या वृद्धि के पीछे एक रणनीतिक सोच, धार्मिक विस्तारवाद और वोट बैंक राजनीति का योगदान रहा है। जबकि हिंदू समाज:
- जातिवाद और आपसी भेदभाव में उलझा रहा।
- जनसंख्या नियंत्रण की जिम्मेदारी निभाता रहा।
- सेक्युलरिज़्म के नाम पर अपनी ही संस्कृति को तिरस्कृत करता रहा।
- धर्मांतरण, लव जिहाद और घुसपैठ जैसे गंभीर विषयों पर चुप रहा।
3. लेकिन अब बदलाव आ चुका है – मोदी युग का भारत जाग चुका है
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने राजनीतिक–सांस्कृतिक क्रांति का अनुभव किया है:
- राम मंदिर का निर्माण — 500 वर्षों की प्रतीक्षा समाप्त
- काशी विश्वनाथ कॉरिडोर, महाकाल लोक
- तीन तलाक पर रोक — मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा
- धारा 370 हटाना — एक राष्ट्र, एक संविधान
- सीएए, एनआरसी, एनपीआर — भारत की सुरक्षा को प्राथमिकता
- अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हिंदू हितों की रक्षा — अफगानिस्तान, श्रीलंका, नेपाल से लेकर पश्चिम एशिया तक भारत की साख बढ़ी
- विदेशी फंडिंग पर अंकुश — भारत विरोधी एनजीओ और ईसाई मिशनरियों पर लगाम
4. मुसलमान होना अब घाटे का सौदा क्यों होता जा रहा है?
इतिहास में मुस्लिम पहचान सत्ता, विशेषाधिकार और हिंसक ताक़त का प्रतीक रही। लेकिन अब वह दौर बदल चुका है:
- दंगा, फसाद, कब्जेबाज़ी, कानून से ऊपर रहने की प्रवृत्ति अब सहन नहीं होगी।
- ‘अजान के बदले हनुमान चालीसा‘, ‘रामनवमी पर शोभायात्रा‘ अब सामान्य दृश्य बन चुके हैं।
- जिहादी सोच को चुनौती देने वाला हिंदू वर्ग आज शिक्षित, संगठित और राष्ट्रवादी है।
अब मुस्लिम पहचान को विशेषाधिकार नहीं बल्कि कानून और जवाबदेही के दायरे में लाया जा रहा है।
5. सांस्कृतिक पुनर्जागरण की ओर – हिन्दू जागो, जुड़ो और लड़ो
याद रखिए, 800 वर्षों की गुलामी के बाद भी:
- हिंदू संस्कृति जीवित है, क्योंकि यह आत्मा से जुड़ी है।
- आज भी अधिकांश मुस्लिमों का DNA हिन्दू है — कुछ भय और कुछ लालच में धर्म बदला, आत्मा नहीं।
- जैसे ही उन्हें इस्लाम में रहने में घाटा दिखेगा, वापसी की राह खोजेंगे।
6. अब समय है हिंदू एकता का — जातिवाद छोड़ो, सनातन अपनाओ
- 112 करोड़ हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध — एकजुट हों तो कोई ताक़त मुकाबला नहीं कर सकती।
- इसाईयों का भी बड़ा वर्ग सांस्कृतिक रूप से हिन्दू जुड़ाव रखता है।
जाति नहीं, संस्कृति से जोड़ो।राजनीति नहीं, धर्म रक्षा से जोड़ो।
7. हमारा कर्तव्य क्या है?
- हर हिन्दू को जागरूक करें — Kutumb App, WhatsApp, Twitter, YouTube, Medium जैसे मंचों का उपयोग करें।
- हिंदू एकता के लिए प्रचार करें — “National Hinduism Board”, “SaveIndia108”, “Sanatan Shakti” जैसे संगठनों से जुड़ें।
- अपने बच्चों को गर्व से बताएं — हम सनातनी हैं, यह केवल धर्म नहीं, अस्तित्व है।
“जिस दिन इस देश में मुसलमान होना एक आशीर्वाद के बजाय मुकम्मल श्राप हो जाएगा, उसी दिन इन्हें अपना हिंदू DNA याद आएगा।“
जय श्रीराम। वंदे मातरम। धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो।
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