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आत्ममंथन की आवश्यकता

बंधुओं! अत्याचार का असली दोषी कौन?” — आत्ममंथन की आवश्यकता

आज हम जिस समाज में जी रहे हैं, वहाँ अत्याचार और अन्याय की घटनाएँ आए दिन हमारे सामने आती हैं। यह सवाल उठता है कि इन घटनाओं का असली दोषी कौन है? क्या केवल बाहरी ताकतें और असामाजिक तत्व जिम्मेदार हैं, या हमारी खामोशी, लापरवाही और समय के साथ बदलती सोच भी इस अत्याचार को बढ़ावा देती है? यह वक़्त है आत्ममंथन का। हमें खुद से यह सवाल करना होगा कि क्या हम अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, या हम भी इस नपुंसकता और अत्याचार के हिस्सा बन चुके हैं? इस लेख में हम इसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर विचार करेंगे और आत्ममंथन के माध्यम से उस असली दोषी की पहचान करेंगे, जो समाज में अत्याचार के पनपने का कारण बनता है।

आज का कटु सत्य:

बांग्लादेश हो या पश्चिम बंगाल, जहां भी हिंदू समाज पर सुनियोजित हिंसा हो रही है — बलात्कार, हत्या, मंदिर तोड़ना, घर जलाना — वहां यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि दोषी कौन है? यह समय है आत्ममंथन का, ताकि हम यह समझ सकें कि हम इस हिंसा को रोकने के लिए क्या कदम उठा रहे हैं।

  • लोग ऊंगली उठाते हैं:
  • कट्टरपंथियों पर
  • वोट बैंक के लिए देश बेचने वाली सरकारों पर
  • निष्क्रिय हिंदू संस्थाओं पर
  • मीडिया की चुप्पी पर
  • और जयचंदों पर जो सेकुलरिज्म के नाम पर अपना धर्म गिरवी रख चुके हैं

लेकिन मित्रों, सत्य इससे कहीं अधिक पीड़ादायक है दोषी हम स्वयं हैं।

हम सनातन धर्म के राष्ट्रप्रेमी अनुयायी ही दोषी हैं, क्योंकि:

1. हमने अपनों को मरते देखा और चुप्पी साध ली

  • क्या हमारी आत्मा नहीं कांपती जब कोई हिन्दू परिवार बंगाल में जिंदा जला दिया जाता है?
  • क्या हमारे खून में उबाल नहीं आता जब बांग्लादेश में बहनों की इज्जत लूटी जाती है?
  • फिर क्यों हम दो शब्द “Condemn” करके चुप बैठ जाते हैं?

2. हमने अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा को रूढ़िवादमान लिया

जो ग्रंथ हमें युद्ध, न्याय और धर्म रक्षा का पाठ पढ़ाते हैं — हम उन्हीं को “पुराना” कहकर दरकिनार कर देते हैं।
गीता का उपदेश क्या था? — “अधर्म के नाश के लिए युद्ध करना ही धर्म है”
पर हम क्या कर रहे हैं? – लाइक्स, फॉरवर्ड और साइलेंस!

3. अत्याचार सहना भी उतना ही अपराध है

हमारे शास्त्र कहते हैं:

“जो अन्याय होते देख कर भी मौन रहे, वह भी अधर्मी है।”

तो क्या हम अधर्मी नहीं बन चुके हैं?
हमारी निष्क्रियता ही दुश्मनों की ताकत बन चुकी है।

कब तक हम कबूतर बनकर आंखें बंद रखेंगे?

क्या हम यही सोचते रहेंगे कि “ये तो बंगाल की बात है”, “हमारे शहर में सब ठीक है”?

याद रखिए:
आज बांग्लादेश और बंगाल जल रहा है
कल काशी, उज्जैन, इंदौर, जयपुर, लखनऊ, नागपुर — कोई भी सुरक्षित नहीं रहेगा।

अब समय है धैर्यछोड़कर धर्मयुद्धका बिगुल बजाने का

जैसे को तैसा — यही अब एकमात्र रणनीति है।

  • जो जहां बहुसंख्यक बनकर आतंक फैला रहा है,
    उसे वहीं उसी की भाषा में उत्तर मिलना चाहिए जहां वह अल्पसंख्यक है।
  • दो दिन भी नहीं लगेंगे, ये वही लोग “संविधान, शांति और अल्पसंख्यक अधिकार” की दुहाई देने लगेंगे।

राजनीति को दिशा देना है, ना कि केवल वोट डालना

जो लोग सिर्फ “वोट से बदलाव” की बात करते हैं —
उन्हें समझना होगा कि अगर जनसंख्या का अनुपात बदल गया,
तो कुछ वर्षों बाद वोट का गणित ही उनके पक्ष में चला जाएगा।

  • वोट नहीं, चेतना चाहिए।
  • नारे नहीं, संगठन चाहिए।
  • भावनाएं नहीं, बलिदान चाहिए।

अब क्या करें? — स्पष्ट कार्ययोजना

1. मानसिक, सामाजिक और भौतिक स्तर पर युद्ध की तैयारी करें:

  • मानसिक स्तर पर: हर सनातनी को समझाइए कि यह केवल “धर्म” नहीं, हमारे अस्तित्व की लड़ाई है।
  • सामाजिक स्तर पर: परिवारों में, समाजों में, मंदिरों में संगठन बनाइए।
  • भौतिक स्तर पर: आत्मरक्षा, शस्त्र प्रशिक्षण, कानूनी जागरूकता — यह अब समय की मांग है।

2. जहां उनकी संख्या कम है, वहीं से रणनीति शुरू हो:

  • क्या हम वहां अमन-चैन से रह सकते हैं जहां हमें गालियां दी जाती हैं?
  • तो फिर वहां क्यों चैन से रहने दे रहे हैं जहां वो कमजोर हैं?

3. सरकार को समर्थन दो, लेकिन दबाव भी बनाओ:

  • राष्ट्रवादी सरकारें हमारी उम्मीद हैं, लेकिन वे भी जनभावना के आधार पर काम करती हैं।
  • हमारी एकता और सजगता ही उन्हें कठोर निर्णय लेने की शक्ति देती है।

4. न्यायपालिका और तंत्र को जवाबदेह बनाना होगा:

  • हर नागरिक का यह अधिकार है कि वह न्याय की मांग करे।

हमें पारदर्शी न्यायिक नियुक्तियों, भ्रष्टाचारमुक्त तंत्र और राष्ट्रीय हित में न्याय की मांग करनी होगी।

बंधुओं, हम सनातन हैं और सनातन कभी हार नहीं मानता

आज के समाज में अत्याचार एक आम समस्या बन गई है, और हमें यह समझने की आवश्यकता है कि इसका असली दोषी कौन है। क्या यह केवल बाहरी ताकतों का काम है, या हमारी चुप्पी और लापरवाही भी इस स्थिति को बढ़ावा देती है? यह समय है आत्ममंथन का, ताकि हम समझ सकें कि हम अपने हिस्से की जिम्मेदारी को सही तरीके से निभा रहे हैं या नहीं। हमें आत्ममंथन के जरिए अपने भीतर झाँककर यह पहचानने की जरूरत है कि हम किस हद तक इस अत्याचार का हिस्सा बने हुए हैं।

हमें पुनः वही वीर मराठा, प्रताप, लक्ष्मीबाई, गुरु गोविंद सिंह, छत्रसाल की संतान बनना है।

अब न लड़े तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा, भगवान भी हमारी रक्षा नहीं करेगा।

अब नहीं तो फिर कभी नहीं!”

जय श्रीराम! जय भारत! जय सनातन धर्म!

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